बसें खड़ी रहीं, मिलेगा किराया – खोला खजाना, बगावत के सुर!
कोविड के समय महीनों तक डिपो में खड़ी रहीं रोडवेज की लीज बसों पर अब सरकार पैसा लुटाने जा रही है। हरियाणा परिवहन विभाग ने आदेश जारी कर कहा है कि किलोमीटर स्कीम के तहत चलने वाली बसों को 249 दिन का ‘फिक्स चार्ज’ यानी किराए का 35 फीसदी भुगतान किया जाएगा। वह भी उस अवधि के लिए जब बसें सड़क पर चली ही नहीं।सरकार का तर्क है कि यह फैसला महामारी से प्रभावित बस ऑपरेटरों को राहत देने के लिए लिया गया है, लेकिन विभाग के भीतर से तीखा विरोध फूट पड़ा है। रोडवेज कर्मचारी संगठनों ने इसे ‘सरकार की खुली लूट’ करार देते हुए कहा है कि जब कर्मचारी अपने ओवरटाइम, एरियर और भत्तों के लिए तरस रहे हैं, तब सरकार निजी ऑपरेटरों की जेबें भर रही है।35 फीसदी फिक्स चार्ज: बसें नहीं चलीं, पैसा फिर भी मिलेगापरिवहन निदेशालय ने आदेश में कहा है कि किलोमीटर स्कीम के 510 और 190 लीज बसों के ऑपरेटरों को दो चरणों में भुगतान किया जाएगा।
पहला चरण: 18 मई 2020 से 23 नवंबर 2020 (190 दिन)
दूसरा चरण: 3 मई 2021 से 30 जून 2021 (59 दिन)
कुल मिलाकर 249 दिन।
लॉकडाउन की शुरुआती अवधि 25 मार्च से 17 मई, 2020, इसमें शामिल नहीं है।
इसका मतलब साफ है - बसें चलें या न चलें, सरकार अब भी ऑपरेटरों को तय किराए का 35 प्रतिशत देगी।
कर्मचारियों का आक्रोश – ठेकेदारों की भरेगी जेब
आदेश जारी होते ही रोडवेज यूनियनों में नाराजगी फूट पड़ी। कर्मचारियों का कहना है कि जब सरकारी बसें चलाने वाले ड्राइवर-कंडक्टरों के भत्ते महीनों से लंबित हैं, तब सरकार ‘ठेकेदारों की कृपा पात्र’ बन गई है। एक वरिष्ठ रोडवेज कर्मचारी नेता ने कहा – ‘महामारी में हमने जान जोखिम में डालकर जरूरी सेवाएं दीं, हमें आज तक ओवरटाइम नहीं मिला। लेकिन जो बसें एक किलोमीटर नहीं चलीं, उन्हें भी भुगतान? ये राहत नहीं, खुली सिफारिश है।’ कर्मचारियों ने साफ संकेत दिए हैं कि वे इस निर्णय के खिलाफ सरकार को औपचारिक विरोध पत्र देंगे और आंदोलन की रणनीति पर विचार कर रहे हैं।
सीएम के हस्तक्षेप के बाद जारी हुआ आदेश
दरअसल, किलोमीटर स्कीम बस ऑपरेटर्स वेलफेयर एसोसिएशन लंबे समय से यह मांग कर रही थी कि लॉकडाउन के दौरान जब सरकार ने बसें चलाने की अनुमति नहीं दी, तब भी उनका नुकसान सरकार को भरना चाहिए। एसोसिएशन का प्रतिनिधिमंडल कई बार मुख्यमंत्री से मिला। अब उन्हीं की सिफारिश पर यह फाइल मंजूर कर दी गई है। सरकार ने आदेश में लिखा है कि बस ऑपरेटरों को ‘फिक्स कंपोनेंट’ के रूप में यह भुगतान सहानुभूतिपूर्वक किया जा रहा है। लेकिन रोडवेज कर्मचारी संगठन इसे ‘राजनीतिक दबाव का नतीजा’ बता रहे हैं।
विभाग में उठ रहे हैं सवाल
विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी भी इस निर्णय पर सवाल उठा रहे हैं। एक अधिकारी के शब्दों में - ‘जब बसें खड़ी रहीं, ईंधन खर्च नहीं हुआ, स्टाफ भी गैर-ऑपरेशन में था, तो किस हेड में यह भुगतान जायज़ ठहराया जा सकता है?’ अंदरखाने यह चर्चा तेज है कि कुछ लीज ऑपरेटरों ने कोविड काल में भी रिकॉर्ड से अधिक बसें ‘ऑपरेटेड दिखाकर’ पुराने बकाए निपटाए थे। अब नई भुगतान मंजूरी से उन पर और ‘गोल्डन बोनस’ मिल जाएगा।
ऑपरेटर खुश, विरोधियों की चुप्पी टूटी
दूसरी तरफ, बस ऑपरेटरों में खुशी की लहर है। एसोसिएशन कहा कहना है कि हमने महामारी में नुकसान झेला, बैंक लोन के नोटिस खाए। अब सरकार ने न्याय किया है। सरकार का तर्क है कि यह ‘विन-विन निर्णय’ है जो कोविड काल के बकाया मामलों को बंद करने की दिशा में कदम है। परंतु कर्मचारियों का कहना है कि ‘यह राहत नहीं, रिश्ता है।’
सरकार बनाम स्टाफ: टकराव की जमीन तैयार
परिवहन विभाग का यह आदेश अब नया विवाद खड़ा कर सकता है। सरकारी खेमे में यह माना जा रहा है कि कर्मचारियों का विरोध आने वाले दिनों में और तेज होगा। चूंकि यह मुद्दा अब सिर्फ भुगतान नहीं रहा, बल्कि ‘न्याय बनाम पक्षपात’ का बन गया है। फिलहाल सरकार पुराने रिकॉर्ड खंगाल रही है और पेमेंट जारी करने की तैयारी में है। लेकिन विभाग के अंदर यह सवाल गूंज रहा है - क्या अब हर खड़ी गाड़ी को किराया मिलेगा?
