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26 साल बाद बंसीलाल परिवार फिर आमने-सामने

तोशाम में भाई-बहन के बीच मुकाबला, दुविधा में मतदाता
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 11 सितंबर

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हरियाणा के राजनीतिक घरानों में आपसी टकराव नया नहीं है। बड़े सियासी कुनबों में राजनीतिक विरासत की जंग पहले भी प्रदेश ने कई बार देखी है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री चौ़ बंसीलाल की परंपरागत सीट तोशाम में परिवार 54 वर्षों में पहली बार आमने-सामने होगा। बंसीलाल की पोती व पूर्व सांसद श्रुति चौधरी भाजपा और पोता अनिरुद्ध चौधरी कांग्रेस के टिकट पर तोशाम से चुनावी रण में हैं। बहन-भाई के बीच रोचक मुकाबला होता दिख रहा है।

करीब 26 साल पहले दोनों भाइयों- रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह के बीच भिवानी संसदीय सीट पर टकराव हो चुका है। बंसीलाल की राजनीतिक विरासत उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह के हाथों में रही। 2005 में सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद से बंसीलाल की पुत्रवधू व राज्सयभा सांसद किरण चौधरी इस विरासत को संभाले हुए हैं। परिवार के सदस्यों के बीच बंसीलाल की विरासत को लेकर राजनीति के मैदान ही नहीं कोर्ट-कचहरी में भी जंग चली।

2009 के लोकसभा चुनाव में भिवानी-महेंद्रगढ़ से कांग्रेस टिकट पर सांसद बनी श्रुति चौधरी इस बार भी चुनाव लड़ना चाहती थीं। कांग्रेस ने उनका टिकट काटकर महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दिया था। इससे आहत किरण व श्रुति ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली। भाजपा ने किरण चौधरी को राज्यसभा भेज दिया है। वहीं, श्रुति को तोशाम से उम्मीदवार घोषित किया है। रणबीर महेंद्रा बाढ़डा हलके से चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन इस बार उन्होंने अपने बेटे अनिरुद्ध चौधरी को तोशाम से टिकट दिलवाई है।

पिछले कई दशकों से रणबीर महेंद्रा स्व़ सुरेंद्र सिंह के परिवार के बीच बोल चाल भी बंद है। तोशाम ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जहां पर 1967 से लेकर 2019 तक हुए 14 चुनावों (उपचुनाव सहित) में से दो को छोड़कर हर बार बंसीलाल परिवार ने जीत हासिल की है। रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह के रिश्तों के बीच खटास बहुत पहले आ गई थी। एक दौर वह भी था कि रणबीर महेंद्रा की बेटी का कन्यादान भी बंसीलाल की बजाय उस समय मुख्यमंत्री रहे चौ. भजनलाल ने किया था। तोशाम सीट पर 1962 में ज्वाइंट पंजाब के समय हुए पहले चुनाव में आजाद उम्मीदवार के तौर पर जगननाथ चुनाव जीतकर खाता खोला था। इसके बाद से 2019 तक यह सीट बंसीलाल परिवार की परंपरागत सीट बन गई। चौ़ बंसीलाल की तोशाम से पांच बार विधायक बने। बंसीलाल भिवानी से भी विधायक रहे। पूर्व मंत्री व राज्यसभा सांसद किरण चौधरी तोशाम से लगातार चार बार विधायक रहीं। पहली बार उन्होंने 2005 का उपचुनाव जीता था।

अब श्रुति-अनिरुद्ध मैदान में

बंसीलाल के दोनों भाइयों के बीच हुए राजनीतिक जंग के 26 वर्षों के बाद अब भाई-बहन ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी में मैदान में आ डटे हैं। बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी भाजपा की उम्मीदवार हैं। वहीं, बंसीलाल के पोते अनिरुद्ध चौधरी कांग्रेस टिकट पर श्रुति के सामने आ गए हैं। श्रुति चौधरी भिवानी-महेंद्रगढ़ से सांसद रही हैं। भाजपा में शामिल होने से पहले वे कांग्रेस की कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष थीं। अनिरद्ध चौधरी का यह पहला चुनाव है। अनिरुद्ध भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के कोषाध्यक्ष रहे हैं। वे 2011 में भारतीय टीम के मैनेजर भी रह चुके हैं और हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन के मानद सचिव हैं। उनके पिता रणबीर महेंद्रा बीसीबीआई के अध्यक्ष रह चुके हैं।

पति के निधन के बाद किरण ने संभाली विरासत

बंसीलाल ने छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह को राजनीतिक वारिस घोषित किया हुआ था। 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। सुरेंद्र सिंह तोशाम से विधानसभा चुनाव लड़े और वे हुड्डा सरकार में प्रदेश के कृषि मंत्री बने। कुछ माह बाद ही हेलीकॉप्टर हादसे में उनकी मौत हो गई। पति के निधन के बाद दिल्ली की राजनीति में सक्रिय किरण चौधरी की हरियाणा की राजनीति में एंट्री हुई। किरण ने तोशाम में हुए उपचुनाव में जीतकर पहली बार हरियाणा विधानसभा में दस्तक दी। वे 2009, 2014 और 2019 में तोशाम से विधायक बनीं।

1998 में दोनों भाइयों में हुई थी भिड़ंत

वर्ष 1998 के लोकसभा चुनावों में चौ़ भजनलाल ने बड़ा राजनीतिक ‘खेल’ खेलते हुए बंसीलाल के परिवार को ही आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया था। दोनों भाइयों-रणबीर महेंद्रा व सुरेंद्र सिंह ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा। यह वह समय था, जब बंसीलाल ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और उन्होंने अपनी हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) का गठन कर लिया था। 1996 में सुरेंद्र सिंह ने हविपा टिकट पर भिवानी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। 1998 के लोकसभा चुनावों में हविपा टिकट पर भिवानी पार्लियामेंट से बंसीलाल पुत्र सुरेंद्र सिंह ने ही चुनाव लड़ा। भजनलाल ने उनके मुकाबले कांग्रेस टिकट पर रणबीर महेंद्रा को चुनावी मैदान में उतारा। वहीं, अजय चौटाला लोकदल के उम्मीदवार थे। यह चुनाव भी सुरेंद्र सिंह ने ही जीता और रणबीर महेंद्रा जमानत भी नहीं बचा सके।

धर्मबीर सिंह ने तोड़ा था गढ़

बंसीलाल के परंपरागत गढ़ को वर्तमान में भिवानी-महेंद्रगढ़ के सांसद धर्मबीर सिंह ने ही तोड़ा था। उसके बाद और उनसे पहले कोई भी नेता बंसीलाल परिवार को चुनाव में शिकस्त नहीं दे पाया। 2000 में धर्मबीर सिंह ने इनेलो टिकट पर हविपा के सुरेंद्र सिंह को चुनाव में शिकस्त दी थी। उस समय बंसीलाल ने भिवानी से चुनाव लड़ा था और उन्हें जीत हासिल हुई थी। इससे पहले 1987 में धर्मबीर सिंह ने लोकदल के टिकट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े बंसीलाल को हराया था। हालांकि, बाद में चुनाव आयोग ने इस चुनाव को रद्द कर दिया था।

चुनाव रद्द हुआ, लेकिन मंत्री रहे धर्मबीर सिंह

1987 के चुनावों में धर्मबीर ने जब बंसीलाल को हराया तो उन्हें देवीलाल सरकार में मंत्री बनाया गया। चुनाव में तीन हजार से अधिक वोट रद्द कर हुए थे। बंसीलाल ने इसे चुनौती दी। चुनाव आयोग ने तोशाम चुनाव रद्द कर दिया। 1987 से 1991 तक की अवधि में धर्मबीर राज्य सरकार में मंत्री बने रहे। यह वह दौर था जब देवीलाल के अलावा बनारसी दास गुप्ता, मास्टर हुकम सिंह और ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बने। धर्मबीर चारों मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में मंत्री बने रहे। चुनाव रद्द होने के चलते उन्हें विधायक वाली सुविधाएं तो नहीं मिलीं, लेकिन वे मंत्री को मिलने वाली सभी सुख-सुविधाएं लेते रहे।

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