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हुक्के पै चरचा

हरियाणा की राजनीति के चटपटे किस्से
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हरियाणा-पंजाब की राजनीति इस हफ्ते पानी-पानी रही। जो नेता मंचों से जनता को जोशीला भाषण सुना रहे थे, वे अचानक घुटनों तक पानी में उतरकर किसानों के हाल पूछते मिले। कोई धान की डूबी फसल पर हाथ फेरता दिखा, तो कोई कपास के खेत में फोटो खिंचवाता। नेता लोग पानी नापने में लगे रहे, जनता राहत ढूंढ़ती रही। इधर, हरियाणा के सियासी जत्थे ने तिरुपति बालाजी में मत्था टेका, उधर बिहार की आग हरियाणा तक पहुंच गई। जीएसटी की राहत, लाडो-लक्ष्मी की सौगात, कांग्रेस जिलाध्यक्षों की टेंशन और किल्की वाले ठहाके – सबने हफ्ते को रंगीन बना दिया। कुल मिलाकर, इस बार हुक्के के कई फ्लेवर देखने को मिले।स्पीकर की नई शुरुआत

स्पीकर हरविन्द्र कल्याण ने मानवीय पहल करते हुए एक माह का वेतन मुख्यमंत्री राहत कोष में देने का ऐलान किया। साथ ही, बाकियों को भी हाथ खोलने की अपील कर दी। राजनीति में अक्सर लोग भाषणों से काम चलाते हैं, लेकिन कल्याण ने जेब से नोट निकालकर शुरुआत की। अब देखना यह है कि उनकी अपील पर बाकी ‘बड़े-बड़े भाखड़े’ कितने नरम पड़ते हैं।

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बाढ़ में धुली रणनीतियां

भाजपा, कांग्रेस, इनेलो और जजपा सब सक्रिय मोड में थे। रैलियां तय थीं, कार्यकर्ता सम्मेलन पक्के थे और सोशल मीडिया पर शोर-शराबा भी। लेकिन बाढ़ ने सबके इरादों में सेंध लगा दी। नेताओं को मंच छोड़कर खेतों का रास्ता पकड़ना पड़ा। कोई गन्ने में भीगा, कोई धान में डूबा, तो कोई ट्रैक्टर पर बैठकर दुख सुनता मिला। जजपा ने सारे सम्मेलन रद्द कर दिए और पूर्व मंत्री रणजीत सिंह ने हिसार की मीटिंग टाल दी। यानी पानी ने राजनीति का पूरा कैलेंडर धो डाला।

दरबार में हरियाणवी जत्था

सांघी वाले ताऊ, हिसार के दाढ़ी वाले नेताजी, कार्यकारी प्रधान टैग वाले पंडितजी और हरिद्वार–सोनीपत वाले पंडितजी - सब दिल्ली से विमान पकड़कर तिरुपति बालाजी पहुंच गए। सबने मत्था टेका, फोटो खिंचवाई और दुआ मांगी - प्रदेश की खुशहाली के लिए। जनता कहती है - “दुआएं तो ठीक हैं, पर पहले ये बताओ, खेतों में पानी कब निकलेगा?”

सैनी हवा में

भाजपा के एक बुजुर्ग सांसद का वीडियो वायरल हुआ। विधानसभा का सपना अधूरा रह गया, लेकिन मनोहर कृपा से राज्यसभा मिल गई। मंच पर सीएम नायब सैनी की मौजूदगी में उन्होंने किस्सा सुनाया - “जैसे चौ़ चरण सिंह की रैली में हरे खंडके को देखकर चौधरी बोला था, म्हारा जाट हवा में घूमण लाग रहया सै, वैसे ही अब नायब सैनी हवा में घूमण लाग रहया सै।” नेताजी ने ठेठ अंदाज में यह भी कह दिया - “काम तुरंत न हो तो टेंशन मत लो, साल-दो साल में सब निपट ही जाएगा।” यानी जनता को भरोसा भी और इंतजार का सब्र भी।

लाडो-लक्ष्मी बनाम जीएसटी

सरकार ने दीनदयाल लाडो-लक्ष्मी योजना का ऐलान कर दिया। पहली नवंबर को 20 लाख बेटियों के खातों में 2100 रुपये पहुंचेंगे। चुनावी वादा पूरा करने पर भाजपा ने प्रचार की तैयारी भी कर ली थी। तभी जीएसटी काउंसिल ने टैक्स दरें घटाकर राहत दे दी। नतीजा – प्रचार का रुख बदल गया। लाडो-लक्ष्मी थोड़ी देर के लिए ‘होल्ड’ पर और जीएसटी पर प्रेस कांफ्रेंस। हरियाणा के दाढ़ी वाले छोटे काका ने बाकायदा आंकड़े गिनाते हुए जनता को समझाया कि “कितना फायदा किसको मिलेगा।”

कांग्रेस जिलाध्यक्षों की टेंशन

कांग्रेस जिलाध्यक्षों पर दो टॉस्क आ गिरे। दस दिन में जिला मुख्यालय पर दफ्तर खोलो और एक महीने में ब्लाक प्रधानों व बूथ एजेंटों की लिस्ट दो। लेकिन कांग्रेस के बड़े चौधरी मानते हैं कि ब्लाक प्रधान तो वही बनाएंगे। नतीजा यह हुआ कि नए जिलाध्यक्षों की हालत वैसी हो गई जैसे कुएं के आगे खाई और पीछे दिल्ली दरबार। किसी ने तंज कस दिया - “कांग्रेस के जिलाध्यक्ष होना इस वक्त वैसा ही है, जैसे शादी में बारात आई हो और दूल्हा ही गायब हो।”

गुरु-शिष्य की झलक

शिक्षक दिवस पर गुरुग्राम में मेट्रो विस्तार परियोजना का शिलान्यास हुआ। मंच पर हरियाणा के छोटे काका और दिल्ली वाले बड़े काका एक साथ दिखे। छोटे काका ने खुले मंच से कहा - “हरियाणा की परियोजनाओं पर बड़े काका का आशीर्वाद है।” गुरु-शिष्य की इस जोड़ी ने मंच पर मुस्कान बिखेर दी। दर्शक बोले - “राजनीति में भी गुरु-दक्षिणा का जमाना है।”

पीयू चुनाव और कांग्रेस की फजीहत

पंजाब यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनावों में एनएसयूआई पिछड़ गई। रोहतक वाले युवराज नए चेहरे पर दांव लगाना चाहते थे, लेकिन दिल्ली दरबार ने अपनी पसंद का नाम थोप दिया। हार के बाद कांग्रेस खेमे में मायूसी है। ऊपर से एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शिकायत करने वाले पदाधिकारी को ही चलता कर दिया। छात्रों ने ठिठोली की - “यहां हार भी मिली और सजा भी।”

किल्की और ठहाके

नरवाना से जीतकर आए ‘भाई साहब’ ने बांगर बेल्ट में रैली की। सीएम छोटे काका मुख्य अतिथि थे। मंच पर भाई साहब ने कहा - “17 साल से किस्मत पर ताला था, अब ताला खुल गया।” फिर ठेठ लहजे में बोले - “कल्ली ताली मत बजाओ, किल्की भी मारो। नरवाना और जींद में तो बिना किल्की के ब्याह भी कोनी हो।” लोगों ने किल्कियों से माहौल गूंजा दिया और मंच पर बैठे भी हंसी रोक न पाए।

आखिरी कश

इस हफ्ते की राजनीति बाढ़ के पानी में तैरती रही, आस्था की उड़ानों में उड़ती रही और जीएसटी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गिनती करती रही। नेता कभी खेतों में धान नापते दिखे, कभी मंदिरों में मत्था टेकते और कभी हेलीकॉप्टर से हवा खाते। जनता अब भी पूछ रही है - “किसकी किस्मत खुलेगी, किसका ताला बंद रहेगा और राहत आखिर कब मिलेगी?” नेताओं की किल्कियों और ठहाकों के बीच लोग अब बस उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब सियासी किस्सों से ज्यादा हकीकत में उन्हें चैन की सांस मिले।

-दादाजी

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