रोहतक, 11 जुलाई (हप्र)
स्थानीय डीएलसी सुपवा के प्राध्यापकों द्वारा पिछले 71 दिन से अनोखे ढंग से किया जा रहा धरना प्रदर्शन चर्चा का विषय बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि डीएलसी सुपवा के तमाम शिक्षक एक और तो अपनी ड्यूटी पर रहकर नए दाखिलों में लगे हैं और बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं, वही ड्यूटी टाइम के बाद या दोपहर में भोजन के अवकाश के समय धरना देकर बैठ जाते हैं। कड़कड़ाती धूप हो, आंधी हो या बरसात शैक्षणिक कार्यों को बाधित किए विश्वविद्यालय के सभी काम करने के बाद छुट्टी के समय शांतिपूर्वक ढंग से अपनी मांगों की तख्तियां लेकर धरने पर बैठ जाते हैं।
संघ ने जोर देकर कहा कि निदेशालय से आए पत्र की अवहेलना हो रही है उसी को लागू करवाने के लिए सुपवा के शिक्षकों को अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है लेकिन कुलसचिव और कुलपति मांगों का निराकरण नहीं कर रहे। ग़ैर विशेषज्ञ नियुक्तियों को विशेष लाभ दिए जा रहे हैं लेकिन नियमितशिक्षकों को यूजीसी वेतनमान और पदोन्नति से मरहूम किया जा रहा है। संघ ने कहा कि विश्वविद्यालय के कुछेक अधिकारी एक से अधिक पदों पर आसीन है जबकि नियमित प्राध्यापकों को महत्वपूर्ण पदों और कमेटियों से बाहर रखा जाता है। संघ ने कहा कि प्रशासन शिक्षकों की मांगों का जल्दी से निवारण करें। हरियाणा कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन एचसीटीए के अध्यक्ष दयानंद मलिक व हरियाणा फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन (एचफुक्टो) महासचिव सुनील ने कहा कि डीएलसी सुपवा के शिक्षक वेतनमान एवं अन्य सुविधाओं को लेकर पिछले 12 वर्ष से संघर्ष कर रहे हैं लेकिन उन्हें सातवें वेतन आयोग का लाभ भी नहीं दिया जा रहा। उन्होंने कहा की डीएलसी सुपवा के शिक्षक विश्वविद्यालय के किसी भी कार्य को बाधित नहीं होने दे रहे हैं चाहे वह दाखिले की बात हो या शैक्षणिक कार्य की बात हो उसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन जिद्दी रवैया अपनाए हुए हैं। उन्होंने डीएलसी सुपवा प्रशासन से मांग की हैं कि वे सुपवा के शिक्षकों से बातचीत करें व यूजीसी पे स्केल और साथ ही सातवें वेतन आयोग की मांग को तत्काल प्रभाव से लागू करें।
ड्यूटी के बाद पहुंचते हैं धरनास्थल पर
डीएलसी सुपर शिक्षक संघ के अध्यक्ष इंद्रनील घोष ने बताया कि तमाम शिक्षक नए दाखिलों में लगे हैं और शैक्षणिक कार्यों को बिना बाधित किए विश्वविद्यालय के काम में लगे हैं लेकिन प्रशासन कोई सुनवाई नहीं कर रहा। उन्होंने कहा कि वह विश्वविद्यालय का कोई भी काम बाधित नहीं होने दे रहे इसीलिए शायद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दो महीने से मांगों का निवारण करना तो दूर, प्राध्यापकों से बातचीत भी नहीं की जा रही। शिक्षक संघ ने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा लेक्चरर से पुनःपद किए गए असिस्टेंट प्रोफेसरों को यूजीसी के अनुसार सैलरी नहीं दी जा रही। जिसके कारण उन्हें लगातार आर्थिक विषमता झेलनी पड़ रही है।