‘चाचा’ पर नजर
रानियां वाले ‘चाचा’ इस बार चुनावी ‘रण’ में ‘जीत’ हासिल नहीं कर सके। हालांकि 2019 की तरह ही उनके सामने हालात पैदा हो गए थे। 2019 में कांग्रेस ने टिकट काट दी थी तो इस बार भाजपा से ‘न्याय’ नहीं मिल पाया। ऐसे में ‘चाचा’ ने फिर से निर्दलीय ही भाग्य आजमाया लेकिन चूक गए। पिछले दिनों हिसार में ‘चाचा’ ने ऐलान कर दिया कि सितंबर-अक्तूबर में वे प्रदेश स्तर की रैली करेंगे। नई पार्टी बनाने के संकेत भी उन्होंने दिए। ैसे चाचा के परिवार की पहले से दो पार्टियां इनेलो व जजपा चल रही हैं। अगर ‘चाचा’ भी नये झंडे-डंडे के साथ मैदान में आते हैं देवीलाल परिवार के वे तीसरे ‘लाल’ होंगे, जिनका खुद का राजनीतिक दल होगा।
नये दौर की पॉलिटिक्स
इनेलो वाले बड़े चौधरी यानी ‘बिल्लू भाई साहब’ पार्टी को नये सिरे से मजबूत करने की कोशिश में हैं आैर एक नये फार्मूले को अपनाने का फैसला लिया है। उन्होंने घोषणा की है कि जल्द ही पार्टी मोबाइल एप लांच करेगी। इस एप के जरिये वे जनता की समस्याओं का समाधान करवाने की कोशिश करेंगे। एप पर लोग अपनी समस्याएं दर्ज करवा सकेंगे। यानी बिल्लू भाई साहब अब ‘एप पॉलिटिक्स’ के जरिये जहां सीधे जनता से जुड़ेंगे वहीं सरकार के साथ भी दो-दो हाथ करते नजर आएंगे।
फिर बढ़ा इंतजार
भाजपा वाले ‘प्रधानजी’ का इंतजार लम्बा होता जा रहा है। ऐसा लगता है कि पंडितजी की ग्रहचाल इन दिनों ठीक नहीं है। हाईकमान 18 राज्यों में प्रदेशाध्यक्षों की घोषणा कर चुका है लेकिन हरियाणा को फिर ‘वेटिंग’ में डाल दिया। माना जा रहा है कि कसौली की ‘साढ़ेसाती’ भाजपा वाले ‘पंडितजी’ पर भारी पड़ रही है। 14 जुलाई को सोलन कोर्ट में सुनवाई है। फैसला आने की भी उम्मीद है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व की नजर भी फैसले पर है। हो सकता है, इसके बाद पंडितजी के ‘भाग्य’ का भी फैसला हो।
डिनर पर सियासत
अहीरवाल वाले ‘राजा साहब’ के डिनर ने प्रदेश की राजनीति में खलबली मचाई हुई है। मंत्री बेटी की कोठी पर रात्रिभोज का आयोजन वैसे तो नायब सरकार की कैबिनेट मंत्री ने किया था लेकिन इसमें ‘राजा साहब’ मुख्य भूमिका में थे। हालांकि मंत्री का अपने एरिया व संपर्क वाले विधायकों संग डिनर करना गलत भी नहीं था लेकिन ‘राजा साहब’ के विरोधियों ने इसे ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का नाम देकर सियासत में तूफान उठाने का काम किया। हल्ला मचने के बाद ‘राजा साहब’ को सफाई देनी पड़ी। कहने लगे – यही डिनर भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। इसके और कोई मायने नहीं निकाले जाने चाहिएं।
लाल की दौड़
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में हरियाणा के ‘लाल’ का नाम भी चर्चाओं में है। प्रदेश में करीब साढ़े नौ वर्षों तक सत्ता का मुख्य केंद्र रहे ‘बड़े काका’ को और भी बड़ा पद मिलने की चर्चाओं के बीच अधिकांश नेताओं की नजर दिल्ली पर ही टिकी हैं। माना जा रहा है कि दिल्ली से जल्द ही अध्यक्ष पद को लेकर फैसला हो सकता है। वहीं ‘बड़े काका’ के दिल्ली जाने के बाद प्रदेश के कुछ नेताओं व अफसरों की चंडीगढ़ में ‘चौधर’ कम हो गई थी। अब वे उम्मीद कर रहे हैं कि ‘बड़े काका’ को नई जिम्मेदारी मिलती है तो उनका रुतबा चंडीगढ़ से दिल्ली तक दौड़ता नजर आएगा।
राहुल के फार्मूले से टेंशन
जिलाध्यक्षों के चयन की प्रकिया से गुजर रही कांग्रेस को राहुल गांधी के फार्मूले ने टेंशन में डाल दिया है। प्रदेश कांग्रेस के नब्बे प्रतिशत नेताओं की बेचैनी बढ़ी हुई है। शहरी व ग्रामीण मिलाकर कुल 33 जिलाध्यक्ष बनने हैं। इन पदों के लिए 1100 से अधिक नेताओं ने आवेदन किया है। यह अपने आप में बड़ा रिकार्ड है। दिक्कत इस बात की है कि राहुल ‘सामाजिक न्याय’ के फार्मूले पर जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। अगर फार्मूला अमल में लाया गया तो आधे जिलाध्यक्ष पदों पर नये चेहरे दिखेंगे। जिले की ‘चौधर’ के लिए लॉबिंग और भाग-दौड़ करने में जुटे नेताओं की हार्ट-बीट भी इस फार्मूले ने बढ़ाई हुई है।
इमेज बिल्डिंग
अपने दाढ़ी वाले ‘छोटे काका’ की इमेज बिल्डिंग में उनकी टीम बड़े पैमाने पर जुटी है। संत कबीर कुटीर पर आ रहे लोगों की प्रतिक्रिया लेकर ‘छोटे काका’ के व्यवहार, वर्किंग और सरकार की उपलब्धियों गिनवाकर उनके रसूख को शिखर पर ले जाने का काम किया जा रहा है। उनका महिमामंडन कई भाई लोगों की टेंशन बढ़ा रहा हैं। यह पब्लिसिटी उन्हें चुभने लगी है। हालांकि छोटे काका के समर्थक इससे बाग-बाग हैं।
पहाड़ों में मिला रसूख
बादली वाले नेताजी यानी ‘छोटे स्वामीनाथन’ पर भाजपा नेतृत्व पूरी तरह से मेहरबान है। सरकार में भागीदारी से वंचित नेताजी को नई-नई जिम्मेदारी दी जा रही है। पिछले दिनों उन्हें लद्दाख में पार्टी अध्यक्ष के फैसले के लिए चुनाव अधिकारी बनाकर भेजा गया। लद्दाख चूंकि ठंडा इलाका है, इसलिए ‘छोटे स्वामीनाथन’ भी पूरा इंतजाम कर निकले। उनके समर्थकों ने भी इस जिम्मेदारी को खूब भुनाने का काम किया। कह सकते हैं कि नेतृत्व लगातार उनकी राजनीति को ‘संजीवनी’ दे रहा है।
मेम्बरशिप का चैलेंज
जजपा वाले ‘छोटे सीएम’ के सामने मेम्बरशिप ड्राइव बड़ा चैलेंज है। 2018-19 में लोगों का जो समर्थन उन्हें मिला, वह नहीं मिल पा रहा है। हालांकि अब उनकी पार्टी के नेताओं व समर्थकों को भी इस बात का अहसास हो गया है कि 2019 में भाजपा संग सरकार बनाना उनके लिए महंगा सौदा साबित हुआ है। बेशक, करीब साढ़े चार वर्षों तक सत्ता का सुख भोगा लेकिन अब सड़कों पर उतने ही पसीने भी बहाने पड़ रहे हैं।
ताऊ का इंतजार
सांघी वाले ताऊ का इंतजार भी लम्बा होता जा रहा है। 2019 से 2024 तक नेता प्रतिपक्ष रहे सांघी वाले ताऊ इसी इंतजार में हैं कि कब पार्टी नेतृत्व विधायक दल के नेता का फैसला करे। खुद ताऊ व उनके समर्थकों को लगता है कि यह जिम्मेदारी एक बार फिर उन्हें ही मिलेगी। तभी तो उन्होंने अपनी पसंदीदा कोठी नंबर-70 को खाली भी नहीं किया है। हालांकि फैसला अब राहुल गांधी के स्तर पर ही होना है। विधानसभा का मानसून सत्र नजदीक है। बजट सत्र भी बिना नेता प्रतिपक्ष निकला था। अगर देरी हुई तो मानसून सत्र भी कांग्रेस बिना लीडर के ही निकले।
-दादाजी।