तरुण जैन/निस
रेवाड़ी, 20 अगस्त
‘मेरे बेटों के बारे में मत पूछो और न ही उनका जिक्र करो। भगवान ऐसी संतान किसी को न दे।’ यह कहते हुए 67 वर्षीय बिमला देवी रो पड़ीं। वृद्धाश्रम यानि ओल्ड एज होम में रह रही बिमला देवी ने जब यह बात कही तो उनके पास बैठे कुछ अन्य बुजुर्गों की आंखें भी नम हाे गईं। उन्होंने रो-रोकर घर से वृद्धाश्रम तक आने के अपने कष्टदायी सफर के बारे में विस्तार से बताया।
नगर के सरकुलर रोड स्थित वृद्धाश्रम ‘आस्था कुंज’ में इस समय 13 बुजुर्ग पिछले कई वर्षों से रह रहे हैं। यहां रह रहे 9 पुरुष और 4 महिला बुजुर्गों के लिए बाहर की दुनिया उनके लिए बैरंग है। कुछ परिवार के सताये तो कुछ परिवार खोकर यहां अपना बाकी का जीवन गुजार रहे हैं। कुछ बुजुर्गों के रिश्तेदार, परिजन व पड़ोसी उनसे मिलने के लिए आते हैं, लेकिन उन्हें वापस ले जाने के लिए कोई नहीं आता। कुछ बुजुर्ग तो दशकों से यहां शरण लिए हुए हैं। गुरुचरण सिंह 1947 में देश विभाजन के समय पाकिस्तान से यहां आये थे और तभी से यहीं रह रहे हैं। सभी बुजुर्ग अपना-अपना दुखड़ा एक-दूसरे का सुनाकर मन को हलका कर लेते हैं।
बेटे दो, रखना एक भी नहीं चाहता
गांव गोरिया की बिमला देवी ने बताया कि उसके दो बेटे हैं, लेकिन उसे कोई नहीं रखना चाहता। जिन बच्चों को उन्होंने पाल-पोसकर बड़ा किया, उन्हें अब हम बोझ दिखाई देते हैं। वह अचानक घर छोड़कर यहां आ गई, उसके बेटों को अभी तक यह पता नहीं है और न ही उन्हें वह याद करना चाहती है। बिमला देवी ने बताया कि यहां तक का सफर बहुत कष्टदायक रहा है, लेकिन यहां आने के बाद जैसे उसका दूसरा जन्म हुआ है। यहां वह बहुत खुश है। वृद्धाश्रम में उनकी मदद करने को आने वाले लोग ही अब परिवार के सदस्य जैसे दिखाई देते हैं।
एक महीने का खर्च 60 हजार रुपये
वृद्धाश्रम की सहायक अधिकारी संतोष यादव ने बताया कि इन वृद्धजनों पर महीने में 60 हजार रुपये का खर्च आता है। दूध, राशन व अन्य चीजों के बिल प्रशासन के पास जमा कराये जाते हैं। बुजुर्गों को 4 कमरों में इनको रखा गया है। बिजली-पानी की पूरी सुविधा है। प्रशासन वृद्धाश्रम के नये भवन का निर्माण करायागा।