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वाई पूरन कुमार केस में परिवार, राजनीति और सत्ता की टकराहट

हरियाणा की अफसरशाही दो-फाड़!
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हरियाणा कैडर के एडीजीपी वाई़ पूरन कुमार की आत्महत्या ने हरियाणा की प्रशासनिक मशीनरी और राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया है। यह सिर्फ एक आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या का मामला नहीं रहा बल्कि यह अब दलित अधिकार, अफसरशाही के अंदरूनी झगड़े और राजनीतिक हस्तक्षेप का संघर्ष बन चुका है।शुक्रवार को उनकी आईएएस पत्नी अमनीत पी़ कुमार को पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने का प्रयास पूरे दिन चला, लेकिन यह प्रयास सरकार के लिए राजनीतिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखने की चुनौती बन गया। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने संकट को गंभीरता से लेते हुए कैबिनेट मंत्री कृष्ण लाल पंवार समेत कई दलित नेताओं को अमनीत के निवास भेजा।

कोशिश थी कि परिवार को मानसिक सहारा दिया जाए और पोस्टमार्टम के लिए सहमति बनाई जा सके। लेकिन यहीं से घटना ने नया मोड़ लिया। वाई पूरन कुमार के समर्थन में खड़े हुए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डी़ सुरेश और अन्य वरिष्ठ अफसर सरकार की कोशिशों के सामने खड़े हो गए। उनका कहना था कि अगर किसी पर कार्रवाई करनी है, तो केवल डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक एसपी नरेंद्र बिजराणिया को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है, जबकि वाई पूरन कुमार के अंतिम नोट में 14 अधिकारियों के नाम हैं।

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अफसरशाही में यह साफ दो धड़ों में बंटने का संकेत था। एक तरफ ऐसे अधिकारी हैं, जो डीजीपी के पक्ष में हैं और उनका सवाल है कि कार्रवाई संतुलित क्यों नहीं हो रही। दूसरी ओर, दलित अफसर और नेता परिवार के समर्थन में खड़े होकर न्याय की मांग कर रहे हैं। डीजीपी शत्रुजीत कपूर जब एंटी करप्शन ब्यूरो के महानिदेशक थे तो उस समय कई अधिकारी उनके रॉडार पर थे।

शुक्रवार को राजनीतिक हस्तक्षेप लगातार जारी रहा। कैबिनेट मंत्री कृष्ण लाल पंवार ने कई बार अमनीत पी़ कुमार से मुलाकात की और भरोसा दिलाया कि न्याय होगा। भाजपा के पूर्व नेता सत्यप्रकाश जरावता, विधायक पवन खरखौदा और पूर्व मंत्री बिशम्बर वाल्मीकि भी परिवार से मिलने पहुंचे। विपक्ष ने भी पीछे नहीं हटे। अंबाला से कांग्रेस सांसद वरुण मुलाना और पूर्व मंत्री गीता भुक्कल ने दोबारा अमनीत से मुलाकात की और त्वरित कार्रवाई की मांग उठाई।

आवास पर सुरक्षा बढ़ाई गई

सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी और गृह सचिव डॉ़ सुमिता मिश्रा को परिवार से दोबारा मिलने भेजा। इस दौरान सुरक्षा बढ़ा दी गई और अमनीत के सरकारी आवास के बाहर बीट बाक्स भी लगाया गया। बावजूद इसके, चार दिन बीत जाने के बाद भी पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार नहीं हो पाए, जिससे प्रशासनिक और राजनीतिक दबाव और बढ़ गया है।

 

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