दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 5 मई
राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली, उत्तर प्रदेश की ब्रज बेल्ट और नूंह (मेवात) जिला से सटी फरीदाबाद पार्लियामेंट सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस टिकट पर यहां से लगातार चार चुनाव लड़ चुके और इन चुनाव में से दो बार जीत हासिल करने वाले अवतार सिंह भड़ाना अब ‘घर’ बैठ चुके हैं। बार-बार पार्टी बदलने के चलते अब वे राजनीतिक तौर पर हाशिये पर भी पहुंच चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस ने फरीदाबाद में मुकाबले को कांटे का बनाने के लिए पूर्व मंत्री और पांच बार के विधायक महेंद्र प्रताप सिंह को केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर के मुकाबले चुनावी मैदान में उतारा है। कृष्णपाल गुर्जर जीत की हैट्रिक के लिए चुनावी मैदान में डटे हैं। एक और रोचक पहलू यह है कि फरीदाबाद के ये दोनों ही गुर्जर दिग्गज 20 वर्षों बाद फिर आमने-सामने हैं। इससे पहले 2004 के विधानसभा चुनावों में कृष्णपाल गुर्जर भाजपा टिकट पर मेवला महाराजपुर हलके से विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे।
वहीं महेंद्र प्रताप सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में महेंद्र प्रताप सिंह ने गुर्जर को पटकनी दी थी। इसके बाद हुए परिसीमन में यह सीट खत्म हो गई। इसके बाद से दोनों नेता कभी एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी रण में नहीं आए। भाजपा के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि फरीदाबाद संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले नौ विधानसभा हलकों में से सात पर भाजपा का कब्जा है। एनआईटी से नीरज शर्मा कांग्रेस के अकेले विधायक हैं। वहीं पृथला से निर्दलीय विधायक नयनपाल रावत भी भाजपा के साथ ही डटे हैं।
गौरतलब है कि महेंद्र प्रताप सिंह अपने बेटे विजय प्रताप को राजनीतिक तौर पर सकि्रय कर चुके थे। राजनीति से उन्होंने लगभग किनारा कर लिया था लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में आकर उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि ‘शेर’ बूढ़ा जरूर हो गया है, लेकिन ‘शिकार’ करना नहीं भूला है। महेंद्र प्रताप के मैदान में आने की वजह से गुर्जर वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा बढ़ गया है। हालांकि कृष्णपाल गुर्जर इसलिए आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि सात हलकों में भाजपा विधायक हैं।
बल्लभगढ़ विधायक व सरकार में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री मूलचंद शर्मा, बड़खल विधायक व शिक्षा मंत्री सीमा त्रिखा लोकसभा चुनावों में गुर्जर ‘बैकबोन’ की तरह काम कर रहे हैं। सीएम के राजनीतिक सचिव रहे अजय गौड़ के प्रभाव को भी कम नहीं आंक सकते। वे भी अपनी माइक्रो मैनेजमेंट के जरिये ‘नेताजी’ के चुनाव को आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के दूसरे विधायकों का भी उन्हें पूरा समर्थन मिल रहा है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा नतीजों के करीब चार महीने बाद विधानासभा के चुनाव होने हैं।
इस वजह से लोकसभा चुनाव के नतीजों का असर सीधे तौर पर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। भाजपा के मौजूदा विधायक किसी भी तरह का जोखिम लेने के मूड में नहीं हैं। वे पूरी शिद्दत से जुटे हैं। बेशक, इसमें भी कोई दो-राय नहीं है कि यह भी पहला मौका है कि इस संसदीय क्षेत्र के अधिकांश कांग्रेसी दिग्गज पूरी संजीदगी से चुनाव में काम कर रहे हैं। कांग्रेस की गुटबाजी से फरीदाबाद भी अछूता नहीं रहा है लेकिन कांग्रेसियों काे भी अब विधानसभा चुनाव दिख रहे हैं।
ऐसे में वे भी इस कोशिश में जुटे हैं कि यहां से कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की जाए ताकि विधानसभा चुनावों में उनकी भी नैया पार लग सके। दोनों ही पार्टियों की ओर से हो रही इन्हीं कोशिशों के चलते मुकाबला कांटे का बनता दिख रहा है।
वहीं भाजपाइयों को यह भी लगता है कि मोदी की लहर का भी उन्हें फायदा मिलेगा। इसलिए चुनाव प्रचार में पीएम मोदी के काम भी गिनवाए जा रहे हैं और मोदी, राम मंदिर, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर वोट मांगे जा रहे हैं।
अलग है यहां का जाट मतदाता
फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र में 24 लाख 25 हजार के करीब वोटर हैं। सामान्य जाति में सबसे अधिक साढ़े पंद्रह प्रतिशत के करीब जाट वोटर हैं। इस सीट पर जाट वोटर, प्रदेश के दूसरे जाट मतदाताओं से अलग माना जाता है। ब्रज बेल्ट से सटा होने के कारण यहां की भाषा में भी ब्रज का पूरा टच है। अधिकांश शहरी सीट होने की वजह से 11 प्रतिशत से अधिक पंजाबी और करीब 6 प्रतिशत वैश्य वोटर हैं। ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी 8 प्रतिशत से अधिक मानी जाती है। इस पार्लियामेंट में राजपूत वोट बैंक भी चुनाव में बड़ी भूमिका निभाता है। इनकी संख्या पांच प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह से दस प्रतिशत के लगभग मुस्लिम/मेव मतदाता हैं।
660 से अधिक गांव आते हैं क्षेत्र के तहत
660 से अधिक गांव इस पार्लियामेंट के तहत आते हैं। गांवों से आ रहा ‘शोर’ गुर्जर की चिंता बढ़ा रहा है। ऐसे में उन्हें इस बार गांवों में अधिक काम करना होगा। वहीं महेंद्र प्रताप चूंकि काफी समय के बाद एक्टिव हुए हैं। ऐसे में उन्हें शहरी वोटरों पर फोकस करना होगा। साथ ही, गांवों में भी अपने संपर्क नये सिरे से खड़े करने होंगे। गुर्जर चूंकि लगातार दस वर्षों से सत्ता में भागीदार हैं, ऐसे में उन्हें एंटी-इन्कमबेंसी का भी सामना करना होगा। वे इसे कितना मैनेज कर पाते हैं, यह देखना बड़ा रोचक रहेगा।
ये हलके तय करेंगे हार और जीत
फरीदाबाद सीट में हार-जीत का फैसला जहां ग्रामीण वोटरों पर सबसे अधिक निर्भर करता है। शहरी क्षेत्र अधिक होने की वजह से इस वोट बैंक को भी कम नहीं आंक सकते। औद्योगिक क्षेत्र होने की वजह से यहां बड़ी संख्या में प्रवासी वोटर भी हैं। दोनों ही प्रत्याशियों को इस बड़े वोट बैंक को साधने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। नौ विधानसभा हलकों – हथीन, होडल, पलवल, पृथला, एनआईटी, फरीदाबाद, बड़खल, बल्लभगढ़ व तिगांव में जहां कुछ जगहों पर महेंद्र प्रताप मजबूत नजर आ रहे हैं तो कुछ जगहों पर गुर्जर का प्रभाव साफ दिखता है।