डबवाली: डॉ. के.वी. सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने 'सरदार' पटेल व इंदिरा गांधी को दी श्रद्धांजलि
Indira Gandhi Martyrdom Day: लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती और देश की आयरन लेडी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के बलिदान दिवस के अवसर पर आज पूर्व विधायक अमित सिहाग के कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया...
Indira Gandhi Martyrdom Day: लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती और देश की आयरन लेडी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के बलिदान दिवस के अवसर पर आज पूर्व विधायक अमित सिहाग के कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ. के.वी. सिंह ने की। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने दोनों महान नेताओं के चित्रों पर पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया।
इस अवसर पर शहरी प्रधान पवन गर्ग, डेलीगेट विजय वर्मा, पूर्व पार्षद विनोद बंसल, जगसीर मिठड़ी, राकेश बाल्मिक, इंद्र जैन, प्रवक्ता अमन भारद्वाज, बाबूराम वर्मा, रामदिता मेहता, सुंदर दास, निर्मल सिंह कंडा, पार्षद भारत भूषण, प्रशांत गर्ग, रविंद्र बबलू, मास्टर सुखवंत चीमा, पवन चुघ, मास्टर मदन सिंह, डॉ. मदन, पूर्व पार्षद आत्माराम, सुखमंदर सिंह प्रधान, सोनू मोंगा, डॉ. नानक व मंगत बांसल सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
सरदार पटेल को याद करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में उन्होंने देश की 560 रियासतों का एकीकरण कर इतिहास रच दिया। हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों को भारत के तिरंगे के नीचे लाना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। बारडोली और खेड़ा में किसानों के हित में किए गए आंदोलनों की सफलता के बाद ही उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली थी।
स्व. इंदिरा गांधी के योगदान पर बोलते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश ने विकास की नई ऊंचाइयां छुईं। उन्होंने गरीबी उन्मूलन के लिए ठोस कदम उठाए और 20 सूत्रीय कार्यक्रम के माध्यम से देश को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर किया। इंदिरा गांधी ने कभी स्वार्थ की राजनीति नहीं की और राष्ट्रहित में कठोर निर्णय लेने से भी नहीं हिचकिचाईं। देश सेवा करते हुए उन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
डॉ. सिंह ने कहा कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने भारत को डराने के लिए अपना सातवां बेड़ा भेजा था, तब इंदिरा गांधी ने दृढ़ता से कहा था कि 'चाहे सातवां नहीं, सत्तरवां बेड़ा भी भेज दो, भारत अपनी प्रभुता से समझौता नहीं करेगा।'
उन्होंने वर्तमान परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आज के प्रधानमंत्री अमेरिकी दबाव में हैं और जब अमेरिकी राष्ट्रपति युद्ध रोकने की अपीलें करते हैं, तब भी खामोश रहते हैं।

