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नायब के जरिये पंजाब में सैनी और पिछड़े वोट बैंक पर नजर

मुख्यमंत्री सैनी के बढ़ते कद के पीछे भाजपा का बड़ा राजनीतिक होमवर्क!

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हरियाणा की राजनीति में नायब सिंह सैनी का तेजी से बढ़ता कद अब सिर्फ राज्य की आंतरिक सत्ता-समीकरणों का मामला नहीं रहा। यह एक बड़े राजनीतिक कैनवास पर लिखी जा रही उस रणनीति का हिस्सा नजर आता है, जिसे भाजपा हाईकमान 2024 के बाद पूरे उत्तर भारत में नये सिरे से आकार दे रहा है। खासकर उन इलाकों में जहां 2027 और 2029 के चुनावों से पहले पार्टी को एक नयी ऊर्जा, नये सामाजिक आर्किटेक्चर और नये चेहरे की जरूरत है।

हरियाणा में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही सैनी ने जिस स्पीड से राजनीतिक ग्राउंडिंग की, उसका असर 2024 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ जींद, भिवानी, सोनीपत तक सीमित नहीं रहा। अब यह प्रभाव सरहद पार करते हुए पंजाब के राजनीतिक मैदान तक जा पहुंचा है, जहां भाजपा अभी पूरी तरह एक नये संगठनात्मक ढांचे और नये सामाजिक समीकरणों पर काम कर रही है।

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हाईकमान ने सैनी को वहां भी एक ‘साइलेंट ऑपरेटिव’ की तरह पहले ही सक्रिय कर दिया है, जबकि पंजाब में चुनाव 2027 में होने हैं। यानी खेल अभी दूर है, पर तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है। हरियाणा में पिछले कुछ महीनों में जो राजनीतिक फ्रेम बदला है, उसमें सैनी का स्टाइल साफ दिखता है।

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पहले सीएम के तौर पर उनकी पहचान ‘शांत चेहरा’ थी, पर अब उनकी स्टाइल ‘पॉलिटिकली एग्रेसिव और माइक्रो-मैनेजमेंट आधारित’ हो चुकी है। यही मॉडल भाजपा को पसंद आता है- कम बोलो, ज्यादा घूमो, और बिल्कुल सटीक जगह पर निशाना लगाओ। बेशक, नायब सिंह सैनी का ‘हंसमुख’ होना और लोगों से मिलने में जरा भी संकोच नहीं करने का वर्किंग स्टाइल लोगों को पसंद आता है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी द्वारा उनकी हंसी पर उठाए गए सवाल भी उलटे पड़ गए।

पंजाब में नायब सैनी के जरिये भाजपा केवल सैनी नहीं, बल्कि पूरे पिछड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति बना रही है। सैनी पंजाब में एक पब्लिक प्लेटफार्म पर यह कहकर भी भावनात्मक रिश्ता जोड़ने की कोशिश कर चुके हैं कि उनकी मां पंजाब की हैं। हरियाणा में किसानों की 24 फसलों को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीदने के अलावा महिलाओं के लिए शुरू की गई ‘दीनदयाल लाडो लक्ष्मी’ योजना के जरिये भी अब पंजाब में आप सरकार की घेराबंदी होगी।

हाईकमान की स्ट्रैटेजी : पंजाब में ‘अर्ली ऑपरेशन’

पार्टी सूत्र बताते हैं कि सैनी को पंजाब में सक्रिय करने का फैसला अचानक नहीं था। हरियाणा से लगते पंजाब के मालवा-दोआबा बेल्ट में सैनी समुदाय अच्छी संख्या में है और भाजपा को यहां नये सामाजिक विस्तार की जरूरत है। भाजपा का आकलन यह है कि पंजाब में पारंपरिक अकाली, कांग्रेस व आप की तिकड़ी से हटकर एक नया सामाजिक समीकरण बनाया जा सकता है। इसके लिए एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो गैर-विवादित, ग्राउंडेड और सीमाई राज्यों की सियासत समझने वाला हो। सैनी इन तीनों कसौटियों पर खरे उतरते हैं। इसीलिए पिछले कुछ महीनों से वे भाजपा हाईकमान के ‘पंजाब मिशन’ में लो-प्रोफाइल लेकिन अत्यधिक रणनीतिक भूमिका निभा रहे हैं।

बैकडोर मीटिंग्स भी ले रहे सैनी

नायब सिंह सैनी पंजाब में सार्वजनिक व धार्मिक आयोजनों के अलावा राजनीतिक कार्यक्रमों में भी सरगर्म हैं। सूत्रों के अनुसार, वे पंजाब के विभिन्न जिलों में किसान समूहों, सामाजिक संगठनों और युवा समूहों से बैकडोर मीटिंग्स भी कर रहे हैं। दोआबा और मालवा के कुछ विशेष इलाकों में संगठन का फीडबैक लिया है। 2027 के लिए भाजपा की ‘अर्ली सोशल इंजीनियरिंग’ को आकार देने के मोर्चे पर वे जुट चुके हैं। यह गतिविधियां भले ही अभी सार्वजनिक तौर पर ज्यादा न दिखती हों, लेकिन संकेत साफ है कि सैनी सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं रहेंगे। भाजपा हाईकमान ने उन्हें एक बड़े रोल के लिए पहले ही बोर्ड पर रख दिया है।

भाजपा का ‘डबल गेम प्लान’

हरियाणा और पंजाब के कई सामाजिक समूह एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। व्यापार, कृषि, रोजगार व सामाजिक रिश्ते -दोनों राज्यों की संस्कृति एक-दूसरे में घुली-मिली है। भाजपा इस इंटर-स्टेट सोशल नेटवर्क को एक ‘साझा पॉलिटिकल प्लैटफॉर्म’ में बदलना चाहती है। और यही वह जगह है, जहां सैनी का कार्ड भाजपा के लिए उपयोगी बनता है। भाजपा की सोच यह है कि हरियाणा में सैनी का उभार पंजाब में भी समान समुदाय और पड़ोसी जिलों में प्रभाव उत्पन्न करेगा। पंजाब में भाजपा को एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो ‘सोशल ब्रिज’ का काम कर सके। सैनी वैसा कर सकते हैं, क्योंकि उनका स्वभाव टकराव वाला नहीं, ‘इन्क्लूसिव’ है। इस रणनीति के तहत सैनी का रोल आने वाले महीनों में और भी बढ़ सकता है।

भाजपा का ‘न्यू नॉर्थ स्ट्रैटेजी’ मॉडल!

2024 के बाद भाजपा जिस बड़े बदलाव से गुजर रही है, उसे समझने के लिए यह देखना जरूरी है कि उत्तर भारत में वह नये नेतृत्व समूह तैयार कर रही है। पारंपरिक बड़े लीडरों के साथ-साथ नये समुदाय आधारित चेहरे भी खड़े किए जा रहे हैं। इनमें युवा, पिछड़े वर्ग, छोटे व्यवसायी और ग्रामीण मध्यवर्ग पर विशेष फोकस है। सैनी इनमें फिट बैठते हैं, क्योंकि वे तकनीकी रूप से सक्षम, संगठनात्मक रूप से अनुशासित और ग्रामीण-शहरी दोनों इलाकों में स्वीकार्यता वाले नेता हैं।

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