दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 2 नवंबर
बरोदा हलके का उपचुनाव सीएम मनोहर लाल खट्टर तथा पूर्व सीएम व विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिष्ठा से तो जुड़ा ही है, साथ ही भाजपा के जाट दिग्गजों की भी इस उपचुनाव में अग्निपरीक्षा होने वाली है। जाट बहुल इस सीट पर कमल खिलाने के लिए भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। दोनों ही पार्टियों के जाट नेताओं ने प्रचार के दौरान यहां खूब मश्क्कत की है।
भाजपा के नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ के लिए भी यह उपचुनाव काफी अहम है। उनकी ताजपोशी के बाद यह पहला चुनाव होगा। धनखड़ का खुद का निर्वाचन क्षेत्र बादली भी ओल्ड रोहतक के झज्जर जिले में है। हालांकि 2019 के आमचुनाव में बादली हलके से धनखड़ कांग्रेस के कुलदीप वत्स से हार गए थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उनके संगठन के अनुभव को देखते हुए सुभाष बराला की जगह प्रदेशाध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपी।
धनखड़ ने बरोदा के चुनाव प्रचार के दौरान भी काफी मेहनत की। धनखड़ की तरह ही डिप्टी सीएम व जजपा नेता दुष्यंत सिंह चौटाला ने भी हलके में प्रचार किया। उनके पिता व जजपा सुप्रीमो डॉ़ अजय सिंह चौटाला तथा दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय सिंह चौटाला ने भी हलके में प्रचार किया। जजपा के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉ़ केसी बांगड़, 2019 में उम्मीदवार रहे भूपेंद्र सिंह मलिक सहित जजपा के कई और जाट नेता हलके में जुटे हुए थे।
राज्य के कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल को भाजपा ने बरोदा उपचुनाव का प्रभारी बनाया हुआ था। दलाल ने तो दो महीने से भी अधिक समय बरोदा में लगाया। सिरसा से निर्दलीय विधायक व बिजली मंत्री चौ़ रणजीत सिंह ने भी जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए काफी प्रचार किया। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह, भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद धर्मबीर सिंह ने भी हलके में गठबंधन उम्मीदवार योगेश्वर दत्त के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की।
लगातार कई दिनों के प्रचार व कड़ी मेहनत के बाद अब मंगलवार को बरोदा में वोटिंग होगी। ऐसे में यह देखना रोचक रहने वाला है कि जाट बहुल बरोदा हलके के जाट मतदाताओं ने भाजपा व जजपा के जाट दिग्गजों के वादों व उनकी बातों को कितनी गंभीरता से लिया है। बेशक, उपचुनाव के नतीजे बिहार विधानसभा के आमचुनाव के साथ ही यानी 10 नवंबर को घोषित होंगे लेकिन बरोदा में होने वाला मतदान प्रतिशत तस्वीर को काफी हद तक स्पष्ट कर देगा। इसलिए नेता अधिक से अधिक मतदान करवाने की कोशिश में जुटे हैं।
हुड्डा परिवार के सामने बड़ी चुनौती
ओल्ड रोहतक यानी रोहतक, सोनीपत और झज्जर को पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। ऐसे में बरोदा का यह उपचुनाव हुड्डा परिवार के लिए भी प्रतिष्ठा की बात है। हुड्डा के साथ उनके पुत्र व राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी हलके में खूब मेहनत की है। उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की हार-जीत का असर कांग्रेस पर बेशक उतना न पड़े लेकिन हुड्डा परिवार इससे सीधे तौर पर जुड़ा है। हुड्डा की बदौलत ही 2019 तक लगातार तीन बार हलके में कांग्रेस चुनाव जीतती रही।
कृषि कानूनों का होगा फैसला
पंजाब की तरह ही हरियाणा के किसान भी बड़ी संख्या में केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। ये कानून आने के बाद हरियाणा में यह पहला चुनाव होगा। ऐसे में बरोदा उपचुनाव की हार-जीत से कृषि कानूनों को लेकर भी मोटे तौर पर स्पष्ट अनुमान लग सकेगा कि किसानों ने इन्हें किस रूप में लिया है। हालांकि गठबंधन सरकार के नेता बार-बार कह रहे हैं कि तीनों कानून किसानों के फायदे के लिए हैं और कांग्रेस व कुछ किसान संगठन राजनीतिक फायदे के लिए किसानों को गुमराह कर इनका विरोध कर रहे हैं।