पुरुषोत्तम शर्मा/हप्र
सोनीपत, 31 अक्तूबर
सोनीपत जिले के बरोदा हलके में राजनीतिक दल नहीं अपितु नेताओं के कद जनता के लिए मायने रखते आए हैं। सियासत में कद देख कर ही जनता अपना समर्थन देती आई है। इस उपचुनाव में भी यही होता दिख रहा है। सत्ताधारी भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार के सामने इस मिथक को तोड़ कर नया इितहास रचने की चुनौती है।
प्रदेश और देश में किसी की दल की लहर रही हो, लेकिन बरोदा में 1977 से लेकर 2005 तक ताऊ देवीलाल की जय-जयकार होती रही। इस दौरान प्रदेश में भी कांग्रेस से लेकर हरियाणा विकास पार्टी और भाजपा का साझा राज रहा, लेकिन बरोदा का किला कोई ताऊ से नहीं जीत पाया। इस तिस्लिम को तोड़ा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने। कांग्रेस ने जब 2005 में उन्हें सीएम पद सौंपा तब इनेलो बरोदा हलके पर काबिज थी। बाद में 2009 के चुनाव में यहां की जनता ने फैसला पलटा और हुड्डा की अगुवाई में श्रीकृष्ण हुड्डा को यहां से विधायक बनने का मौका दिया। इसके बाद से लगातार यहां से कांग्रेस जीत दर्ज कर रही है। इसे हम यह भी कह सकते हैं कि यहां से कांग्रेस के नाम पर हुड्डा की जीत हो रही है। इससे पहले देवीलाल व बाद में पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला यहां के लोगों की पहली पसंद रहे थे। अगर 1968 के मध्यावधि चुनाव को छोड़ दें, तो बरोदा में इन दो परिवारों का ही वर्चस्व रहा है। 1968 में जरूर कांग्रेस से अलग होकर विशाल हरियाणा पार्टी बनाने वाले वीरेंद्र सिंह के उम्मीदवार को जीत मिली थी।
बरोदा में नेताओं का असर इतना गहरा रहा है कि यहां कभी किसी मुद्दे पर चुनाव हुआ ही नहीं। केवल यहां चौधर और नेताओं का कद अहम रहा है। यहां किसी सत्ता-शासन की जरूरत या मुद्दे लोगों के लिए महत्व नहीं रखते। हालांकि गिनाने के लिए तो हर दल ही मुद्दों की बात करता है, लेकिन असल में जमीनी लड़ाई केवल और केवल हुड्डा बनाम भाजपा-जजपा में है।
हरियाणा राज्य के निर्माण के बाद हुए पहले चुनाव से ही बरोदा विधानसभा आरक्षित हो गई थी और 2005 तक यह आरक्षित सीट रही। इस दौरान 10 बार चुनाव हुए। सबसे पहले यहां से 1967 में कांग्रेस के रामधारी वाल्मीकि ने जनसंघ प्रत्याशी को हराकर विधानसभा में प्रवेश किया। लेकिन यह जीत एक साल ही टिक पाई। अगले वर्ष हुए मध्यावधि चुनाव में वीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी के श्यामचंद ने कांग्रेस के रामधारी वाल्मीकि को पराजित कर दिया। 1972 में यह नजारा फिर बदला और इस बार श्यामचंद कांग्रेस की ओर से लड़े और उन्होंने रामधारी वाल्मीकि को हरा दिया। तब रामधारी संगठन कांग्रेस के प्रत्याशी थे।
साल 1991 के बाद इनेलो रही काबिज
बरोदा हलके में वर्ष 1991, 1996, 2000 और 2005 में ताऊ या यह कहें कि बाद में ओमप्रकाश चौटाला के प्रत्याशी विजयी रहे। इनमें 1991 में रमेश खटक ने पहली बार जनता पार्टी और 1996 में समता पार्टी और तीसरी बार 2000 में इनेलो की टिकट पर जीत दर्ज की। इसके बाद 2005 में इनेलो के रामफल चिड़ाना ने इस जीत को कायम रखा और कांग्रेस के रामपाल रुखी को यहां से पराजित किया। उल्लेखनीय है कि 1987 में ही ओमप्रकाश चौटाला सक्रिय राजनीति में आ चुके थे। लेकिन उन्हें यहां से जीत ताऊ देवीलाल के नाम पर ही मिलती रही। साल 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सीएम बनने के बाद समीकरण बदले और 32 साल बाद 2009 में यहां कांग्रेस को दोबारा जीत हासिल हो पाई।