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लाडवा पर सबकी नजर, पिहोवा में ‘डीडी’ दिखा रहे दम

धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की चारों विधानसभा सीटों पर दिलचस्प चुनावी मुकाबला
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दिनेश भारद्वाज/ ट्रिन्यू

कुरुक्षेत्र, 30 सितंबर

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धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की चारों विधानसभा सीटों पर रोचक चुनावी मुकाबला हो रहा है, लेकिन हर किसी की नजर लाडवा पर है। यहां से मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस उम्मीदवार व मौजूदा विधायक मेवा सिंह से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। इस सीट के सियासी समीकरण उलझे हुए हैं। वहीं, पिहोवा सीट पर भाजपा के जयभगवान शर्मा ‘डीडी’ अपना दम दिखाते हुए चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर ले आए हैं। थानेसर और शाहाबाद हलके में कांग्रेस और भाजपा के बीच आमने-सामने की टक्कर है।

नायब सिंह सैनी के लिए लाडवा नया इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके परिवार के लोग इसी हलके से नारायणगढ़ के मिर्जापुर में जाकर बसे थे। लाडवा हलका कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। ऐसे में सांसद रहते हुए भी सैनी यहां के लोगों से जुड़े रहे। लाडवा सीट पर सैनी बिरादरी के वोटर भी काफी अधिक हैं। यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई और 2009 में हुए पहले चुनाव में इनेलो के शेर सिंह बड़शामी ने यहां से जीत हासिल की। साल 2014 में भाजपा के पवन सैनी, जबकि 2019 के चुनाव में कांग्रेस के मेवा सिंह ने जीत हासिल की। कांग्रेस ने मेवा सिंह को ही मुख्यमंत्री के सामने चुनावी मैदान में उतारा है। वहीं, इनेलो टिकट पर शेर सिंह बड़शामी की पुत्रवधू सपना बड़शामी चुनाव लड़ रही हैं। समाजसेवी के रूप में इस इलाके में अपनी अलग पहचान बनाने वाले वैश्य बिरादरी के संदीप गर्ग चुनाव को रोचक बनाने का काम कर रहे हैं।

वे चुनावी राजनीति में आने से पहले सामाजिक कार्यों के जरिये लोगों में पैठ बनाने में कामयाब रहे हैं। लाडवा की सीट पर चुनाव इसलिए भी रोचक है, क्योंकि यहां जाटों के अलावा सिख और एससी मतदाताओं की काफी तादाद है। शेर सिंह बड़शामी भी इस इलाके के नामचीन नेताओं में शामिल हैं। उनकी लोगों में पुरानी पहचान और पकड़ है। भाजपा को लगता है कि बड़शामी का प्रभाव सपना के काम आएगा और वे कांग्रेस के जाट व सिख वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहेंगे। वहीं, संदीप गर्ग, क्योंकि गरीब तबके के लिए काम करते रहे हैं, ऐसे में एससी वोट बैंक में वे भी सेंध लगा सकते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा यह ऐलान कर चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मेवा सिंह को मंत्री बनाया जाएगा। हलके के लोगों में इस बात का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है कि खुद मुख्यमंत्री इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। नायब सैनी की मिलनसार छवि भी लोगों को रास आ रही है। वहीं, उनकी पत्नी सुमन सैनी ने भी चुनाव प्रचार में मोर्चा संभाला हुआ है। लोगों को यह भी बताया और समझाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में ‘बड़ी कुर्सी’ इसी इलाके में रहेगी।

थानेसर सीट पर घमासान: हरियाणा में कैबिनेट मंत्री व विधानसभा अध्यक्ष रहे अशोक अरोड़ा थानेसर से कांग्रेस उम्मीदवार हैं। 2019 में भी उन्होंने यहां से चुनाव लड़ा था और भाजपा के सुभाष सुधा के मुकाबले महज 842 मतों के अंतर से हार गए थे। इस बार अरोड़ा पूरी प्लानिंग के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। नायब सरकार में राज्य मंत्री सुभाष सुधा लगातार दो टर्म से विधायक हैं। दस वर्षों के कार्यकाल में एंटी इन्कमबेंसी होना स्वाभाविक है। अशोक अरोड़ा और सुभाष सुधा के बीच कांटे की टक्कर है। अशोक अरोड़ा अपनी मिलनसार छवि के लिए जाने जाते हैं। वे पहले भी थानेसर से चुनाव जीतते रहे हैं। वहीं, भाजपा से टिकट न मिलने के कारण बागी हुए पार्टी के पुराने नेता कृष्ण बजाज आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में आ डटे हैं। वे इस सीट पर भाजपा के समीकरण बिगाड़ने का काम कर रहे हैं।

शाहाबाद में शहर बनाम गांव : अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित शाहाबाद विधानसभा क्षेत्र में भी सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस में बना हुआ है। 2019 में जजपा के टिकट पर यहां से विधायक बने रामकरण काला इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, भाजपा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीति में एक्टिव रहे नये चेहरे के रूप में सुभाष कलसाना को टिकट दिया है। कलसाना को टिकट देते हुए भाजपा ने अनुसूचित वर्ग की जातियों का भी ध्यान रखा है। पूरी रणनीति के साथ चुनावी कार्ड चला गया है। इस सीट की ग्राउंड रियल्टी यह है कि चुनाव शहर बनाम गांव बनता दिख रहा है। शहर में भाजपा की मजबूत स्थिति नजर आती है। गांवों में कांग्रेस का प्रभाव दिखता है। इसी वजह से यह सीट कांटे के मुकाबले में फंसी है। कांग्रेस टिकट मांग रहे पूर्व विधायक अनिल धन्तौड़ी के बागी होने के आसार थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

पिहोवा में आमने-सामने का मुकाबला

पिहोवा सीट भी इस बार काफी हॉट है। 2019 में यहां से विधायक बने संदीप सिंह का टिकट भाजपा ने काटा है। इस बार भाजपा ने पहले यहां से कंवलजीत सिंह अजराना को उम्मीदवार बनाया, लेकिन विरोध के बाद अजराना ने टिकट लौटा दिया। अब भाजपा टिकट पर वरिष्ठ नेता जयभगवान शर्मा ‘डीडी’ चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी चुनावी मैनेजमेंट ने कांग्रेस उम्मीदवार मनदीप सिंह चट्ठा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मनदीप सिंह पूर्व वित्त मंत्री हरमोहिंद्र सिंह चट्ठा के बेटे हैं। वे पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन जीत नहीं सके। जयभगवान शर्मा ‘डीडी’ इस इलाके में लंबे समय से एक्टिव हैं। कांग्रेस के सिख प्रत्याशी के मुकाबले भाजपा ने ब्राह्मण चेहरा उतारकर यहां के चुनाव को पहले दिन से ही रोचक बना दिया था। पिहोवा की सीट आमने-सामने की टक्कर में फंसी है।

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