केएमपी : कमाई फुल, सुविधाएं गुल
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को वाहनों की भीड़ और प्रदूषण से बचाने के लिए ‘अति आउटर रिंग रोड’ के रूप में तैयार कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे पर वाहन फर्राटा भर रहे हैं। इसके लिए टोल भी ठीकठाक वसूला जा रहा है। लेकिन इस सफर का आनंद लेने के लिए जरूरी है कि आप किस्मत के भी धनी हों। क्योंकि पूरे रास्ते न तो आपको कोई जरूरी सुविधा उपलब्ध होगी और न ही किसी मददगार के दर्शन होंगे। अलबत्ता, खतरा कदम दर कदम महसूस होगा। रात को तो सफर और भी खौफनाक लगता है। भले ही पुलिस आपकी मदद के लिए उपलब्ध न हो, लेकिन गलत दिशा में वाहनों को पार्क कर ‘वसूली’ करते वर्दी वाले जरूर नजर आ सकते हैं। कैसा है केएमपी का सफर, पेश है इसकी पड़ताल करती हमारी इस शृंखला की पहली कड़ी…
– संपादक
विवेक बंसल/निस
गुरुग्राम, 19 जून
यदि आप दिल्ली की भीड़भाड़ से बचने के लिए कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस-वे पर फर्राटेदार सफर करने जा रहे हैं तो सावधान रहिए। चलते रहिए, चलते रहिए, कहीं रुकिए मत। किसी कारण से रुकना पड़ जाए तो फिर आप भगवान भरोसे ही हैं। क्योंकि आपके वाहन पर यह ब्रेक किसी न किसी ऐसी समस्या के कारण लगेगा जिसका समाधान यहां दूर-दूर तक नजर नहीं आने वाला।
असल में इस सफर पर सरकार को वाहनों से टोल के रूप में रोजाना एक करोड़ 8 लाख की आमदनी तो होती है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर मुंह मोड़ लिया गया है। सुरक्षा ताक पर है। ढूंढ़ने पर भी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। यदि राष्ट्रीय राजमार्ग के सहायता केंद्र 1033 पर एक नंबर दबाइये, दो नंबर दबाइये का चक्कर समाप्त कर आपके अनुरोध करने पर देर सवेरे कोई आ जाए तो इसे बड़ी गनीमत समझ लीजिएगा।
क्या विडंबना है कि जिस पुलिस के पास सुरक्षा की जिम्मेवारी है, वही सारी व्यवस्था और सुविधाओं में रोड़ा बन गई है। इस मार्ग का निर्माण वाहनों को चलते रहने के लिए बनाया गया है, लेकिन जब रास्ते में वाहनों का जमावड़ा दिख जाए तो समझ लीजिए कि या तो पुलिस अवैध चेकिंग कर रही है या फिर कोई दुर्घटना हो गई है। नियमों के मुताबिक पुलिस को इस मार्ग पर वाहनों की चेकिंग का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन दिन में गायब रहने वाली पुलिस रात को रॉन्ग साइड अपना वाहन खड़ा कर अकसर हैवी वाहनों की ‘अवैध चेकिंग’ करती दिख जाती है। गौर हो कि केएमपी का निर्माण दिल्ली पर वाहनों का भार कम करने और चंडीगढ़ की तरफ जाने वाले वाहनों को सुगमता से बाहर निकालने के लिए किया गया था। यहां से रोजाना एक लाख वाहन गुजरते हैं। एक बार वाहन प्रवेश कर जाए तो वह टोल दिए बिना नहीं निकल सकता। पूरे सफर में जरूरी सुविधाएं तो नहीं हैं, लेकिन कहीं-कहीं खोखे या झुग्गी झोपड़ियाें में रहने वाले सामान बेचते दिख जाते हैं। और कुछ हो न हो, कई स्थानों पर शराब की अवैध दुकानें जरूर खुली हुई हैं। कहा तो यह भी जाता है कि रात को तथाकथित पेट्रोलिंग करने वाली पुलिस का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त है। कहने को तो सभी टोल पर एंबुलेंस की व्यवस्था है, लेकिन उसमें कोई डॉक्टर और स्टाफ नही रहता।
136 किमी लंबा सफर… नियम सिर्फ कागजों पर
नियम बनाया गया था कि स्कूटर, थ्री व्हीलर और ट्रैक्टर जैसे वाहन केएमपी पर प्रवेश नहीं कर पाएंगे, लेकिन यहां सब चल रहा है। सरकार का ध्यान सिर्फ टोल वसूली पर है। कई जगह सड़क ऊंची-नीची है। बीच-बीच में टूटी भी है। पशुओं का आना-जाना फ्री है। प्राय: नीलगाय खतरा बढ़ा देती हैं। मानेसर से कुंडली तक 136 किलोमीटर लंबे सफर पर कोई एंबुलेंस और कोई पुलिस वाहन दिखाई नहीं देता। हर 20 किलोमीटर पर एक क्रेन की व्यवस्था कागजों में ही रह गयी है। रात को कहीं-कहीं ही रोशनी की व्यवस्था दिखती है। ऐसे में आते-जाते वाहन खराब हो जाएं तो अंधेरे में परेशानी कितनी बढ़ जाएगी, बताने की जरूरत नहीं। किसी सवारी की तबीयत खराब हो जाए या कोई और दिक्कत हो जाए तो भगवान ही मालिक है। इस मार्ग पर शौचालय की भी कोई सुविधा नहीं है। टोल पर बने शौचालयों की हालत बड़ी खराब है। सफाई और देखरेख के अभाव में वहां टोल स्टाफ भी जाने से कतराता है।