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चरचा हुक्के पै

हरियाणा की राजनीति के चटपटे किस्से

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गांव की चौपाल में हुक्के की गुड़गुड़ का मजा ही कुछ और है। कोई चना-गुड़ तो कोई लस्सी लाता है और फिर शुरू होती है राजनीति की गपशप। धुएं के छल्लों के साथ होती है हंसी-ठिठोली और खुलती हैं गंभीर मुद्दों की परतें। इस हफ्ते तो हुक्के का स्वाद कुछ खास ही रहा क्योंकि विधानसभा का मानसून सत्र जैसे चौपाल का ही विस्तार बन गया। बाहर मौसमी बारिश थी और सदन में सियासी सवालों के छींटे पड़ रहे थे। नेताओं के तेवरों ने सदन का तापमान ऐसा बढ़ाया कि एयरकंडीशनर भी पसीना-पसीना हो गया।

‘अटैक इज बेस्ट डिफेंस’

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हरियाणा की राजनीति में दाढ़ी वाले ‘छोटे काका’ की छवि अब बदलने लगी है। अभी तक उन्हें मजाकिया लहजे के लिए जाना जाता था, लेकिन इस बार विधानसभा में उनके तेवर देखकर विपक्ष के पसीने छूट गए। कांग्रेस ने क्राइम पर काम रोको प्रस्ताव रखा और सोचा कि सरकार पर अटैक करेंगे, लेकिन छोटे काका तो पूरी तैयारी से आए थे। क्राइम की पुरानी किताबें खोलीं और विपक्ष की पूर्व सरकारों के रिकॉर्ड निकाल लिए। विपक्ष की कोशिश थी सरकार को घेरने की, लेकिन काका ने हर सवाल का जवाब देने से पहले विपक्ष की ही चिट्ठी खोल दी। नतीजा ये रहा कि विपक्ष ने भाषा पर सवाल उठाए, असंतोष जताया और वॉकआउट कर दिया। चौपाल पर बुजुर्गों ने कहा – “भई, काका ने साबित कर दिया कि राजनीति में सीधा वार नहीं, पलटवार ही सबसे बड़ा हथियार है।”

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बिना कप्तान के कांग्रेसी

अब बात कांग्रेस की। पिछले 11 महीने में दूसरी बार ऐसा हुआ कि विधानसभा का पूरा सत्र कांग्रेस ने बिना अपने कप्तान के खेला। मानो कोई क्रिकेट टीम मैदान में उतर गई हो लेकिन कप्तान की जगह खाली हो। राहुल गांधी ने जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी कर दी, लेकिन विधायक दल के नेता का फैसला अब तक अटका पड़ा है। सत्र के दौरान सबको उम्मीद थी कि विपक्ष को नेता प्रतिपक्ष मिलेगा, लेकिन राहुल गांधी बिहार में वोट चोरी का मुद्दा लेकर यात्रा निकालने में मशगूल हैं। हरियाणा कांग्रेस के कई नेता भी उनके साथ वहां कदमताल कर रहे हैं। गांव के लोग चौपाल पर कह रहे थे – “अरे भई, बिहार में तो वोट चोरी का मामला है, पर हरियाणा में तो नेता ही चोरी हो गया लगता है!” अब हालत यह है कि कांग्रेस के पास विधायक तो हैं, लेकिन कोई कप्तान नहीं। बिना कप्तान के नाव कितनी दूर जाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा।

सदन में जलभराव के छींटे

मानसून सत्र का सबसे बड़ा मुद्दा बारिश और जलभराव रहा। खेतों में जमा बरसाती पानी से फसलें चौपट हो गईं। नहरों और नदियों के कच्चे तटबंध हर साल टूट जाते हैं, और गांव-शहर के घरों में पानी घुस जाता है। विपक्षी विधायकों ने सवाल उठाए, लेकिन खास बात यह रही कि सत्तारूढ़ दल के विधायक भी उसी सुर में सरकार से पूछने लगे – “तटबंध पक्के कब होंगे? गाद कब निकलेगी? मुआवजा कब मिलेगा?” सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी पर सवालों की बौछार होती रही। हर तीसरा सवाल उनके खाते में आता। गांव के चौधरी बोले – “बरसात का पानी निकले या न निकले, पर सवालों की छींटे मंत्रीजी की ओर जरूर उछलते रहे।”

माननीयों की बल्ले-बल्ले

मानसून सत्र का सबसे खुशनुमा पल तब आया जब सरकार ने विधायकों के लिए तोहफों का खजाना खोल दिया। पहले सालाना सैर-सपाटा भत्ता एक लाख रुपये तक सीमित था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1.20 लाख कर दिया गया है। हर महीने दस हजार मिलेंगे, साल का हिसाब खुद लगाओ। यही नहीं, घर और गाड़ी के लिए लोन लेने की उम्र सीमा भी हटा दी गई है। पहले 60 साल की उम्र पार होते ही यह हक खत्म हो जाता था, अब माननीय चाहे जितनी उम्र में हों, लोन ले सकते हैं। ब्याज दर भी केवल चार प्रतिशत। गांव के बुजुर्ग बोले – “भई, जनता चाहे पानी-पानी हो रही है, पर माननीयों की बल्ले-बल्ले तो पक्की है।”

बहनजी के नये तेवर

झज्जर वाली बहनजी इस बार विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा चर्चा में रहीं। क्राइम से लेकर किसानों तक, उन्होंने हर मुद्दा आक्रामक अंदाज में उठाया। बिना नेता प्रतिपक्ष के सत्र चला, लेकिन बहनजी ने अपने तेवरों और हावभाव से यह जता दिया कि वे ही विपक्ष की कप्तान हैं। तथ्यों के साथ अपनी बात रखने का उनका अंदाज अलग ही है। यही कारण है कि उनके सवालों पर न केवल सरकार बल्कि पूरा प्रशासन भी चौकन्ना हो जाता है। गांव में लोग कहने लगे – “बहनजी ने दिखा दिया कि विपक्ष के पास नेता बेशक नहीं है, पर मुद्दे बुलंद करने वाले हाथ अब भी तैयार हैं।”

डबल एक्शन में जजपा

इनेलो और जजपा का झगड़ा नया नहीं, लेकिन इस बार मुकाबला और दिलचस्प होने वाला है। इनेलो के बिल्लू भाई साहब 25 सितंबर को देवीलाल जयंती पर रोहतक में बड़ा शो करने की तैयारी कर रहे हैं। उधर, जजपा ने पांच से 14 सितंबर तक सभी जिलों में सम्मेलन का ऐलान कर दिया है। अजय चौटाला और दुष्यंत चौटाला मोर्चा संभालेंगे। वहीं जजपा के एंग्री यंगमैन ने युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए “युवा योद्धा” सम्मेलन की घोषणा कर दी है। गांव की चौपाल पर चर्चा छिड़ गई – “अब देखना ये है कि असली वारिस कौन निकलेगा – चाचा या भतीजा।”

छात्र संघ चुनाव

रोहतक वाले युवराज, यानी कांग्रेस के युवा सांसद, फिर से छात्र राजनीति की ओर लौट आए हैं। उन्होंने चंडीगढ़ में एनएसयूआई पदाधिकारियों से बैठक की और पंजाब यूनिवर्सिटी के चुनाव को लेकर तैयारी तेज कर दी। कई नए छात्र नेताओं को भी जोड़ लिया, जिससे पुराने नेताओं को तकलीफ हो रही है। यह पहली बार नहीं है। युवराज पहले भी दिल्ली और पंजाब यूनिवर्सिटी के चुनावों में दखल देते रहे हैं और कई बार जीत भी दिला चुके हैं। गांव में बैठे नौजवान कह रहे थे – “नेताजी को लोकसभा से ज्यादा मोह तो अभी भी यूनिवर्सिटी के चुनाव से है।

युवाओं की आवाज

इस बार युवाओं के मुद्दे भी सदन में गूंजे। बादली वाले पंडितजी ने 5600 कांस्टेबल भर्ती का मामला उठाया। भर्ती सालों पहले शुरू हुई थी, लेकिन बीच में रोक दी गई और तब से दोबारा शुरू नहीं हुई। सरकार ने जवाब दिया कि प्रक्रिया जल्द शुरू होगी, लेकिन युवाओं की नाराजगी साफ दिख रही है। गांव के छोरे कह रहे थे – “जल्द का मतलब कब तक? खाकी पहनने का सपना कब पूरा होगा?

अंतिम कश

मानसून सत्र इस बार सच में बरसात का मौसम नहीं बल्कि सियासत का मौसम बन गया। कोई आंकड़ों की आंधी लेकर आया, तो कोई कप्तान की तलाश में भटकता रहा। बहनजी ने विपक्ष का नेतृत्व संभाला। जजपा और इनेलो ने ताकत का मस्सल शो तय कर लिया और कांग्रेस के नेता छात्र राजनीति में ही सुकून तलाशते नजर आए। किसानों ने जलभराव की मार झेली, नौजवान भर्ती की आस लगाए बैठे हैं, और जनता अपने सवालों के जवाब खोज रही है। लेकिन जब बात माननीयों की आती है तो उनका हाल तो “गाय भले दुबली हो, बछड़ा कभी भूखा नहीं रहता” जैसा है — भत्ते भी बढ़े, लोन भी खुल गए, और सैर-सपाटा भी तय हो गया।

-दादाजी

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