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Election 2025 : कांग्रेस लिस्ट ने करवाई किरकिरी, ‘बागियों’ को भी संगठन में जगह, निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सतविंद्र सिंह राणा को भी मिला पद

प्रदेशाध्यक्ष चौ उदयभान को भी नहीं लिया ‘विश्वास’ में, निष्कासित सतबीर भाना ने झाड़ा कांग्रेस से पल्ला, कहा-मैं कांग्रेस का हिस्सा नहीं
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दिनेश भारद्वाज/चंडीगढ़, 29 जनवरी (ट्रिब्यून न्यूज सर्विस)

Election 2025 : कांग्रेस के हरियाणा मामलों के प्रभारी दीपक बाबरिया द्वारा शहरी स्थानीय निकाय-नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पालिकाओं के चुनावों के लिए जारी की गई, जिसके बाद से ही संगठन पदाधिकारियों की सूची विवादों में आ गई है। इस सूची में उन ‘बागियों’ को भी पद दे दिए हैं, जिन्होंने विधानसभा चुनावों में बगावत करके निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा था। सूत्रों की मानें तो प्रदेशाध्यक्ष चौ उदयभान को भी ‘विश्वास’ में नहीं लिया गया।

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दीपक बाबरियों ने जिलावार प्रभारी के साथ-साथ सह-प्रभारी नियुक्त किए हैं। साथ ही, जिलों के कन्वीनर और कॉ-कन्वीनर की नियुक्ति की है। हरियाणा को दो जोन - नॉर्थ व साऊथ में बांटकर पदाधिकारी बनाए हैं ताकि निकाय चुनावों की तैयारियां की जा सके। हालांकि इन नियुक्तियों को संगठनात्मक नियुक्ति इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि पार्टी में प्रदेश कार्यकारिणी से लेकर जिला व ब्लाक स्तर पर संगठन गठन लटका हुआ है।

पिछले करीब 11 वर्षों से हरियाणा में कांग्रेस बिना संगठन के ही चल रही है। जिला प्रभारियों की जो सूची अब बाबरिया ने जारी की है, उससे पहले प्रदेशाध्यक्ष चौ़ उदयभान द्वारा भी जिला प्रभारियों की संशोधित लिस्ट जारी की थी। इस लिस्ट पर बाबरिया ने एंटी-हुड्डा खेमे के विरोध के बाद रोक लगा दी थी। हालांकि वर्तमान में जिन नेताओं को पद दिए गए हैं, उनमें से अधिकांश हुड्डा खेमे के ही हैं। इतना ही नहीं, इस लिस्ट में कई ऐसे चेहरे भी शामिल हैं, जो सीधे दीपक बाबरिया तक पहुंच रखते हैं।

लिस्ट जारी होने के बाद हरियाणा कांग्रेस गलियारों में अंदरखाने बखेड़ा भी शुरू हो गया है। एंटी हुड्डा खेमा इस लिस्ट से सहमत नहीं है। हालांकि बाबरिया के करीबियों का कहना है कि प्रभारी ने हाईकमान की मंजूरी लेने के बाद लिस्ट जारी की है। कैथल जिला के पुंडरी हलके से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के बागी सतबीर भाना जांगड़ा को कैथल जिले का कॉ-कन्वीनर नियुक्त किया है। कांग्रेस से छह वर्षों के लि निष्कासित भाना ने लिस्ट में अपना नाम आने के बाद इस पर एतरात भी जता दिया है।

भाना ने फेसबुक पेज पर ‘मेरा स्पष्ट संदेश – कांग्रेस से कोई संबंध नहीं!’ पोस्ट करते हुए कहा - विधानसभा चुनावों के दौरान ही मैं कांग्रेस में अपनी सभी जिम्मेदारियों से इस्तीफा देकर मुक्त हो गया था। इसके बावजूद मुझे कांग्रेस की कैथल जिला कार्यकारिणी का सह-संयोजक बनाया जाना हास्यास्पद है। मैं पुन: एक बार स्पष्ट करना चाहूंगा कि कुछ वैचारिक मतभेदों के कारण अब मैं कांग्रेस का हिस्सा नहीं हूं। हरियाणा प्रभारी (दीपक बाबरिया) से आग्रह है कि मुझे पदमुक्त किया जाए।

वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस टिकट कटने के बाद कलायत से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक सतविंद्र सिंह राणा को प्रभारी ने भिवानी जिले का सह-प्रभारी नियुक्त किया है। भिवानी जिले के प्रभारी महेंद्रगढ़ के पूर्व विधायक राव दान सिंह होंगे। यहां बता दें कि सतविंद्र सिंह राणा कांग्रेस छोड़कर जननायक जनता पार्टी (जजपा) में भी सक्रिय रह चुके हैं। ऐसे में उनका नाम भी लिस्ट में होने से कांग्रेसियों में तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है।

इधर, मुलाना ने लिखा पत्र

अंबाला से कांग्रेस सांसद वरुण चौधरी का ताजा पत्र भी सुर्खियों में है। वरुण ने दीपक बाबरिया को लिखे पत्र में हरियाणा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का दर्द बयां किया है। उनका कहना है कि प्रदेश में लम्बे समय से संगठन नहीं है। कांग्रेस को जिला प्रभारी, सह-प्रभारी या कन्वीनर और कॉ-कन्वीनर नियुक्त करने की बजाय जिला व ब्लाक अध्यक्ष नियुक्त करने चाहिएं। उनका कहना है कि बिना स्थाई संगठन के पार्टी को मजबूत नहीं किया जा सकता। वरुण की गिनती हुड्डा खेमे के करीबी नेताओं में होती है। ऐसे में उनकी इस चिट्ठी के भी गंभीर राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।

हार के पीछे बड़ी वजह संगठन

हरियाणा में 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर हालिया विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस लगातार हार का मुंह देख रही है। 2014 में पार्टी लोकसभा की दस में से महज एक सीट जीत पाई। वहीं 2014 के विधानसभा चुनावों में 15 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनावों में दस की दस लोकसभा सीटों पर हार हुई। बेशक, इस बार के लोकसभा चुनावों में पांच सीटों पर जीत हासिल की लेकिन विधानसभा चुनाव में पॉजिटिव माहौल के बावजूद हार ही नसीब हुई। कांग्रेस नेताओं का साफ कहना है कि संगठन नहीं होना भी चुनावों में हार का एक बड़ा कारण है।

तंवर के समय से संगठन नहीं

2014 में कांग्रेस ने उस समय प्रदेशाध्यक्ष फूलचंद मुलाना को बदल कर उनकी जगह डॉ़ अशोक तंवर को संगठन की कमान सौंपी। तंवर ने प्रदेशाध्यक्ष बनते ही संगठन को भंग कर दिया, लेकिन वे 2019 तक भी संगठन का गठन नहीं कर पाए। इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा प्रदेशाध्यक्ष बनी, लेकिन वे भी अपने कार्यकाल में चाहकर भी संगठन नहीं बना पाईं। मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष चौ़ उदयभान को भी दो वर्ष होने को हैं, लेकिन संगठन का गठन वे भी नहीं कर पाए हैं।

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