राजेश शर्मा/हप्र
फरीदाबाद, 22 मार्च
35वें अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले में जहां एक ओर शिल्पकारों की कृतियां पर्यटकों का ध्यान आकर्षित कर रहीं है, वहीं दूसरी ओर बड़ी व छोटी चौपाल पर विभिन्न प्रदेशों तथा विदेशों के जाने माने कलाकारों द्वारा अपनी कला व संस्कृति की छटा बिखेरते हुए पर्यटकों का खूब मनोरंजन कर रहे हैं।
मेला परिसर में स्थित मुख्य चौपाल पर मंगलवार की सुबह सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश के राजस्थान व गुजरात प्रदेशों के कलाकारों के साथ-साथ यूगांडा, नाइजीरिया, इस्वातिनी, नाइजर, घाना तथा तनजानियां के विदेशी कलाकारों ने अपनी समृद्ध संस्कृति की झलक बिखेरते हुए दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। राजस्थान के महबूब खान की टीम ने केसरिया बालम, कालबेलिया नृत्य तथा दमादम मस्त कलंदर की शानदार प्रस्तुति से राजस्थान की समृद्ध संस्कृति की छाप छोड़ी। गुजरात के कन्नू भाई वासवा की टीम ने मेवासी डांस प्रस्तुत किया जो शादी-विवाह के अवसर पर किया जाता है। नाइजीरिया की टीम द्वारा ओलेगेनी नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी गई।
यह नृत्य नाइजीरिया के इगबो एथनिक ग्रुप के युवाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो शरीर की विभिन्न भाव-भंगिमाओं पर केंद्रित होता है। इसके पश्चात घाना की टीम द्वारा जेरा सॉग प्रस्तुत किया गया।
ठाडे रहियो ओ बांके यार… सितार पर सुनी धुन तो खो गये श्रोता
ठाडे रहियो ओ बांके यार जी, चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था, दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा, होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो, मधुर गीतों की जब सितार के तारों से झड़ी लगी तो हर कोई सुनने वाला डा. हरेंद्र शर्मा को बार-बार दाद दे रहा था। उनके साथ संगत कर रहे तबलावादक रजनीश व बांसुरी की तान से वातावरण को मंत्रमुग्ध कर रहे श्याम थापा ने छोटी चौपाल के माहौल को और सुंदर बनाया हुआ था। डा. हरेंद्र शर्मा शर्मा कालका के हैं और उस्ताद विलायत खां के शागिर्द हैं। सितारवादन में उन्होंने आज श्रोताओं को खूब लुभाया। आसपास घूम रहे पर्यटक छोटी चौपाल में आकर बैठ गए।
अपना घर स्टॉल बना आकर्षण का केंद्र
मेले में हरियाणा की प्राचीन विरासत को प्रदर्शित करता अपना घर (म्हारी संस्कृति, म्हारा ठिकाणा-विरासत हैरिटेज हरियाणा) स्टॉल सभी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। महिला, पुरूष व बच्चे इस स्टॉल में चारपाई पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ाते वृद्ध व उसके पौत्र के साथ सेल्फी लेते देखे जा सकते हैं। मेला परिसर में मुख्य चौपाल के पीछे डा. महासिंह पुनिया की देखरेख में स्थित स्टॉल पर हरियाणा प्रदेश की प्राचीन विरासत से जुडी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। स्टॉल में हरियाणा में किसानों द्वारा प्राचीन काल में खेती में प्रयोग किए जाने वाले औजारों को दिखाया गया है, इसमें बैलगाड़ी, गाड़ी के लोहे व लकड़ी के पहिये, बैलों का जुआ, ओरणा, ऊंट की कुल्ची, हाथ से चारा काटने की मशीन, जेली, गंडासी, खुर्पा, भूमि को समतल करने के लिए प्रयोग की जाने वाली बैलों की गोड़ी को प्रदर्शित किया गया है। प्राचीन वेशभूषा में घाघरा व खारा के अलावा विभिन्न 28 प्रकार की पगडियां भी प्रदर्शित की गई हैं।