अजय मल्होत्रा/हप्र
भिवानी, 3 जून
ग्रामीणों में कोरोना का इतना खौफ है कि वह बीमार होने के बाद भी बड़े अस्पतालों का रुख नहीं कर रहे हैं। ग्रामीण गांव में ही क्लिनिक खोले बैठे डॉक्टर (आरएमपी/बीएएमएस) से दवाई लेने में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में कोविड सेंटर होने और ओपीडी का समय कम कर दिए जाने के कारण सामान्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को इलाज कराने में परेशानी हो रही है। इसी वजह से गांवों के डॉक्टरों के यहां 3 से 4 गुना तक मरीजों की संख्या बढ़ गई है। गांव वाले कोरोना से इतने डरे हुए हैं कि वह इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में नहीं जा रहे। उन्हें लगता है कि सरकारी अस्पताल में उन्हें बंद कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं निजी अस्पतालों में ओपीडी एक तिहाई रह गई है। केवल गंभीर बीमारी वाले मरीज ही अस्पतालों में आ रहे हैं।
भिवानी के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में इन दिनों कोविड मरीजों का इलाज चल रहा है। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में सीएचसी व पीएचसी में भी कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन बेड लगाए गए हैं, जिस कारण ग्रामीण यहां भी जाने से कतरा रहे हैं। भिवानी के नागरिक अस्पताल तो पिछले दिनों पूरी तरह से ही कोविड अस्पताल में बदल दिया गया था। यही नहीं, ओपीडी ब्लाक में भी कोरोना के मरीज दाखिल किये गए थे, जिस कारण कई दिन तक तो ओपीडी पूरी तरह से बंद रही। ओपीडी बंद होने से यहां मरीजों का आना बंद हो गया है।
आईसीयू में बदला ऑपरेशन थियेटर
चौ. बंसीलाल नागरिक अस्पताल के 250 बेड कोविड वार्डों में तबदील कर दिये जाने से सभी सरकारी डाक्टरों को भी कोविड वार्ड में भेज दिया गया था। इसी वजह से दूसरी बीमारियों का इलाज नहीं हो पा रहा। यहां तक कि अस्पताल का ऑपरेशन थियेटर भी आईसीयू में बदल दिया गया। यही स्थिति भिवानी के ईएसआई अस्पताल की है, यहां के अधिकांश डाक्टरों को पानीपत के कोविड स्पेशल अस्पताल में भेज दिया गया था।
एक तिहाई बीमार आ रहे अस्पताल
भिवानी स्थित अंचल नर्सिंग होम के संचालक डा. विनोद अंचल का कहना है कि निजी अस्पतालों में मरीज आने से कतरा रहे हैं। अकसर यहां पर भारी मात्रा में मरीज आते रहे हैं लेकिन इस वक्त केवल एक तिहाई मरीज ही आ रहे हैं, वे भी केवल गंभीर बीमारी या पोस्ट कोविड बीमारी से ग्रस्त हैं। मेटरनिटी के मामले भी आ रहे हैं।
मरीजों की संख्या में आ रही कमी
अब धीरे-धीरे कोविड के मरीजों की संख्या में कमी आने से अस्पताल के आधे वार्ड खाली हो चुके हैं। इनमें दोबारा अन्य बीमारियों के मरीजों को दाखिल किया जा रहा है, लेकिन अभी भी डर के कारण मरीज अस्पताल में आने से गुरेज कर रहे हैं। भिवानी के नागरिक अस्पताल में आमतौर पर ओपीडी में मरीजों की संख्या 1800 से 2000 हजार तक रहती है, लेकिन आजकल ओपीडी का समय कम करने से 400-500 मरीज ही अस्पताल आ रहे हैं। हड्डी रोग, ईएनटी, मेडिसन आदि के ही मरीज थोड़े बहुत आ रहे हैं। सर्जरी के भी मरीजों को अस्पताल में आज से दाखिला शुरू किया गया है।
टायफाइड की दवा से हो रहा इलाज
गांव उमरावत के संदीप कुमार ने बताया कि लोग छोटी-मोटी बीमारियों के लिए या जो बीमारियां जानलेवा नहीं हैं, उनके लिए गांव में ही इलाज कराना ही उचित समझते हैं। गांव में आमतौर पर लोग कोविड का टेस्ट करवाने से बचते हैं। गांव के डाक्टर भी कोविड के लक्षण होने के बावजूद मरीजों को टायफाइड बताकर उनका इलाज शुरू कर देते हैं। ऐसे में गंभीर कोविड मरीजों को दी जाने वाली स्टीरायड (डक्सोना) इंजेक्शन भी बेहिसाब मरीजों पर इस्तेमाल किये गए हैं।
गलत दवा से मरीज की हालत हो रही गंभीर
सीनियर डाक्टरों का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में मौत ज्यादा हुई हैं। ग्रामीण इलाकों में शुरुआती दौर में भी स्टीरायड देने के कारण कई मरीजों में एंटीबॉडी नहीं बन पाती और उनकी हालत बिगड़ जाती है। हालत बिगड़ने पर परिजन उन्हें शहर के अस्पतालों में लेकर दौड़ते हैं, जहां उनके बचने की उम्मीद काफी कम रह जाती है। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो भिवानी के ग्रामीण इलाकों में अन्य जिलों से ज्यादा मृत्यु दर रही है। यहां मृत्युदर 2.4 फीसदी है, जिसका एक बड़ा कारण कहीं न कहीं इलाज में लापरवाही बरतने को बताया जा रहा है। भिवानी नागरिक अस्पताल के एसएमओ एवं सर्जन डा. कृष्ण कुमार का कहना है कि हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं और उम्मीद है कि 15 जून तक स्थिति में सुधार होगा और ज्यादा मरीज अस्पताल में आएंगे।