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चरचा हुक्के पै

नेताजी के बोल अपने कांग्रेस वाले ‘प्रधानजी’ की फिसली जुबान ने ना केवल उनकी खुद की बल्कि पूरी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पीएम और सीएम को लेकर उनके द्वारा की गई टिप्पणी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो...
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नेताजी के बोल

अपने कांग्रेस वाले ‘प्रधानजी’ की फिसली जुबान ने ना केवल उनकी खुद की बल्कि पूरी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पीएम और सीएम को लेकर उनके द्वारा की गई टिप्पणी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है। बेशक, हरियाणवी अंदाज में लोग इस तरह की बातें करते भी हैं, लेकिन गरिमा वाले पद पर बैठे व्यक्ति को मर्यादित शब्दों का ही इस्तेमाल करना चाहिए। गांवों में तो बहुत सी बातों का चलन है, लेकिन इन बातों को पब्लिक प्लेटफार्म पर नहीं किया जा सकता। वैसे नेताजी को मीडिया ने भूल सुधार करने का एक मौका भी दिया था, लेकिन साहब अपनी बात पर अड़े रहे। दो-टूक कहा – मैंने कुछ गलत नहीं कहा। जो जैसा है, उसके बारे में वैसा ही कहा है। अब नेताजी को क्या पता था, ‘संघी भाई’ इसे इतना बड़ा मुद्दा बना देंगे और बात ‘मोहब्बत की दुकान’ तक जा पहुंचेगी। खैर, अब तो तीर निकल चुका है, लेकिन कमान को कितना ही वापस खींच लो तीर लौटकर नहीं आएगा।

जुबां पर आया दर्द

बांगर वाले चौधरी बड़े परेशान, हैरान और नाराज हैं। उनके खुद के एरिया के लोगों के प्रति वे नाराज हैं। यह नाराजगी किसी और बात को लेकर नहीं बल्कि इस बात को लेकर है कि उनके इलाके में भी अब लोगों के दिलो-दिमाग में सांघी वाले ताऊ घर कर गए हैं। पिछले दिनों एरिया में पब्लिक मीटिंग के दौरान चौधरी साहब का दर्द जुबां पर आ गया। कहने लगे, पहले यहां के लोगों को चौ. देवीलाल के नाम का सुरूर चढ़ा हुआ था। आजकल नया सुरूर चढ़ा हुआ है। यह सुरूर है पूर्व सीएम हुड्डा का। बोले, लोगों को लगता है पता नहीं हुड्डा क्या कर देंगे। दरअसल, वे अपने इलाके के लोगों को फिर से वही पुरानी घुट्टी पिलाने की कोशिश में जुटे हैं, जो बांगर को अभी तक पिलाते आए हैं। जी हां, बांगर की चौधर।

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एनडीए और ‘इंडिया’

हरियाणा के दो सियासी दल ऐसे हैं, जो एक ही परिवार से हैं, लेकिन दोनों के लिए ‘एनडीए’ और ‘इंडिया’ मजबूरी बने हुए दिख रहे हैं। एक नेताजी जहां एनडीए का पार्ट हैं और इस कोशिश में जुटे हैं कि यह रिश्ता लम्बा चले। अब इसमें किसी तरह का विवाद पैदा न हो। रिश्तों की डोर कभी टूटे ना। इसके लिए हरसंभव कोशिशें हो रही हैं। वहीं दूसरे नेताजी बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि जैसे-तैसे ‘इंडिया’ में पार्टनर होने का सौभाग्य हासिल हो जाए। एक वर्ग विशेष की वोट के बूते लम्बे समय तक प्रदेश में एक्टिव और मजबूत रह चुके बड़े दल के जब टुकड़े हुए तो नुकसान दोनों को ही हुआ। हालांकि एक दल सत्ता का सुख भोग रहा है और दूसरा इससे बेचैन भी है। यह देखना बड़ा रोचक रहेगा कि आने वाले दिनों में एक ही परिवार के इन दोनों दलों का इंडिया और एनडीए के प्रति ‘प्रेम’ कितना गाढ़ा और अटूट रहता है या फिर पुरानी राहों पर फिर से हाथ-पैर मारने पड़ेंगे।

छोटी सरकार की बेकरारी

फरीदाबाद वाले ‘प्रधानजी’ भी इन दिनों बड़े बेकरार हैं। वे ‘छोटी सरकार’ में आने की जुगत में हैं। बेशक, दो बार से मोदी कैबिनेट में शामिल हैं, लेकिन अब दिल्ली में मन नहीं लग रहा। चंडीगढ़ लौटना चाहते हैं। बताते हैं कि प्रधानजी ने अपनी इच्छा के बारे में पार्टी को बता भी दिया है। फिलहाल तो उनकी रिक्वेस्ट को नेतृत्व द्वारा पेंडिंग में डालने की सूचना है। राहत की बात यह है कि प्रधानजी के निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा ‘माननीय’ भी ‘बड़ी पंचायत’ में जाने के इच्छुक हैं। अगर दोनों ही बातें सही हैं तो फिर नेतृत्व को भी वाइस-वरसा करने में दिक्कत नहीं आएगी। अब देखना यह अहम होगा कि नेतृत्व दोनों नेताओं की मन की मुराद पूरी करता है या नहीं।

‘माजरा’ क्या है

चौटाला परिवार के नजदीकियों में शामिल रहे कैथल-कलायत वाले नेताजी ‘तिराहे’ पर हैं। वे एक ओर जहां कलायत से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने का ख्वाब पाले हुए हैं वहीं उचाना में भी अपने लिए संभावनाएं टटोल रहे हैं। इनेलो से वैसे तो दूरी बनाई हुई है, लेकिन 25 सितंबर को उनके गृह जिला कैथल में होने जा रही चौ. देवीलाल जयंती पर रैली से उन्होंने परहेज नहीं किया है। हालांकि कलायत में चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन कोशिशें फिर भी रुकने का नाम नहीं ले रही। बताते हैं कि नेताजी ने अब यह तो लगभग तय कर लिया है कि 2024 में विधानसभा का चुनाव जरूर लड़ना है। अगर यहां-वहां बात नहीं बनी तो वे निर्दलीय भी चुनावी रण में आ सकते हैं। चूंकि उन्हें कहीं न कहीं यह अहसास हो गया है कि अगर दूसरी बार भी मैदान खाली छोड़ दिया तो दूसरे नेता उनकी ‘सियासी जमीन’ पर कब्जा कर लेंगे। लोगों में भी चर्चा है कि आखिर यह पूरा ‘माजरा’ क्या है, जो नेताजी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं।

धारा-144

अपने ‘काका’ के जनसंवाद इन दिनों खूब चर्चाओं में हैं। मंत्रियों के बाद अब सभी भाजपाई सांसदों को भी कह दिया है कि वे भी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जनसंवाद शुरू करेंगे। कुछ भाई लोगों ने इसकी शुरुआत करने का कार्यक्रम भी तय कर दिया है। लेकिन इस बीच धारा-144 भी चर्चाओं में है। ये आम आदमी वालों ने भी जीना दूभर किया हुआ है। पता नहीं क्यों ‘काका’ के पीछे पड़े हुए हैं। ऐसे में या तो ऐसे लोगों को नजरबंद करना पड़ता है या फिर धारा-144 लगाई जाती है। यहां-वहां, जहां-तहां कभी भी कहीं भी धारा-144 लगी नजर आ सकती है।

मंझदार में फंसे चौधरी

केंद्र में मंत्री रह चुके और एक समय में पूरे घर में ‘चौधर’ देख चुके नेताजी इन दिनों उखड़े-उखड़े हैं। अब तो यह भी कहने लगे – ‘मेरी आवाज सुनो’। अब यह बात लोगों को समझ नहीं आ रही है कि नेताजी की आवाज दिल्ली वाले नहीं सुने रहे या चंडीगढ़ वालों ने कान बंद किए हुए हैं। साहब दो अक्तूबर को गांधी जयंती के मौके पर बड़ा आयोजन भी कर रहे हैं, लेकिन इसे लेकर भी मंझदार में फंसे हैं। न तो इसे रैली का नाम दे पा रहे और न ही केवल कार्यक्रम कह पा रहे हैं। अपने सांघी वाले ताऊ ने भी चौधरी पर चुटकी लेते हुए कहा – यह तो बता दो आप अपनी आवाज किसे सुनाना चाह रहे हैं।

-दादाजी

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