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हुक्के पै चरचा

हरियाणा की राजनीति के चटपटे किस्से
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हरियाणा की राजनीति पानी की तरह नहीं है, जिसे कांच के गिलास में डालो तो साफ दिखाई दे जाए - यह तो हुक्के के धुएं जैसी है। दूर से सफेद, मुलायम और शांत दिखेगी, लेकिन भीतर उसकी चाल भी है, धार भी है और दिशा भी। यहां बयान सिर्फ बयान नहीं होते - ये इशारे होते हैं। चुप्पी सिर्फ मौन नहीं होती - ये संदेश होता है। और स्टाइल, कपड़े या अचानक गायब हो जाना?..., वो तो पूरी किताब खोल देता है। इस हफ्ते की राजनीतिक हलचलें भी ठीक ऐसी ही थीं -कहीं सख्त शब्द, कहीं शांत रणनीति, कहीं अप्रत्याशित फोटो, कहीं गायब चेहरे और कहीं भीड़ के इंतज़ार में धड़कती राजनीति। तो हुक्के की चिलम भर लो... आज की चुस्की सिर्फ खबर नहीं, सियासी तले हुए मूंगफली के दानों की तरह कुरकुरी है। 

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सच्चाई की कड़वी डोज

बादशाहपुर के राव साहब वैसे भी अपने साफ बोल और चटक अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस बार उनके शब्द सीधे दिल में लगे। बिहार के मधुबनी जिले से चुनावी ड्यूटी पूरी करके लौटे और देश की हवा का तुलनात्मक ब्यौरा लेकर आए। कहते हैं, ‘उधर एक्यूआई 15 था… हवा में ठंड थी, आसमान में तारे थे। और यहां? मशीनें 500 से ऊपर आंकड़ा दिखा ही नहीं पाती! असली स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब है।’ फिर उन्होंने एक कश लिया और बोले – ‘गुरुग्राम में रहकर मेरी उम्र कम हो रही है… कम से कम 10 साल।’ करवाचौथ की रात का जिक्र करते हुए बोले, ‘चांद देखने की कोशिश करो, तो बादल नहीं—प्रदूषण ढक रहा होता है। दूधिया चांद भी अब गुमनाम है।’ प्लास्टिक पर पाबंदी पर भी उनका तंज था – ‘सरकार ने रोक लगा रखी है, पर दुकानों में यूं बिक रहा है जैसे समोसे के साथ चटनी।’ और उनकी आखिरी लाइन तो मन पर धप्प से गिरती है – ‘मरने के बाद एक पेड़ हम खा जाते हैं… लेकिन जीते जी दो लगा दें तो आने वाली पीढ़ियों की सांस बच जाएगी।’

गब्बर का नया अवतार

अम्बाला कैंट वाले दाढ़ी वाले बाबा यानी जनता के बीच मशहूर नाम ‘गब्बर।’ आमतौर पर कुर्ता-पायजामा में ही देखे जाते हैं… लेकिन इस बार तस्वीर अलग थी। नीला कोट-पैंट, क्रीम शर्ट और लाल टाई। सोशल मीडिया देखते ही हलचल शुरू – ‘ये नेता हैं या कॉर्पोरेट बोर्ड मीटिंग के चेयरमैन?’ ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनीतिक गलियारों तक फुसफुसाहट एक जैसी - क्या यह सिर्फ कपड़े बदलना है या राजनीति का नया मोड़!

 

शांत लेकिन असरदार कदम

दिल्ली वाले बड़े काका बोलते कम हैं, करते ज्यादा हैं। इस बार उनका ध्यान बिजली के स्मार्ट मीटरों पर है। शुरुआत सरकारी भवनों से होगी। फिर धीरे-धीरे जनता तक पहुंचने का प्लान है। बिजली कंपनियों को घाटे से निकालकर, बिना घरेलू टैरिफ बढ़ाए फायदे में लाने का रिकॉर्ड भी उसी दौर का है। हफ्ते भर पुरानी एक राजनीतिक चुटकी अभी भी गूंज रही है -जब सफीदों वाले दादा ने कहा था कि भाजपा वर्करों के बच्चों को रोजगार में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। तो बड़े काका का जवाब था - सब जानते हैं नौकरी का सिस्टम क्या है… मुझे समझाने की ज़रूरत नहीं।’ उनकी बात में तल्खी नहीं, ठंडा लेकिन सटीक तर्क था, जो सीधे नीति पर वार करता है, व्यक्ति पर नहीं।

 

छोटी रकम बड़ी राहत बनी

प्रदेश की नायब सरकार ने लाडो लक्ष्मी योजना में बड़ा बदलाव किया है। छोटे काका ने हाल ही में 7 लाख बहनों के खातों में दूसरी किस्त ट्रांसफर की। तीसरी किस्त में बड़ा बदलाव - अब 2100 की जगह 6300 रुपये आएंगे। पहले चर्चा थी कि पैसा छह महीने में आएगा… लेकिन फिर फैसला हुआ हर तिमाही देने का। सरकार का तर्क है कि छोटी किस्त धीरे-धीरे खर्च हो जाती है, लेकिन बड़ा अमाउंट राहत देता है। और ये बात जनता भी महसूस कर रही है।

 

युवा कांग्रेस में खींचतान

युवा कांग्रेस में हालात थोड़े धुंधले हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदर्शन और एक्टिविटी से खुश नहीं बताया जा रहा। गुरुग्राम में राहुल गांधी के अभियान के तहत प्रदर्शन के फरमान जारी नहीं हुए। बात नहीं बनी तो वरिष्ठ उपाध्यक्ष सोमिल संधू को कमान सौंपी गई। फिर करनाल में पोस्टरों से प्रदेशाध्यक्ष का गायब चेहरा…। ये अब ज्यादा संयोग जैसा नहीं लगता। वरिष्ठ उपाध्यक्ष सोमिल संधू को जिम्मेदारी देकर संदेश साफ है कि कुर्सी तस्वीर से नहीं, काम से टिकती है।

 

दिल्ली की रैली - शक्ति-परीक्षा

14 दिसंबर की प्रस्तावित बड़ी रैली अब नजरों का केंद्र है। उम्मीद है कि सबसे अधिक भीड़ हरियाणा से पहुंचेगी। प्रभारी बीके हरिप्रसाद पूरी सक्रियता में हैं। इधर रोहतक के युवराज और सांघी वाले ताऊ... पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। दिल्ली से सटे एरिया में ताऊ का सबसे अधिक प्रभाव भी माना जाता है। ऐसे में नेतृत्व को उनसे उम्मीदें भी अधिक हैं। वहीं दूसरी ओर, सिरसा वाली बहनजी और कैथल वाले भाई साहब की जोड़ी चुपचाप अपना गणित बना रही है। इस रैली में सिर्फ भीड़ नहीं, भविष्य की रणनीति, चेहरा और दिशा तय होने की संभावना है।

 

पुराना ‘टाइगर’ लौटेगा या नया आएगा

हरियाणा पुलिस के नए मुखिया को लेकर स्थिति अभी साफ नहीं। शत्रुजीत कपूर की वापसी होगी या सूची में शामिल किसी वरिष्ठ अधिकारी को जिम्मेदारी दी जाएगी, इस पर चर्चा तेज है। लिस्ट बनने के बाद कई नाम दिल्ली से लेकर संघ तक लाइन में नजर आए। जो बताता है कि यह सिर्फ पोस्ट नहीं, पूरे सिस्टम की दिशा तय करने वाली कुर्सी है।

 

152 डी वाले डॉक्टर

152 डी एक्सप्रेसवे वाले नेता, जो कभी तेज रफ्तार राजनीति के प्रतीक थे। इन दिनों गायब हैं। पार्टी बदली, फिर वापसी हुई, लेकिन अब मौन रहकर सबको सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। समर्थक पूछ रहे हैं कि नेताजी किस मोड़ पर पार्क हो गए। उनके समर्थक यह भी कह रहे हैं कि अगर विधानसभा चुनावों के दौरान सफीदों से महेंद्रगढ़ तक फर्राटा न भरा होता तो आज सरकारी गाड़ी में फर्राटा भर रहे होते।

 

अस्थायी मुखिया और सुपर एक्टिविटी

मौजूदा अस्थायी पुलिस प्रमुख की तीन महीने की सुपर एक्टिविटी चर्चा में है। एक तरफ जनता प्रभावित तो दूसरी तरफ राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में बेचैनी। कहा जा रहा है कि जितनी तेजी से उन्होंने चर्चा बटोरी, उतनी ही तेजी से एक्सटेंशन की फाइल रुकी। अब इंतजार है कि ये एक्टिविटी उन्हें तोहफा दिलाएगी या टाइम-आउट।

 

आखिरी कश

हरियाणा की राजनीति स्थिर पानी नहीं - ये चलती हवा है। कभी गर्म, कभी ठंडी और कभी बिना आवाज़ झकझोरने वाली। किसका सितारा उठेगा, कौन गुमनाम होगा, किसकी चुप्पी फैसला बनेगी और किसका बयान तूफान - ये आने वाले हफ्ते तय करेंगे। फिलहाल हुक्का सुलग चुका है। अब देखना ये है कि धुआं किस दिशा में उड़ता है।

 

-दादाजी

 

 

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