दलेर सिंह/हप्र
जींद, 27 अप्रैल
बांगर के किसान अब पारंपरिक खेती के तरीकों से अलग हटकर नई तकनीक अपना रहे हैं। किसान उन फसलों की खेती पर भी काम कर रहे हैं, जिनके बारे में पहले सोचा भी नहीं जा सकता था। बांगर की धरती पर अब वो फसल लहलहा रही है, जो यहां की जमीन और जलवायु के अनुकूल नहीं थी।
जिला के खरकभूरा गांव के किसान सुखदेव श्योकंद ने अपने खेतों में अमेरिकन केसर की खेती करके एक अनूठी मिसाल पेश की। परंपरागत खेती को छोड़कर ऑर्गेनिक खेती में सुखदेव श्योकंद का उसके चाचा रामनिवास श्योकंद सहयोग कर रहे हैं। कुछ माह पहले ही गांव खरक भूरा के किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़कर ऑर्गेनिक गेहूं ,सब्जी की खेती शुरू की थी और इस खेती से वे अच्छी कमाई कर रहे हैं।
पहले यह कहा जाता था कि केसर सिर्फ कश्मीर की वादियों में ही पैदा हो सकता है और वहां का केसर मशहूर भी था। कश्मीर के केसर को जीआई टैग मिला हुआ है, लेकिन गांव खरक भूरा के किसान सुखदेव श्योकंद ने अब बांगर की धरती पर केसर की फसल लहलहा दी।
सफल रही कोशिश
किसान रामनिवास श्योकंद ने बताया कि सूखी जमीन और बिल्कुल अलग मौसम वाले इलाके में की जा रही केसर की खेती हैरान कर देने वाला मामला है। पहले हमें संदेह था कि इस इलाके में केसर की खेती हो पाएगी या नहीं, लेकिन हमारी कोशिश सफल रही है। दरअसल यहां कोई ठंडा क्षेत्र नहीं है, अगर किसान उचाना क्षेत्र में खरक भूरा गांव जैसे इलाके में भी केसर की खेती कर लेते हैं तो परंपरागत खेती को छोड़कर यहां के किसानों की आय में काफी वृद्धि हो सकती है। उन्होंने बताया कि ऐसे में किसान सूखे प्रदेश में कम ठंड वाले इलाके में भी केसर उगा कर अच्छा पैसा कमा सकते हैं।