चंडीगढ़, 15 सितंबर (ट्रिन्यू)
हरियाणा विधानसभा में गत वर्षों में हुए अभिनव प्रयोगों की अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चर्चा हुई है। चर्चा को 9 देशों और भारत की सभी विधायी संस्थाओं के प्रमुखों ने सुना। ‘पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के 100 वर्ष’ के उपलक्ष्य में बुधवार को वर्चुअल माध्यम से यह विशेष संवाद रखा गया। इस दौरान हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने गत वर्षों से हरियाणा में किए नए प्रयासों का विवरण पेश किया।
81वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में गुप्ता ने कहा कि संसदीय प्रणाली लोकतंत्र का सबसे अच्छा स्वरूप है। इसमें जनता, विधायिका और सरकार की भूमिकाएं निर्धारित हैं। विधायिका जनता और सरकार के बीच की कड़ी है। विधायिका को ‘लोगों की सामूहिक इच्छा’ भी कहा जाता है। प्रतिनिधि संस्था होने के नाते, विधायिका की शक्ति सरकार के राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यों की जांच करने की क्षमता में निहित है। इसका अंतिम लक्ष्य लोक कल्याण है और लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे करते हैं।
स्पीकर ने कहा कि हरियाणा में विधायी तंत्र को मजबूत और आदर्श बनाने के लिए गत वर्षों में अनेक नए प्रयोग किए जा रहे हैं। 14वीं विधान सभा के गठन के तुरंत बाद संविधान दिवस के अवसर पर 26 नंवबर 2019 को एक दिन का विशेष सत्र आयोजित किया गया था। इसी प्रकार उन्होंने बताया कि मातृशक्ति का सम्मान करने और राजनीतिक क्षेत्र में उनका उत्साह बढ़ाने के लिए विशेष प्रयोग किए जा रहे हैं। इस कड़ी में गत बजट सत्र के दौरान 8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर सदन की कार्यवाही का संचालन महिला विधायकों को सौंपा गया।
विधानसभा की ओर से दिए गए आदर्श विधायक पुरस्कार की चर्चा भी सम्मेलन में हुई। सदन की कार्यवाही के दौरान शून्यकाल को कार्यसूची का हिस्सा बनाने की सब ओर प्रशंसा की जा रही है। इससे विधायकों को अपनी बात रखने का अधिक अवसर मिल रहा है। उन्होंने कहा कि हरियाणा में अब कोई भी बिल आनन-फानन में पास नहीं किया जाता। निश्चित समयावधि पूर्व ही विधेयकों का मसौदा विधायकों को उपलब्ध करवा दिया जाता है। इससे उन्हें इस पर गहन अध्ययन का अवसर मिल जाता है। इसी का परिणाम है कि विधेयकों पर अब काफी गंभीर और तथ्यात्मक चर्चा होती है।
सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्व
पीठासीन अधिकारियों के इस अखिल भारतीय सम्मेलन का इतिहास सौ वर्ष का हो चुका है। इसकी शुरुआत अंग्रेजी शासन काल में हुई थी। पहला सम्मेलन वर्ष 1921 में 14-15 सितंबर को शिमला में हुआ था। बुधवार को वर्चुअल सम्मेलन के दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि शताब्दी वर्ष के निमित्त प्रत्यक्ष रूप से यह सम्मेलन अक्तूबर मास में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में आयोजित किया जाएगा। यह सम्मेलन लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से अनुभवों, नए विचारों और नवाचारों को साझा करने का एक सशक्त मंच साबित हुआ है।