हरियाणा कांग्रेस में अध्यक्ष चयन, चुनावी रणनीति, गुटबाजी पर टिकी निगाहें
हरियाणा कांग्रेस में नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने की कवायद महज संगठनात्मक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आने वाले चुनावी समीकरणों के लिहाज से बड़ा राजनीतिक कदम माना जा रहा है।
कांग्रेस हाईकमान इस बार ऐसा नेता चुनना चाहता है, जो न सिर्फ जिलाध्यक्षों का भरोसा जीत सके, बल्कि राज्य की गुटबाजी से उबरकर पार्टी को सत्तारूढ़ भाजपा के सामने मजबूत चुनौती के रूप में पेश कर सके। जानकारों का मानना है कि प्रदेश अध्यक्ष का फैसला दरअसल 2029 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों की पृष्ठभूमि तय करेगा।
कारण है कि शीर्ष नेतृत्व जिलाध्यक्षों को निर्णायक भूमिका दे रहा है। यदि सहमति न बनी तो औपचारिक वोटिंग भी कराई जा सकती है।
हुड्डा बनाम एंटी-हुड्डा फैक्टर
हरियाणा कांग्रेस में लंबे समय से भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट और एंटी-हुड्डा खेमे की खींचतान चलती रही है। ऐसे में नया प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा, यह सीधे-सीधे तय करेगा कि हाईकमान हुड्डा पर कितना भरोसा जता रहा है। पार्टी में चर्चा है कि यदि हुड्डा खेमे का नेता चुना गया तो विधानसभा चुनाव से पहले नेतृत्व का सवाल शांत हो जाएगा। लेकिन यदि किसी तटस्थ या एंटी-हुड्डा नेता को मौका दिया गया तो यह संकेत होगा कि हाईकमान भविष्य की राजनीति में संतुलन साधना चाहता है।
प्रदेश अध्यक्ष का चयन जातीय और क्षेत्रीय संतुलन से भी जुड़ा है। जाट, दलित और ओबीसी समीकरण कांग्रेस के लिए बेहद अहम हैं। हाईकमान चाहता है कि नया अध्यक्ष ऐसा चेहरा हो, जो सभी समुदायों को जोड़कर भाजपा की सामाजिक इंजीनियरिंग को चुनौती दे सके। यही कारण है कि कार्यकारिणी गठन में जातीय संतुलन पर विशेष ज़ोर दिया गया है।