सुरेंद्र मेहता/हप्र
यमुनानगर, 9 अगस्त
अपने रणबांकुरों की शहादत को याद करने के लिए किसी ने ठीक ही लिखा, ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा..।’ मेले तो लगते हैं, लेकिन कैसी विडंबना है कि आजादी के अमृत महोत्सव के समय तक भी देश की आजादी के लिए मर मिटने वाले शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव सहित अनेक रण बांकुरों को अब तक शहीद घोषित नहीं किया गया।
अब तक कई सरकारें आईं और बदल गईं, लेकिन हमारे अमर सपूतों को शहीद का दर्जा नहीं मिला। शहीद भगत सिंह के भतीजे किरण जीत सिंह का कहना है कि वर्षों से देशवासियों की इस मांग को किसी सरकार ने पूरा नहीं किया। उन्होंने कहा कि सरकार केवल आजादी के बाद बॉर्डर पर जान देने वालों को ही शहीद मानती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है जिन्होंने देश के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया, जिनकी वजह से आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं, उन्हें सरकार भूल चुकी है। उन्होंने कहा कि देशवासियों में इन शहीदों के लिए गहरा प्यार, सम्मान है। लेकिन जो दर्जा सरकार को देना चाहिए वह नहीं दिया जा रहा। उन्होंने कहा कि शहीद का दर्जा दिलाने की मांग किसी लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश पर मर मिटने वालों को वाजिब हक दिलाने के लिए है।
देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले क्रांतिकारियों की शहादत के 91 साल पूरे हो गए, लेकिन उनके वंशज आज भी न्याय के लिए संघर्षरत हैं। डीयू के पाठ्यक्रम में शामिल किताब ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ में भी भगत सिंह को आतंकी क्रांतिकारी बताया गया था। राज्यसभा में जब यह मामला उठा तो उसे बैन किया गया। गौर हो कि 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी दी गई थी। उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल थी। वह देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ रहे थे।
जनप्रतिनिधि बोले-शहीदों के कारण आज खुली हवा में ले रहे सांस
हरियाणा के अम्बाला से सांसद रतन लाल कटारिया, कुरुक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी, करनाल के सांसद संजय भाटिया का कहना है कि आज हम शहीदों की वजह से ही खुली हवा में सांस ले रहे हैं। उन्होंने अपनी छोटी सी आयु में देश के लिए शहादत दे दी। पूरा देश उन्हें शहीद मानता है। हरियाणा के शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुर्जर का कहना है कि शहीदों के इतिहास को हरियाणा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। केंद्र की मोदी सरकार ने नयी शिक्षा नियमावली में शहीदों व देशभक्तों के इतिहास को पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से शहीदों को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए।
… तो लड़ेंगे कानूनी लड़ाईकेंद्रीय गृह मंत्रालय से आरटीआई के जरिए पूछा गया था कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया गया ? इस पर मंत्रालय ने कहा था कि इस संबंध में सूचना उपलब्ध नहीं है। तब से शहीद-ए-आजम के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू आंदोलन चला रहे हैं। सितंबर, 2016 में इसी मांग को लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशज जलियांवाला बाग से इंडिया गेट तक शहीद सम्मान जागृति यात्रा निकाल चुके हैं।
भगत सिंह को तो जनता शहीद मानती है फिर सरकारी रिकॉर्ड की क्या जरूरत? पूछने पर संधू कहते हैं, ‘भगत सिंह को शहीद घोषित कर दिया जाता तो कोई भी किताबों में उन्हें क्रांतिकारी आतंकी लिखने की हिम्मत नहीं करता।’ संधू के मुताबिक वह इस मामले में अमित शाह, राजनाथ सिंह, प्रकाश जावड़ेकर, स्मृति ईरानी से मिल चुके हैं, पत्र भी लिख चुके हैं। उन्होंने कहा, अगर जल्द ही सरकार कोई निर्णय नहीं लेती तो शहीद भगत सिंह ब्रिगेड की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।