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बांगर के चौधरी आपसी फूट के कारण नहीं बन सके हरियाणा के सरताज

दलेर सिंह/हप्र जींद(जुलाना), 5 सितंबर एक वह भी जमाना रहा जब ‘जींद’ रियासत का हर फरमान यहां राजा के किले से ही निकलता था। संगरूर, नरवाना, जींद, जुलाना, सफीदों, दादरी इत्यादि क्षेत्रों के लोग उस फरमान की तालीम वर्षों तक...
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दलेर सिंह/हप्र

जींद(जुलाना), 5 सितंबर

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एक वह भी जमाना रहा जब ‘जींद’ रियासत का हर फरमान यहां राजा के किले से ही निकलता था। संगरूर, नरवाना, जींद, जुलाना, सफीदों, दादरी इत्यादि क्षेत्रों के लोग उस फरमान की तालीम वर्षों तक करते रहे। आज वह भी समय है,जब जींद अपने संपूर्ण विकास के लिए तरस रहा है और दूसरे क्षेत्रों के सियासी महारथियों के मुंह की ओर ताकता रहता है।

खाटी बांगर की धरती जींद राजाशाही काल से ही अपनी विशेष पहचान रखती थी। इतिहासकार जितेंद्र अहलावत के अनुसार रणक्षेत्र कुरुक्षेत्र भूमि के दक्षिणी द्वार जींद की धरती से ही महाभारत की शुरुआत और अंत होता है।

जींद की धरती की बदकिस्मती यह रही है कि आपसी फूट के कारण ही बांगर का कोई चौधरी हरियाणा प्रदेश का सरताज (मुख्यमंत्री) नहीं बन सका।

इस तरह खिसकी जींद के हाथ से सत्ता

वर्ष 1967-68 में जब बंसीलाल प्रदेश के पहली बार मुख्यमंत्री बने। उस समय जुलाना के तत्कालीन विधायक चौधरी दल सिंह भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे। उनके बेटे एंव जुलाना के पूर्व विधायक परमेंद्र सिंह ढुल बनाते हैं कि उस समय विधायकों का बहुमत तो चौधरी दलसिंह के साथ था,लेकिन जिले के ही कई विधायकों ने विरोध कर दिया, जिसके कारण चौधरी दल सिंह मुख्यमंत्री नहीं बन पाये।

कांग्रेस में न जाते तो सीएम होते दल सिंह: परमेंद्र ढुल

वर्ष 1975 में आपातकाल के समय भारतीय क्रांति दल (चौ.चरण सिंह) की पार्टी से विधायक चौधरी दल सिंह सहित कांग्रेस विरोधी दलों कई नेता जेल में बंद थे तो विपक्ष की ओर से उनका नाम मुख्यमंत्री के पद लिए तय किया जा रहा था। परमेंद्र सिंह ढुल के अनुसार उस समय चौधरी दल सिंह जेल में बंद थे तो उन्हें दिल का दौरा पड़ गया वे मेडिकल ग्राउंड पर पैरोल पर बाहर आ गये और कांग्रेस में शामिल हो गये। जिले सिंह,समुंद्र सिंह दुहन, बलवान सिंह समेत क्षेत्र के कई बुजुर्ग बताते हैं कि कि यदि चौधरी दल सिंह उस समय कांग्रेस में शामिल न होते तो वे अगले चुनाव में मुख्यमंत्री अवश्य बनते।

किस-किस को पहुंचाया सत्ता के शिखर पर

वर्ष 1986 में ताऊ देवीलाल ने जींद में समस्त हरियाणा सम्मेलन नाम से एक ऐतिहासिक रैली की, जो संभवत:उनकी सबसे बड़ी रैली मानी जाती है। जींद की इस रैली से देवीलाल ने न्याय युद्ध की शुरूवात की, जिसकी बदौलत 1987 में उन्हें अपने अन्य सहयोगी दलों के साथ 90 में से 85 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और बाद में देश के उप-प्रधानमंत्री पद तक भी पहुंचे। वर्ष 1991 में भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाने में भी जींद की भूमिका रही। कहा जाता है कि उस समय बांगर के दिग्गज कांग्रेस नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह और शमशेर सुरजेवाला आपस में उलझ गये, जिसके चलते मुख्यमंत्री की कुर्सी चौधरी भजनलाल को मिली। वर्ष 1995 में बंसीलाल ने हविपा सुप्रीमो रहते जींद में हरियाणा बचाओ प्रदेश स्तरीय बड़ी रैली की।

इस रैली से हरियाणा में हविपा का जनाधार बढ़ा और फिर वर्ष 1996 में भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनी। ओमप्रकाश चौटाला वर्ष 2000 के चुनाव में जींद के नरवाना विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनकर मुख्यमंत्री बने। चौ. भूपेंद्र हुड्डा वर्ष 2005 से 2014 तक मुख्यमंत्री रहे। उनका ननिहाल भी जींद के उचाना क्षेत्र के डूमरखां गांव में है। वर्ष 2019 के चुनाव में दुष्यंत चौटाला भी जींद के उचाना कलां से विधायक बने और भाजपा के साथ साझे की सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने।

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