हुक्के पै चरचा
हरियाणा की राजनीति का असली स्वाद तब आता है, जब चौपालों में हुक्के का धुआं उठता है और उसी के साथ सियासी चर्चाओं की लहर दौड़ पड़ती है। यहां अफवाहें भी हुक्के की तरह हैं - एक बार चिंगारी लगी नहीं कि चारों ओर फैल जाती हैं। इस हफ्ते तो यह धुआं और भी गाढ़ा था। किसी ने रैली से दम दिखाया, किसी की चिट्ठी दिल्ली दरबार में अटक गई, कोई जन्मदिन को शक्ति-प्रदर्शन में बदल रहा है और कोई नई योजनाओं से आधी आबादी का दिल जीतने में जुटा है। बड़े काका की फिटनेस दौड़ से लेकर छोटे काका की “लाडो-लक्ष्मी” चाल तक - हर कोने में गपशप और गहमागहमी है।
बिल्लू की दमदार एंट्री
ताऊ देवीलाल जयंती पर बिल्लू भाई साहब ने रोहतक में रैली कर साफ कर दिया कि इनेलो की धड़कन अभी थमी नहीं है। 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार और पिता का साया उठने के बाद यह उनका पहला बड़ा शक्ति प्रदर्शन था। उन्होंने अपने दादा की तरह ओल्ड रोहतक को नई कर्मभूमि बनाने का मन बना लिया है। रोहतक में मकान भी ले लिया है, ताकि जनता से सीधा जुड़ाव बना रहे। सांघी ताऊ के गढ़ में सेंधमारी की कोशिश भी की गई। अब यह कितना सफल होगा, ये तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन इस रैली ने उनका ‘रोहतक पासपोर’ पक्का कर दिया है।
राव साहब की चिट्ठी अटकी
अहीरवाल के राव साहब को कांग्रेस की प्रधानी मिलने की चर्चाओं ने पिछले हफ्ते जमकर मिठाई बंटवा दी। फोन पर बधाइयां दी गईं, समर्थकों ने जश्न भी मना लिया। लेकिन पटना में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद पता चला कि उनके नाम की चिट्ठी जारी ही नहीं हुई। बताते हैं कि दिल्ली दरबार के एक हरियाणवी करीबी की ‘विटो पावर’ ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए। कांग्रेस में फैसले टलने और नाम कटने-जुड़ने की पुरानी परंपरा है, इसलिए राव साहब के समर्थकों को फिर इंतजार करना होगा।
जजपा का युवा फिर मैदान में
बाढ़ के कारण जिलावार कार्यक्रम रोकने वाले पूर्व छोटे सीएम अब फिर से बैठकों में जुट गए हैं। रविवार को जींद और सोनीपत से सिलसिला शुरू किया। चाचा की रोहतक रैली में जजपा पर आए तीखे हमलों के बाद उन पर दबाव और बढ़ा है। 2019 में 10 सीटों के बूते करीब साढ़े चार साल सत्ता सुख लेने के बाद अब उनकी राह कांटों भरी दिख रही है। हालांकि राजनीति में याददाश्त छोटी होती है - यही उम्मीद उन्हें ऊर्जा दे रही है।
कुलदीप का जन्मदिन शो
‘कुल’ के दीप ने आदमपुर में जन्मदिन को शक्ति-प्रदर्शन में बदल डाला। बेटे की हार और लंबे राजनीतिक सन्नाटे के बाद यह इशारा है कि नई पारी शुरू हो रही है। समर्थकों की भीड़ ने दिखा दिया कि जमीन अभी भी साथ है। कुलदीप के पास समर्थकों की कमी कभी नहीं रही, लेकिन पिता जैसा राजनीतिक हुनर उनमें नहीं रहा। 2024 के झटके ने शायद उन्हें सबक दिया हो - अब देखना है कि क्या वह इस मौके को भुना पाते हैं।
बड़े काका की फुर्ती
दिल्ली वाले बड़े काका की फुर्ती का जवाब नहीं। गन्नौर में एक सामाजिक कार्यक्रम में वे मंच पर दौड़ते हुए पहुंचे और वीडियो वायरल हो गया। किसी ने कहा कि यह युवाओं को फिटनेस का संदेश है, तो गलियारों में फुसफुसाहट है कि काका की ‘सियासी दौड़’ अभी खत्म नहीं हुई - वे और लंबी रेस लगाने के मूड में हैं। उनका केंद्रीय नेतृत्व से गहरा जुड़ाव भी यही संकेत देता है।
गब्बर का तिकड़ी मिलन
अंबाला के ‘दाढ़ी वाले बाबा’ यानी गब्बर ने हाल ही में ‘समानांतर भाजपा’ का आरोप जड़कर सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया से ‘मिनिस्टर’ शब्द भी हटा दिया। फिर अचानक दिल्ली में बड़े और छोटे काका से मुलाकात की खबरें आईं। कहा जा रहा है कि गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश हुई। अब सच क्या है, इसका जवाब बाबा का अगला पोस्ट ही देगा।
बहनजी का केक कॉम्पिटीशन
सिरसा वाली बहनजी के जन्मदिन पर समर्थकों ने खुलकर ताकत दिखाई। अखबारों में विज्ञापन दिए गए और जगह-जगह केक काटे गए। मजेदार संयोग यह कि सांघी वाले ताऊ का जन्मदिन भी इसी महीने आता है, जिससे बधाई की होड़-सी लग गई। दोनों ओर से शक्ति प्रदर्शन ने गलियारों में चर्चा तेज कर दी।
छोटा काका का बड़ा दांव
‘छोटे काका’ ने ‘दीनदयाल लाडो-लक्ष्मी’ योजना का ऐलान कर आधी आबादी को लुभाने का बड़ा दांव खेला है। पहले चरण में करीब 22 लाख महिलाओं को 2100 रुपये मासिक की आर्थिक मदद देने का वादा सिर्फ सामाजिक कल्याण नहीं बल्कि 2029 के चुनाव के लिए बड़ा मास्टरस्ट्रोक भी है। हंसमुख चेहरे के पीछे चुनावी रणनीति कितनी गंभीर है, यह कदम साफ दिखा रहा है।
आखिरी कश
हरियाणा की इस हफ्ते की सियासी चौपाल में हुक्के का धुआं जितना गाढ़ा था, चालें उससे भी ज्यादा पेचीदा रहीं। हर चौपाल में, हर नुक्कड़ पर लोग यही कह रहे हैं कि हरियाणा की राजनीति में कोई भी चाल आखिरी नहीं होती। यहां हार भी रणनीति है और खामोशी भी इशारा। तो पाइप कस कर पकड़िए, क्योंकि आने वाले दिनों में हरियाणा की सियासत में और भी नया दम, नई गूंज और नई कहानियां निकलने वाली हैं। ‘सियासत का दम वही है, जो अगली सुबह नए रंग के साथ फिर उठे। यहां धुआं कभी थमता नहीं, बस दिशा बदलता है।’
-दादाजी