दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
मल्लेकां, 21 अक्तूबर
ऐलनाबाद हलके के उपचुनाव में भाजपा-जजपा गठबंधन प्रत्याशी गोविंद कांडा को पंजाबी बेल्ट से रिस्पांस नहीं मिल रहा है। स्थिति यह है कि दोनों पार्टियों भाजपा एवं जजपा के नेताओं का नामधारी बेल्ट के इन पंजाबी बहुल गांवों में प्रचार करना मुश्किल हो चला है। करीब आधा दर्जन तो ऐसे गांव हैं, जिनमें लोगों ने गांव की एंट्री पर ही बोर्ड लगा दिए हैं कि भाजपा-जजपा के नेता गांव में न आएं। अगर वे फिर भी आते हैं तो किसी भी प्रकार की अनहोनी के लिए स्वयं जिम्मेदार होंगे।
गठबंधन उम्मीदवार गोविंद कांडा बृहस्पतिवार को नामधारी बेल्ट के कुछ गांवों में गए। उनके साथ कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह भी थे, लेकिन तलवाड़ा खुर्द में उनका विरोध हो गया। विरोध की भनक स्थानीय प्रशासन को पहले से ही थी। ऐसे में प्रशासन के अधिकारियों की एक टीम गाड़ियों के काफिले के साथ अमृतसर कलां और खुद सहित इस बेल्ट के कई गांवों से गुजरी। अर्धसैनिक बलों की कई टुकड़ियां भी प्रशासन के साथ देखी गई।
इसके बाद भी कांडा यहां प्रचार नहीं कर सके। इन गांवों के दौरे के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई कि पूरे ऐलनाबाद हलके में किसान आंदोलन का बेशक, उतना असर न हो, लेकिन पंजाबी बेल्ट में इसका व्यापक असर है। किसान संघर्ष समिति सहित दूसरे किसान संगठनों के लोग हाथों में काले झंडे लेकर सड़कों पर खड़े थे। इसमें से कुछ गांव ऐसे भी हैं, जो देश के बंटवारे से पहले मुस्लिम बहुल थे। 1947 के विभाजन के बाद यहां के मुस्लिम पाकिस्तान चले गए और पाकिस्तान से उजड़ कर आए पंजाबियों को यहां आसरा दिया गया।
मेन सड़क पर बसे मल्लेकां गांव में बस स्टैंड के बाहर ही कुंडली बॉर्डर पर जान गंवाने वाले किसानों की याद में किसान शहीदी पार्क बनाया हुआ है। बस स्टैंड के बाहर ही बैठे स्थानीय नागरिक रणजीत सिंह ने कहा कि उनके गांवों के किसान नियमित रूप से कुंडली बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में जाते हैं। एक टीम वापस आती है तो दूसरी रवाना हो जाती है। बुजुर्ग मोहिंद्र सिंह व संतोख सिंह ने कहा कि गांव में आपसी भाईचारा अच्छा है।
बस स्टैंड के सामने गुरुद्वारा भी है और उसकी जड़ में मंदिर है। इस इलाके के साधन-संपन्न गांवों में मल्लेकां की गिनती होती है। गांव में बस स्टैंड, अनाज मंडी, अस्पताल के अलावा तमाम तरह की सुविधाएं हैं। लगभग 5100 मतदाताओं वाले इस गांव के गुरसेवक सिंह व जनरैल सिंह कहते हैं, बंटवारे के समय जब उनके बुजुर्ग यहां आकर बसे तो यह इलाका पूरी तरह से उजाड़ था। बाद में नहरों का जाल बिछा तो खेतीबाड़ी का काम बढ़ा। गांव के युवाओं का कबड्डी के प्रति रुझान रहता है। गांव के सरपंच रमनदीप सिंह खुद कबड्डी के खिलाड़ी हैं। गांव में ही एक शेड के नीचे बैठकर ताश खेल रहे बुजुर्गों के बीच राजनीतिक चर्चा के दौरान आपसी कहासुनी भी हुई। इस सकारात्मक बहस के दौरान मन्दर सिंह से चुनावी माहौल पर चर्चा की तो कहने लगे, ‘अभय नूं की लौढ़ सी इस्तीफा देन की’। उनके साथ बैठे जनरैल सिंह ने कहा, ‘इस्तीफा तो ठीक दिया था। उम्मीद तो यह भी कि अभय के साथ चार-पांच और विधायक इस्तीफा देते। इससे एक माहौल बनता, लेकिन किसी ने दिया ही नहीं।’ बूढ़ीमेड़ी गांव में भी ग्रामीणों ने भाजपा-जजपा की एंट्री पर बैन का बोर्ड लगाया हुआ है। लगभग 1100 मतदाताओं वाले अमृतसर कलां गांव में बस अड्डे पर लोग हाथों में काल झंडे लिए नजर आए। पूछने पर बाज सिंह, बसंत सिंह, हरतेज सिंह व बूटा सिंह ने बताया कि आज भाजपा प्रत्याशी गोविंद कांडा का यहां से गुजरने का कार्यक्रम है। बूटा सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि पंजाबी बेल्ट को तो सरकारी नौकरियों की लिस्ट से काटा हुआ है। सरकार जिस किसी की रहे, उनके युवाओं को नौकरी नहीं मिलती। ऐसा ही अमृतसर खुर्द गांव में देखने को मिला। यहां भी ग्रामीण काले झंडे लिए खड़े थे। गुरमंगत सिंह ने दीवार पर लगा भाजपा-जजपा नेताओं की एंट्री बैन का बोर्ड दिखाते हुए कहा, ‘जब हम इन लोगों को सुनना ही नहीं चाहते तो ये गांव में आकर माहौल क्यों बिगाड़ रहे हैं।’ कुत्ताबढ़ गांव के भी कई लोग किसान आंदोलन को लेकर सरकार के खिलाफ ही बात करते मिले। अमृतसर कलां और खुर्द जैसे ही हालात मिर्जापुर और तलवाड़ा खुर्द में सामने आए।
हर किसी को समझते हैं ‘सीआईडी’ वाला
सिख बहुल इस बेल्ट के लोग यहां आने वाले हर किसी को ‘शक’ की नजर से देखते हैं। मीडिया के लोगों को भी वे सीआईडी वाला समझ लेते हैं। हमारे साथ भी बातचीत करने से पहले उन्होंने आईडी प्रूफ देखा। लोगों का तर्क है कि अब उन्हें तो पता नहीं कि कौन किस भेष में आ जाए। इस बेल्ट के कुछ गांवों में इनेलो और कांग्रेस के बीच टक्कर है। भाजपा-जजपा गठबंधन के वोट हैं भी तो वे पूरी तरह से खामोश हैं।
कई गांव नशे की चपेट में
एरिया के कई गांव राजस्थान से सटे हैं। यहां बड़ी संख्या में गांव नशे की चपेट में हैं। गांव के बुजुर्ग इससे चिंतित हैं। जनरैल सिंह कहते हैं, बड़े-बुजुर्गों ने कोशिश की, लेकिन जब सरकार गंभीर नहीं होगी तो नशा रुकेगा कैसा। उनका मानना है कि राजस्थान से नशा यहां पहुंच रहा है।
नहरी पानी का संकट नहीं
एरिया में नहरी पानी की कमी नहीं है। हालांकि, राजस्थान से सटे जमाल सरीखे कई गांवों में पीने के पानी का संकट है। जमाल में तो स्थिति यह है कि लोगों को टैंकर खरीदने पड़ते हैं। महेंद्र सिंह व सुभाष ने कहा कि पीने के पानी की समस्या दूर होनी चाहिए। राजस्थान से सटे इस गांव में अंतिम टेल है।
हलके की नजर जमाल गांव पर
ऐलनाबाद उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की नजरें हैं। ग्रामीणों का मानना है कि उपचुनाव में जमाल गांव पर नजर रहेगी। यह गांव कभी चौटाला का गढ़ हुआ करता था। इनेलो में हुए बिखराव के बाद इस गांव में जजपा नेता दुष्यंत चौटाला का प्रभाव है। यहां के सरपंच नंदलाल बैनीवाल को दुष्यंत का करीबी माना जाता है। यह चर्चा दड़बा कलां तक है। दड़बा कलां पहले हलका हुआ करता था और 2008 के परिसीमन में यह खत्म हो गया। दड़बा कलां के लोग कहते हैं कि जमाल गांव में होने वाली वोटिंग से पता लग जाएगा कि जजपा ने गठबंधन प्रत्याशी गोविंद कांडा के लिए कितना काम किया।
दड़बा ने दिए कई विधायक
दड़बा कलां 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले हलका रहा है। दड़बा कलां ने कई विधायक दिए हैं। अहम बात यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल का यह पैतृक गांव है। वहीं, रिश्ते में उनके चाचा भरत सिंह बैनीवाल भी इसी गांव से रहे हैं। भरत सिंह विधायक रहे हैं। पवन की ताई विद्या बैनीवाल भी यहां से तीन बार विधायक रही। इनेलो ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इनेलो सुप्रीमो ओपी चौटाला यहां से विधायक रह चुके हैं। विद्या बैनीवाल के पति जगदीश बैनीवाल भी विधायक रहे हैं।