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विशेष चर्चाओं में रहता है अम्बाला शहर विधानसभा क्षेत्र

जितेंद्र अग्रवाल/हप्र अम्बाला शहर, 11 सितंबर जिले का अम्बाला शहर विधानसभा क्षेत्र किसी भी चुनाव में विशेष चर्चाओं में रहता है। जिला मुख्यालय होने के कारण यहां की सभी राजनीतिक गतिविधियां पूरे जिले के समीकरण को प्रभावित भी करती हैं।...

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जितेंद्र अग्रवाल/हप्र

अम्बाला शहर, 11 सितंबर

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जिले का अम्बाला शहर विधानसभा क्षेत्र किसी भी चुनाव में विशेष चर्चाओं में रहता है। जिला मुख्यालय होने के कारण यहां की सभी राजनीतिक गतिविधियां पूरे जिले के समीकरण को प्रभावित भी करती हैं। अम्बाला शहर की सीट पर देश की आजादी के बाद कांग्रेस का किंतु हरियाणा निर्माण के बाद कांग्रेस व भाजपा ;पूर्व में जनसंघ का ही कब्जा रहा। किसी अन्य दल के उम्मीदवार को क्षेत्र के मतदाताओं ने जीत लायक समर्थन कभी नहीं दिया। यहां से चुने गए 2 विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला। 3 विधायकों ने विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी को सुशोभित किया। यहां से लगातार 3 बार विजय दर्ज करने वाले मास्टर शिव प्रसाद को सरकार में कभी स्थान नहीं मिल पाया किंतु कोई अन्य विधायक यहां से जीत की तिकड़ी भी नहीं लगा पाया। सबसे दुखद बात यह है कि अम्बाला शहर में सरकारी अथवा गैर सरकारी कोई बड़ी योजना आज तक नहीं आ पाई जिसके कारण कुल मिलाकर हलका पिछड़ा ही रहा।

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इसके लिए नेता और मतदाता दोनों बराबर के जिम्मेवार हैं जो नेता तो चुन लेते हैं लेकिन अपने अधिकारों के प्रति पूरी तरह से जागरूक नहीं हैं। इसी के चलते हलका उपेक्षित ही रहा। पिछले 2 चुनाव से यहां का प्रतिनिधित्व भाजपा के असीम गोयल के पास है जो वर्तमान नायब सरकार में परिवहन, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री हैं। उनसे पहले लगातार 2 कार्यकाल विनोद शर्मा के नाम रहे थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे विनोद शर्मा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बाल सखा और मुंह बोले भाई थे लेकिन उन्हें कांग्रेस छोड़ने से पहले तक सूबे का सुपर सीएम तक कहा जाता रहा।

देश के पहले विधानसभा चुनाव से लेकर वर्ष 2004 तक के चुनाव तक यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और जनसंघ में ही होता रहा लेकिन लेकिन 2004 से शुरू हुए भाजपा के पतन शुरू हुआ और वह मुख्य मुकाबले से तीसरे स्थान पर पिछड़ गई। 2004 के चुनाव में यहां से दूसरे नंबर पर इनेलो उम्मीदवार तो 2009 के चुनाव में शिअद बादल व इनेलो समर्थक उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहा।

3 डिप्टी स्पीकर एवं 2 विधायक बने मंत्री

शहर हलके से 1968 व 1972 के चुनाव में कांग्रेस की लेखवती जैन को विजय मिली और वे 1 बार डिप्टी स्पीकर रहीं। वर्ष 1991 में कांग्रेस के ही सुमेर चंद भट्ट चुनाव जीत कर और वर्ष 1996 में भाजपा के फकीर चंद अग्रवाल चुनाव जीत कर विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हुए। वर्ष 2000 में भाजपा की वीणा छिब्बड़ ने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 2004 से 14 तक विधायक रहे विनोद शर्मा कुछ समय के लिए मंत्री भी रहे।

इसी प्रकार 2014 से अब तक विधायक रहे असीम गोयल भी वर्तमान में परिवहन, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री की कुर्सी पर हैं।

बनिये, खत्री और ब्राह्मण की ही मानी जाती है सीट

जातिगत समीकरणों के आधार पर अम्बाला शहर हलका बनिये, खत्री और ब्राह्मण की सीट माना जाता है। हरियाणा बनने से पहले लगातार 3 चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल गफ्फार खान चुनाव जीते तो उसके बाद 4 बार सीट बनियों के हाथ में, 3 बार खत्रियों के हाथ में तो शेष समय ब्राह्मणों के हाथ में रही। लोकसभा सीट के आरक्षित होने के बावजूद कभी आरक्षित वर्ग के किसी नेता को यहां विधानसभा चुनाव में विजय नसीब नहीं हुई। करीब अढ़ाई लाख मतदाताओं वाले इस हलके में हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाइयों के अलावा सभी 36 बिरादरी के मतदाता रहते हैं। कई बार चुनाव में लोकल व पंजाबी का मुद्दा भी गरमाया रहा किंतु समाज को बांटने की कोशिश करने वालों को मुंह की खानी पड़ी। हलके में बड़े पैमाने पर बनी जाली वोट चुनाव परिणाम को प्रभावित करती हैं। इस बार मुस्लिम मतदाताओं की संख्या आश्चर्यजनक ढंग से काफी बढ़ चुकी है।

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