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चरचा हुक्के पै

बहनजी की खामोशी कांग्रेस वाली ‘बड़ी बहनजी’ की ‘खामोशी’ कांग्रेसियों को बेचैन कर रही है। भाजपा वाले भाई लोगों को इस चुप्पी के बहाने सांघी वाले ताऊ और उनके बेटे को घेरने का मौका मिल गया है। एससी समाज की...
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बहनजी की खामोशी

कांग्रेस वाली ‘बड़ी बहनजी’ की ‘खामोशी’ कांग्रेसियों को बेचैन कर रही है। भाजपा वाले भाई लोगों को इस चुप्पी के बहाने सांघी वाले ताऊ और उनके बेटे को घेरने का मौका मिल गया है। एससी समाज की अनदेखी का मुद्दा बनाकर भाजपा इसे भुनाने में जुटी है। ‘बहनजी’ की खामोशी और कांग्रेस के प्रति अंदरखाने चल रही नाराजगी को भाजपा अपने लिए फायदे का सौदा मानकर चल रही है। भाजपाइयों को उम्मीद है कि इस नाराजगी की वजह से एससी वोट बैंक में सेंधमारी की जा सकती है। इससे दो कदम आगे बढ़ते हुए अपने ‘काका’ ने तो ‘बहनजी’ को भाजपा में आने का आमंत्रण भी दे दिया है। हालांकि अभी तक स्थिति पूरी तरह से उलझी हुई है। अब हर किसी की नजर कांग्रेस वाली ‘बड़ी मैडम’ के अगले कदम पर है। उनका कदम क्या होगा, कुछ कह नहीं सकते, लेकिन कांग्रेसियों में जिस तरह की टेंशन देखने को मिल रही है, उससे इस बात का तो आभास हो गया है कि इन चुनावों में ‘बहनजी’ पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

समर्थकों की दूरी

अपने कैथल वाले नेताजी अपने पुराने ‘इतिहास’ को ही दोहरा पाए हैं। उनके साथ टिकट की बाट में बैठे कई नेताओं ने अब दूरी बना ली है। नेताजी अपने बेटे को विधानसभा की सीढ़ियां चढ़ाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। बताते हैं कि प्रदेशभर में नेताजी के समर्थकों को फोन करके कैथल बुलाया जा रहा है। इनमें से कइयों ने पूरी तरह से दूरी बना ली है। नेताजी की कार्यशैली से नाराज इन नेताओं का कहना है कि जब भी टिकट के लिए लड़ाई लड़ने की बात आती है तो नेताजी उनकी आवाज सही से नहीं उठाते। नेताजी के पास बेहतरीन प्लेटफार्म और ‘दिल्ली दरबार’ में मजबूत पकड़ के बाद भी समर्थकों को टिकट दिलवाने में नेताजी इस बार भी विफल रहे हैं। नेताजी के प्रति उनके समर्थकों में घर कर चुकी यह भावना इतनी आसानी से नहीं निकल पाएगी।

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कांग्रेसियों का कॉन्फिडेंस

विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार जोर पकड़ रहा है। भाजपा पूरी शिद्दत के साथ चुनावी बाजी पलटने की कोशिश में है। वहीं कांग्रेस वाले भाई लोगों का कॉन्फिडेंस कम होने का नाम नहीं ले रहा है। कॉन्फिडेंस भी क्या, कई कांग्रेसी तो ओवर-काॅन्फिडेंस में दिख रहे हैं। अति-आत्मविश्वास का ही नतीजा है कि चुनावी मैदान में डटे कई कांग्रेस उम्मीदवार खुद से अपना कंट्रोल भी खोते जा रहे हैं। उनके द्वारा की जा रही बयानबाजी आम लोगों के बीच चर्चाओं का विषय बनी हुई है। वहीं भाजपा वाले कांग्रेस नेताओं के बयान की वीडियो वायरल करने में जरा भी देर नहीं लगा रहे। भाजपा को लगता है कि कांग्रेस वालों की यह बयानबाजी भी बाजी पलटने में अहम भूमिका निभा सकती है।

पर्ची-खर्ची और नौकरी

इस बार सरकारी नौकरियां और ‘पर्ची-खर्ची’ बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में दो लाख सरकारी नौकरियां देने का ऐलान किया है। पिछले दस वर्षों के कार्यकाल में 1 लाख 40 हजार सरकारी नौकरियां दे चुकी भाजपा अपने मैरिट मिशन और ‘बिना पर्ची-खर्ची’ के नारे के बीच लोगों के बीच है। कांग्रेस ने दो लाख नौकरियां देने का वादा क्या किया, कांग्रेसियों को चुनाव लड़ने का बड़ा हथियार मिल गया। कई कांग्रेस उम्मीदवारों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे कह रहे हैं कि सरकार बनने के बाद पर्ची लेकर सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंचेंगे और हलके में कोटे से अधिक नौकरियां लगवाई जाएंगी। वहीं इस चुनाव में कांग्रेस के जिन नेताओं का सबकुछ दांव पर लगा है, उन्हें इस तरह के बयानों से पीड़ा हो रही है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि ‘बयान बहादुरों’ को रोकें भी तो कैसे।

जेलर का ‘वारंट’

दादरी में भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे ‘जेलर’ साहब ने अपने हलके के लिए अलग से चुनावी घोषणा-पत्र जारी किया है। 22 वर्षों से अधिक समय तक जेल में सेवा दे चुके ‘जेलर’ महोदय कानून व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बना रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जेल में रहते हुए अच्छे-अच्छे बदमाशों और गैंगस्टर को हेंडल किया है। ऐसे में दादरी से बदमाशों का पूरी तरह से सफाया कर दिया जाएगा। वैसे तो ‘जेलर’ साहब का यह पहला चुनाव है, लेकिन पूर्व में पिता के चुनावी कैम्पेन को पर्दे के पीछे रहकर संभालने का अनुभव अब काम आ रहा है। दादरी हलके के विकास के लिए रखा गया उनका विजन भी लोगों को पसंद आ रहा है। कांग्रेस के साथ कांटे की टक्कर में फंसे ‘जेलर’ साहब को चुनावी रण में सफल होने के लिए कड़ा पसीना बहाना होगा। यहां के हालात इस तरह के बने हुए हैं कि जीत का परचम लहराना न तो उनके लिए आसान है और न ही कांग्रेस के लिए। चुनौतियां दोनों तरफ ही बराबर की हैं।

दादा का प्रभाव

महेंद्रगढ़ वाले ‘बड़े पंडितजी’ यानी ‘दादा’ की टिकट क्या कटी, पूरे अहीरवाल में इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। तभी तो इस इलाके में इस बार ‘दादा’ की डिमांड पहले से कहीं अधिक हो रही है। भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रहे अधिकांश नेता ‘दादा’ को प्रचार के लिए बुला रहे हैं। इतना ही नहीं, अहीरवाल के साथ सटे हलकों के नेताओं की ओर से भाजपा नेतृत्व से की गई नेताओं की डिमांड सूची में दादा का नाम भी शामिल है। दरअसल, 55 वर्षों से संघ व भाजपा में पूरी तरह से एक्टिव ‘बड़े पंडितजी’ राज्य के हर हलके में अपने लिए कम-ज्यादा प्रभाव रखते हैं। अहीरवाल वाले ‘राजा साहब’ तो कह भी चुके हैं कि भाजपा ने ‘दादा’ का टिकट काटकर सही नहीं किया।

-दादाजी

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