दलेर सिंह/हप्र
जींद, 29 अप्रैल
केसर की फसल जम्मू कश्मीर की वादियों में होती है। बांगर की जमीन और जलवायु केसर की फसल के अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद जींद के खरकभूरा गांव के प्रगतिशील किसान सुखदेव श्योकंद ने अपने खेतों में अमेरिकन केसर की खेती करके उदाहरण कायम किया है। दैनिक ट्रिब्यून ने इस संबंध में बृहस्पतिवार के अंक में समाचार प्रकाशित किया था।
इसके बाद शुक्रवार को हरियाणा कृषि प्रबंधन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थान की टीम ने खरकभूरा में श्योकंद जहर मुक्त कृषि एवं उत्पाद फार्म का दौरा किया। टीम में संस्थान के उपनिदेशक व चौधरी चरण सिंह विवि के सेवानिवृत्त प्रो डॉ. जेएन भाटिया, डॉ. सुभाष चंद्रा उपमंडल कृषि अधिकारी पिल्लूखेड़ा शामिल रहे।
कृषि अधिकारियों ने प्रगतिशील किसान सुखदेव श्योकंद के फार्म का निरीक्षण किया और उन्होंने जहर मुक्त कृषि एवं उत्पाद के लिए जीवामृत बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। डॉ. भाटिया ने कहा कि किसान अब अत्यधिक खाद व अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग व इनके जहरीले दुष्प्रभाव को समझ गए हैं। किसान जैविक प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ रहे हैं।
ऐसे बनता है जीवामृत
प्रगतिशील किसान सुखदेव श्योकंद ने बताया कि जीवामृत बनाने के लिए 200 लीटर का एक ड्रम लेकर उसमें 180 लीटर पानी, 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो गाय का गोबर, 2 किलो बेसन या किसी भी दाल का आटा, लगभग 1 किलो बरगद या पीपल के नीचे की मिट्टी व 2 किलो गुड़ आदि का आदि का घोल बनाकर ड्रम में डाला जाता है। इसको बोरी से ढककर छायादार स्थान में रखा जाता है। हर रोज एक बार डंडे के साथ भंवर बनने तक घुमाया जाता है। 5 से 7 दिन में जीवामृत बनकर तैयार हो जाता है। इसे फसलों में पानी के साथ भी दिया जा सकता है और इसका छिड़काव भी किया जा सकता है।
फसलों को क्यों जरूरी है जीवामृत
प्रगतिशील किसान सुखदेव श्योकंद ने बताया कि फसलों में जीवामृत डालने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है जोकि सूक्ष्म जीवाणुओं को क्रियाशील बनाती है। इससे भूमि भुरभुरी बनती है और जमीन में ज्यादा पानी ग्रहण करने की शक्ति बढ़ती है। इससे नमी को काफी दिनों तक संजोए रखना संभव हो जाता है। जीवामृत फसल के पौधों के लिए सभी प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करता है। इसे प्रत्येक 21 से 30 दिन के बीच फसलों को दिया जाता है।