बजट घोषणाओं को ट्रैक पर लाने में जुटी नायब सरकार
सीएम आवास - संत कबीर कुटीर इन दिनों व्यवस्था सुधार का ‘ग्राउंड जीरो’ बन गया है। यहां विभागवार राउंड टेबल लगाकर मंत्रियों, विधायकों और अफसरों का सीधा सामना कराया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने सभी विभागों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। एक तरफ वे खुद विभागवार बैठकें ले रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने विधायकों को भी विभागीय अधिकारियों से सीधे जवाब लेने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री आवास के खुले लॉन में हाल ही में आयोजित राउंड टेबल मीटिंग इसका बड़ा उदाहरण रही।
लॉन में विभागवार टेबलें लगीं और हर टेबल पर मौजूद थे संबंधित विभागों के प्रशासनिक सचिव, एचओडी, अधिकारी और यहां तक कि वे ‘बाबू’ भी जो फाइलें चलाते हैं। पहले चरण की इस बैठक में राजस्व व आपदा प्रबंधन, गृह, पीडब्ल्यूडी (भवन एवं सड़कें), स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, सिंचाई, स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा, विकास एवं पंचायत, शहरी स्थानीय निकाय सहित मुख्यमंत्री घोषणाओं से जुड़े सभी अधिकारी मीटिंग में मौजूद रहे।
विधायकों की सीधी क्लास में बैठे अफसर
बैठक में खास बात यह रही कि विधायकों को विभागवार टाइम स्लॉट दिया गया था। जिस विधायक की बारी आई, सीधे उसी टेबल पर पहुंचकर उसने संबंधित अधिकारियों से अपने क्षेत्र की बजट घोषणाओं, अधूरे कामों और समस्याओं पर जवाब मांगा। यह व्यवस्था अफसरों के लिए नई थी। खासकर उन अतिरिक्त मुख्य सचिव रैंक के अधिकारियों के लिए, जो आमतौर पर एचओडी और ‘फील्ड लेवल स्टाफ’ के साथ ऐसी खुली जवाबदेही मीटिंग में सहज नहीं होते। लेकिन इस बार उन्हें भी पूरी तरह बैठना पड़ा और विधायकों की तीखी टिप्पणियां सुननी पड़ी।
दो विभागों की सबसे खराब परफॉर्मेंस
मीटिंग में सबसे ज्यादा शिकायती स्वर दो विभागों के खिलाफ उठे। इनमें विकास एवं पंचायत तथा शहरी स्थानीय निकाय विभाग शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि विधायकों ने इन दोनों विभागों की फाइल मूवमेंट, काम की धीमी रफ्तार और बजट घोषणाओं पर शून्य प्रगति को लेकर खुलकर नाराजगी जताई। हालत इतनी खराब थी कि सीएम ने बैठक खत्म होने के बाद इन दोनों विभागों के अधिकारियों को अलग से बुलाकर कड़ी फटकार लगाई। दिलचस्प बात ये कि दोनों ही विभागों के शीर्ष पदाधिकारी सीएमओ से जुड़े अधिकारी हैं, इसलिए विधायकों का गुस्सा सीधे सीएमओ तक पहुंचा।
एचआरडीएफ फंड में 15 दिनों से 6 महीने तक की देरी!
बैठक में कई विधायकों ने एचआरडीएफ फंड को लेकर गंभीर सवाल उठाए। यह फंड विकास कार्यों की लाइफलाइन माना जाता है, लेकिन हाल में इसके वितरण में अत्यधिक देरी देखी जा रही है। कैबिनेट मंत्री कृष्ण बेदी ने तो सीएमओ के एक अधिकारी से सीधा सवाल दाग दिया – ‘मनोहर लाल खट्टर के समय में एचआरडीएफ का पैसा जिलों तक 15 दिन में पहुंच जाता था। अब छह-छह महीने क्यों लग रहे हैं।’ अधिकारियों के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं था। ये मामला भी सीएम द्वारा नोट किया जा चुका है। मीटिंग के दौरान यह साफ दिखा कि वरिष्ठ अधिकारी, खासकर एसीएस स्तर के, इस फॉर्मेट में सहज नहीं हैं। फील्ड स्तर के कर्मचारियों के साथ बैठकर जवाब देना और विधायकों के सामने विभाग की कमियों पर चर्चा करना उन्हें असहज लग रहा था। लेकिन मुख्यमंत्री का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि ग्राउंड रियल्टी बदलेगी तो व्यवस्था बदलेगी। फाइलों में प्रगति दिखाने से काम नहीं चलेगा।
जनसंवाद पोर्टल महीनों से ठप
विधायकों ने बैठक में एक और बड़ा मुद्दा उठाया - जनसंवाद पोर्टल। यह सीएम की अगुवाई में बनाई गई वह प्रणाली है जिसमें जनता और विधायक, दोनों की समस्याएं दर्ज होती हैं। लेकिन कई विधायकों ने बताया कि पोर्टल 6 महीनों से अपडेट नहीं हुआ। क्षेत्रीय मांगें अपलोड की तो गईं, लेकिन उनकी स्थिति वही की वही है। समाधान शिविरों के बाद जो शिकायतें भेजी गई थीं, वे भी पेंडिंग हैं। सीएम ने इस पर भी कड़ा संज्ञान लेते हुए कहा कि पोर्टल का अस्तित्व तभी है जब उसमें पारदर्शिता और समयबद्ध कार्रवाई हो।
8 दिसंबर को कैबिनेट बैठक
बैठक के राजनीतिक महत्व पर भी नजर रखी जा रही है। 8 दिसंबर को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक होगी जिसमें शीतकालीन सत्र पर अंतिम फैसला लिया जाएगा। संभावना है कि यह सत्र 26 दिसंबर के आसपास बुलाया जाए और लगभग 3 दिन चले। इसके बाद फरवरी-मार्च में बजट सत्र होगा, जिसमें नायब सिंह सैनी अपनी सरकार का दूसरा बजट पेश करेंगे।
