दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 18 अगस्त
हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) का एक अहम एजेंडा खट्टर कैबिनेट की बैठक में सिरे नहीं चढ़ पाया। सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) की मंजूरी के बाद ही सेक्टरों के रिज्यूम प्लॉट्स व इस तरह के सभी विवादों की सुनवाई के अधिकारी संबंधित एस्टेट ऑफिसरों (ईओ) की जगह सीधे प्राधिकरण प्रशासकों को सौंपने का एजेंडा कैबिनेट के लिए तय हुआ था।
एजेंडा में शामिल हुआ यह प्रस्ताव बनाया तो विस्तृत रूप से था, लेकिन इस पर पहले स्टडी नहीं की गई। न ही ग्राउंड रियल्टी जांची गई और न किसी से फीडबैक लिया गया। सूत्रों का कहना है कि कैबिनेट मीटिंग में इस एजेंडे पर कुछ मंत्रियों के अलावा कई अधिकारियों ने आपत्ति जताई। बताते हैं कि मुख्य सचिव विजय वर्धन ने भी बैठक में प्रस्ताव को लेकर तथ्यों के आधार पर अपना पक्ष रखा। ऐसे में सीएम मनोहर लाल खट्टर ने इस एजेंडे को टाल दिया। दरअसल, प्रदेश के अधिकांश शहरों में एचएसवीपी की रिहायशी कालोनियां हैं। इन कालोनियों में कमर्शियल प्लॉट्स भी हैं। प्लॉटों की बिक्री आमतौर पर ड्रा के जरिये होती थी। बचे हुए प्लाटों को अथॉरिटी द्वारा खुली नीलामी के जरिये भी बेचा जाता है। प्लॉट पर भवन, दुकान, बूथ या शोरूम निर्माण के लिए समय सीमा तय की हुई है। तय समय सीमा में निर्माण नहीं करने की सूरत में जुर्माने का भी प्रावधान है। अगर प्लॉट पर निर्माण नहीं होता तो अथॉरिटी के पास अधिकार हैं कि वह नोटिस जारी करके प्लॉट की अलॉटमेंट रद्द कर सकती है। ऐसे में रिज्यूम प्लॉट्स फिर से हासिल करने के लिए संबंधित प्लॉटधारक एस्टेट ऑफिसर के पास याचिका दायर कर सकते हैं। इसी तरह से प्लॉट्स के अन्य विवादों का फैसला भी एस्टेट ऑफिसर के स्तर पर होता रहा है। इस पूरे मामले में सबसे अहम बात यह है कि एस्टेट ऑफिसरों से अधिकार लेने के प्रस्ताव में दलील दी है कि एचसीएस अधिकािरयों के फैसलों की भाषा सही नहीं होती।
पांच जोन में बंटा है एचएसवीपी
इस व्यवस्था को बदलने के लिए ही प्रस्ताव बनाया गया था। नई पॉलिसी में यह प्रावधान किया गया था कि रिज्यूम प्लॉटों के अलावा इसी तरह के अन्य विवाद की सुनवाई एस्टेट ऑफिसर की बजाय सीधे जोनल प्रशासकों (रीजनल एडमिनिस्ट्रेटर) के पास हो। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने राज्य में पांच जोन – फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार, रोहतक व पंचकूला बनाए हुए हैं। जोन प्रशासक के फैसलों की सुनवाई सीधे अथॉरिटी के मुख्य प्रशासक (सीए) को देने की योजना थी। बहरहाल, कैबिनेट की बैठक में यह एजेंडा पास नहीं हो पाया।