एडिड कॉलेज के स्टॉफ को 7वें वेतन आयोग के भत्तों का इंतजार
उनका कहना है कि इस देरी से कर्मचारियों को हर साल करीब 13.24 करोड़ रुपये का सीधा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। यूनियन पदाधिकारियों का कहना है कि मकान किराया भत्ता संशोधन का मामला उच्चतर शिक्षा विभाग और वित्त विभाग के बीच फाइलों के इधर-उधर घूमने में उलझा हुआ है। हरियाणा प्राइवेट कॉलेज नॉन-टीचिंग एम्प्लॉइज यूनियन और हरियाणा कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन के नेताओं का आरोप है कि हर बार वित्त विभाग कोई न कोई आपत्ति लगाकर फाइल वापस भेज देता है। उनका कहना है कि सरकार के पास सभी आवश्यक दस्तावेज और अनुमोदन होने के बावजूद कर्मचारी अपने हक से वंचित हैं।
कर्मचारियों के प्रति अन्याय
यूनियनों के मुताबिक, यह सिर्फ एक प्रशासनिक लापरवाही नहीं बल्कि कर्मचारियों के प्रति अन्याय है। हरियाणा प्राइवेट कॉलेज नॉन-टीचिंग एम्प्लॉइज यूनियन के प्रधान बिजेंद्र कुमार कादियान ने कहा कि हम लगातार पांच वर्षों से यह मुद्दा उठा रहे हैं। सभी अनुमोदनों और कागजी प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद फाइल को जानबूझकर लटकाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि सरकार के डबल इंजन के दावों के बीच कॉलेज कर्मचारियों का संघर्ष यह दिखाता है कि नीतियों का लाभ सिर्फ कागजों तक सीमित है। हरियाणा कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन के प्रधान डॉ. दयानंद मलिक ने कहा कि जब पहली अगस्त, 2019 को राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों को संशोधित एचआरए दे दिया गया तो एडिड कॉलेजों के कर्मचारियों से यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार जल्द निर्णय नहीं लेती, तो राज्यव्यापी प्रदर्शन और आंदोलन का रास्ता अपनाया जाएगा।
आधे पद खाली, काम दुगना
उनका कहना है कि राज्य के एडिड कॉलेजों में न सिर्फ आर्थिक असमानता है, बल्कि कर्मचारियों की कमी का संकट भी गहरा है। नॉन-टीचिंग स्टाफ के 1668 स्वीकृत पदों में से केवल 879 भरे हैं, जबकि 789 खाली हैं। इसी तरह टीचिंग स्टाफ के 2810 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 1435 पदों पर कार्यरत हैं। 1375 पद रिक्त हैं। इसी तरह प्रिंसिपल के 97 पदों में केवल 41 भरे हुए हैं और 56 कॉलेज बिना मुखिया के चल रहे हैं। कुल 4574 स्वीकृत पदों में से लगभग आधे यानी 2220 पद खाली हैं।
