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हरियाणा में हैट्रिक की चुनौती, पूरी योजना से मैदान में उतरी भाजपा

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू चंडीगढ़, 7 सितंबर हरियाणा के विधानसभा चुनाव इस बार सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के लिए काफी अहम हैं। भाजपा हर हाल में हैट्रिक लगाने की जुगत में है। वहीं कांग्रेस सत्ता में वापसी की...
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 7 सितंबर

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हरियाणा के विधानसभा चुनाव इस बार सत्तारूढ़ भाजपा और प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के लिए काफी अहम हैं। भाजपा हर हाल में हैट्रिक लगाने की जुगत में है। वहीं कांग्रेस सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी है। केंद्र की मोदी सरकार के एजेंडे में भी हरियाणा टॉप पर है। राष्ट्रीय राजधानी - नई दिल्ली को तीन ओर से घेरने वाले हरियाणा का भाजपा के लिए बहुत बड़ा राजनीतिक महत्व है। पंजाब के किसान संगठनों के आंदोलन की वजह से भाजपा के लिए हरियाणा और भी अहम हो गया है।

भाजपा ने हरियाणा के चुनावों के लिए विशेष प्लानिंग भी की है। माइक्रो मैनेजमेंट के फार्मूले के साथ भाजपा यह चुनाव लड़ती नजर आएगी। बेशक, भाजपा को टिकट आवंटन के बाद पार्टी में इस तरह की बगावत का जरा भी आइडिया नहीं था, लेकिन अब इसे निपटने का भी तरीका निकाला जा रहा है। केंद्र में लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार होने की वजह से स्थानीय नेताओं को लगता है कि रूठों को मनाने में अधिक वक्त नहीं लगेगा।

टिकट कटने की वजह से नाराज हुए दो दर्जन से अधिक दिग्गज नेताओं में से कुछ को छोड़कर शायद ही कोई निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे। टिकट आवंटन के बाद भाजपा की चुनौतियां जरूर बढ़ गई हैं। उसे अब एक साथ कई मोर्चों पर काम करना पड़ रहा है। चुनावी प्लानिंग के साथ अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को समझाने की मुहिम शुरू हो चुकी है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा उन पदाधिकारियों को रूठे नेताओं के घर भेजा जा रहा है, जिनका रसूख है और उनकी कही बात को टालना आसान नहीं है।

लोकसभा चुनाव के नतीजों के साथ ही भाजपा ने हरियाणा के चुनावों की तैयारी शुरू कर दी थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई अहम बैठकें हरियाणा के चुनावों को लेकर कर चुके हैं। इस बार काफी हद तक अमित शाह ने ही हरियाणा के चुनाव की कमान संभाली हुई है। शाह को राजनीति का ‘चाणक्य’ कहा जाता है। पार्टी की केंद्र व स्टेट यूनिट, संघ व प्राइवेट एजेंसियों के सर्वे से इतर शाह ने अपने स्तर पर भी सभी नब्बे हलकों की ग्राउंड रियल्टी चैक कराई हुई है।

2019 में लोकसभा की सभी दस सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार के चुनावों में पांच सीटों पर सिमट गई। किसान आंदोलन, दस वर्षों की सरकार के प्रति स्वाभाविक एंटी-इन्कमबेंसी, संविधान में बदलाव को लेकर कांग्रेस की मुहिम सहित कई ऐसे कारण रहे, जिनकी वजह से भाजपा को नुकसान हुआ।

राजनीतिक तौर पर लगे इस झटके से उभरने के लिए भाजपा को समय भी मिल गया। भाजपा से ही जुड़े कुछ नेताओं का कहना है – अगर पार्टी ने लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करवाने का निर्णय ले लिया होता तो संभलने का वक्त भी नहीं मिलना था।

इसलिए अहम है प्रदेश में जीत हासिल करना

केंद्र की मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों मुख्यत: पंजाब के किसानों द्वारा किए गए आंदोलन के दबाव में सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े। इस आंदोलन में हरियाणा के किसानों ने भी भागीदारी की। पंजाब में किसान जत्थेबंदियां फसलों पर एमएसपी गारंटी के कानून सहित अपनी कई मांगों को लेकर अभी भी आंदोलनरत हैं। भाजपा के लिए इस वजह से भी हरियाणा काफी अहम है। अगर हरियाणा में जरा भी चूक होती है तो पंजाब के किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकना मुश्किल हो जाएगा।

एंटी-इन्कंबेंसी से निपटने को तैयार

आमतौर पर दस वर्षों तक एक ही पार्टी की सरकार के खिलाफ थोड़ी-बहुत एंटी-इन्कमबेंसी होना स्वाभाविक है। लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को इसका अहसास भी करवा दिया। ऐसे में इससे निपटने के लिए नतीजों के बाद से ही प्लानिंग शुरू कर दी थी। सबसे पहले पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की कोशिश की गई। सीएम नायब सिंह सैनी ने मुख्यमंत्री आवास के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए। वर्करों का मान-सम्मान बढ़ाया ताकि उन्हें सरकार में अपनेपन का अहसास हो सके। अब भाजपा एंटी-इन्कमबेंसी को कितना कम करने में कामयाब रही, यह तो चुनावी नतीजों के बाद ही पता लगेगा लेकिन पार्टी की ग्राउंड पर चल रही वर्किंग से स्पष्ट है कि भाजपा पूरी शिद्दत और जुनून के साथ चुनावी रण में उतरेगी।

सरकार ने दूर की जनशिकायतें

लोकसभा चुनावों में के नतीजों के बाद ग्राउंड चैक के दौरान भाजपा को इस बात का आभास हुआ कि कई ऐसे फैसले रहे, जिनकी वजह से चुनावों में नुकसान हुआ। इनमें परिवार पहचान-पत्र की त्रुटियां, प्रॉपर्टी आईडी की वजह से लोगों के सामने आई परेशानी के अलावा और भी कई स्थानीय मुद्दे थे। नायब सरकार ने चुनावी नतीजों के बाद सबसे पहले पीपीपी और प्रॉपर्टी आईडी की कमियों को दूर करने का बीड़ा उठाया। कर्मचारियों की वजह से नुकसान ना हो, इसके लिए 1 लाख 20 हजार से अधिक कच्चे कर्मचारियों को रिटायरमेंट उम्र यानी 58 वर्ष तक रोजगार की गारंटी का फैसला लिया। किसानों की चौदह की बजाय सभी 24 फसलों को एमएसपी पर खरीदने का फैसला भी नायब सरकार ने लिया। किसानों का आबियाना शुल्क माफ करने, ट्यूबवेल कनेक्शन जारी करने सहित कई ऐसे फैसले रहे, जिनके जरिये सरकार ने किसानों को खुश करने की कोशिश की।

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