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सीएम नायब सैनी ने संभाला मोर्चा, बजट घोषणाओं की समीक्षा करने में जुटे

विधायकों की शिकायत पर मुख्यमंत्री का कड़ा नोटिस, विभागों को दी कड़ी हिदायतें

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मुख्यमंत्री नायब सैनी।
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इस साल मार्च के बजट की जिन घोषणाओं से गांवों और शहरों की सूरत बदलने का दावा किया गया था, वही योजनाएं आज शहरी स्थानीय निकाय विभाग और विकास एवं पंचायत विभाग की सुस्ती की भेंट चढ़ती दिख रही हैं। ‘स्मार्ट गली’, ‘स्मार्ट रोड’ और ‘स्मार्ट बाजार’ जैसी हाई-प्रोफाइल घोषणाओं पर काम शुरू न होने से विधायक खुलकर नाराजगी जता चुके हैं और अब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भी दोनों विभागों के अफसरों को सख़्त संदेश दे दिया है।

सरकार जहां 2026-27 के बजट की तैयारी में आगे बढ़ रही है, वहीं इन दो विभागों की वजह से पुरानी घोषणाएं सवालों के घेरे में आ गई हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने मोर्चा संभालते हुए विभागवार बजट घोषणाओं की समीक्षा भी शुरू कर दी है। प्री-बजट बैठकें शुरू करने से पहले मुख्यमंत्री पुरानी घोषणाओं का पोस्टमार्टम कर रहे हैं ताकि 31 मार्च से पहले उन्हें सिरे चढ़ाया जा सके।

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बीते कुछ महीनों में विधायकों की ओर से मुख्यमंत्री तक बार-बार यह बात पहुंची कि उनके क्षेत्रों में सिर्फ इन्हीं दो विभागों से जुड़ी बजट घोषणाएं ठप पड़ी हैं। न गांवों में स्मार्ट गली की शुरुआत दिख रही है और न शहरों में स्मार्ट रोड या स्मार्ट बाजार की कोई ठोस हलचल। इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री ने दोनों विभागों की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए और साफ कहा कि घोषणाएं सिर्फ कागजों के लिए नहीं होतीं। मुख्यमंत्री की नाराजगी के बाद दोनों विभागों ने बजट घोषणाओं को दोबारा खंगालना शुरू कर दिया है।

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योजनाओं के प्रारूप तैयार करने और देरी की भरपाई की कोशिशें हो रही हैं। सरकार के भीतर यह संकेत भी हैं कि अगर जल्द प्रगति नहीं हुई, तो जवाबदेही तय हो सकती है। स्मार्ट गली और स्मार्ट बाजार जैसी योजनाएं अगर समय पर ज़मीन पर नहीं उतरतीं, तो सवाल सरकार से नहीं, बल्कि इन दो विभागों की कार्यक्षमता से जुड़ जाता है। अब निगाहें इस पर हैं कि मुख्यमंत्री की सख्ती के बाद क्या ये घोषणाएं हकीकत बनेंगी या फिर ये भी बजट भाषणों की सूची में दर्ज एक अधूरा वादा बनकर रह जाएंगी।

गांवों के लिए सबसे बड़ा वादा, सबसे धीमा काम

विकास एवं पंचायत विभाग को बजट में हर गांव में एक स्मार्ट गली विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। योजना के मुताबिक यह गली पक्की होने के साथ बेहतर ड्रेनेज, स्ट्रीट लाइट, सीसीटीवी कैमरे और वाई-फाई जैसी सुविधाओं से लैस होनी थी। लेकिन बजट के महीनों बाद भी विभाग स्मार्ट गली का प्रारूप तक तय नहीं कर पाया। न यह स्पष्ट हो सका कि डिजाइन कैसा होगा, न लागत तय हुई और न किसी गांव में पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ। नतीजतन, गांवों में यह योजना चर्चा तक सीमित रह गई है।

निकाय विभाग की ‘स्मार्ट’ योजनाएं भी ठंडे बस्ते में

शहरी स्थानीय निकाय विभाग को हर शहर में एक स्मार्ट रोड और एक स्मार्ट बाजार बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। स्मार्ट रोड में ड्रेनेज, सीवरेज, स्ट्रीट लाइट, सीसीटीवी कैमरे और वाई-फाई सुविधा देने का वादा था। योजना यह भी थी कि स्मार्ट बाजार को जोड़ने वाली सड़क को ही स्मार्ट रोड के रूप में विकसित किया जाएगा। विधायकों ने सुझाव दिया था कि स्मार्ट बाजार का डिजाइन एकसार हो। दुकानों के बोर्ड, बाहरी पेंट और स्ट्रक्चर एक थीम में हों, जैसा कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बाहर की मार्केट में किया गया है। लेकिन जमीनी स्तर पर यह पूरी योजना अब तक शुरुआत की बाट जोह रही है।

पार्किंग, पार्क और शौचालय भी अधर में

इन दोनों घोषणाओं में पार्किंग व्यवस्था, सार्वजनिक शौचालय और आसपास खाली जमीन होने पर पार्क विकसित करने का प्रावधान भी था। मकसद था गांवों और शहरों - दोनों में नागरिक सुविधाओं को बेहतर बनाना। लेकिन फिलहाल यह पूरा विज़न फाइलों और नोटशीट्स में सिमटकर रह गया है। यह भी तय हुआ था कि भीड़भाड़ वाले एरिया में मल्टी लेवल पार्किंग की संभावनाओं को तलाशा जाएगा, लेकिन फिलहाल यह योजना भी ठंडे बस्ते में ही पड़ी है।

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