दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 6 मई
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के परिणाम अनेक बार चौंकाने वाले रहे हैं। प्रदेश के गठन यानी 1966 के बाद से अभी तक तीन बार ऐसे मौके आए हैं, जब कांग्रेस का लोकसभा में खाता ही नहीं खुल सका। वहीं 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने सभी दस सीटों पर जीत हासिल की थी। इससे पहले 1977 और बाद में 1999 में कांग्रेस हाशिये पर जा पहुंची। 1999 वाले नतीजे 2019 में फिर से दोहराए गए और इस बार भी कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई। इस बार हरियाणा में छह चरण में लोकसभा की दस सीटों के लिए 25 मई को मतदान होगा। सत्तारूढ़ भाजपा 2019 के चुनावी नतीजों को दोहराने की जुगत में है। यानी एक बार फिर सभी दस सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य लेकर भाजपा आगे बढ़ रही है। वहीं प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस भाजपा के इस ‘विजयी रथ’ को हरियाणा में थामने की कोशिश में है। कांग्रेस ने टिकट आवंटन में भी देरी की। हालांकि इसे कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना गया।
वहीं इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस की गुटबाजी की वजह से पार्टी को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। धड़ों में बंटी कांग्रेस के नेताओं में टिकट वितरण को लेकर ही तलवारें खींची हुई थी। बेशक, टिकटों की घोषणा के बाद अंदरखाने भाजपा में भी ‘नाराज़गी’ देखने को मिली लेकिन अनुशासन के मामले में सख्त रवैया अपनाने के लिए विख्यात भाजपा में कोई नेता भितरघात कर सकेगा, इसकी गुंजाइश काफी कम है।
विधानसभा चुनावों में बेशक, इस तरह का भितरघात हो जाए लेकिन लोकसभा चुनावों पर सीधे केंद्रीय नेतृत्व की नजर है। अगर कांग्रेस की बात करें तो हरियाणा गठन के बाद से लेकर अब तक हुए 14 चुनावों में कई बार कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है, हालांकि 1984 के बाद से अभी तक कांग्रेस सभी दस सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाई है। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में माहौल पूरी तरह से कांग्रेस के फेवर में होने के बावजूद पार्टी एक सीट से पीछे रह गई। अब पुराने कांग्रेसियों की मानें तो इसके पीछे भी पार्टी की आपसी गुटबाजी और अंतर्कलह ही बड़ा कारण रहा। कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां कांग्रेस दिग्गजों ने खुद ही पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों को हरवाने का काम किया। याद रहे कि डॉ़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। आपातकाल की समाप्ति के बाद 1977 में कांग्रेस का सामना करने के लिए जनसंघ और अन्य दलों का जनता पार्टी में विलय हो गया था।
1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों पर पुन: कदम आगे बढ़ाते हुए भाजपा अस्तित्व में आई। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हरियाणा में सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस को उस समय हरियाणा में 54.9 प्रतिशत मत मिले थे। वहीं भाजपा मात्र 7.5 प्रतिशत मत लेकर चौथे स्थान पर रही थी। पिछले चार लोकसभा चुनावों को अगर देखें तो दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा का सबसे बढ़िया प्रदर्शन रहा है।
भारी पड़ा था कांग्रेस को कारगिल वार
कारगिल युद्ध के बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनाव कांग्रेस पर भारी पड़े। कांग्रेस को लोकसभा की सभी दस सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। 1999 के चुनाव भाजपा और इनेलो ने गठबंधन में लड़े थे। दोनों ही पार्टियों ने पांच-पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इन चुनावों में लगातार तीन बार चौ़ देवीलाल को रोहतक से शिकस्त देने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा राव इंद्रजीत सिंह जैसे कद्दावर नेता नये चेहरों के सामने चुनाव हारे थे। हुड्डा को रोहतक में कैप्टन इंद्र सिंह ने और राव इंद्रजीत सिंह को महेंद्रगढ़ में डॉ़ सुधा यादव ने चुनाव हराया था।
2004 में कांग्रेस ने जीती थी 9 सीट
2004 तक केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी। वाजपेयी के नेतृत्व में हुए चुनावों में हरियाणा में कांग्रेस ने 10 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की। सोनीपत से किशन सिंह सांगवान भाजपा के अकेले सांसद बने थे। इन चुनावों में अंबाला से कुमारी सैलजा, सिरसा से आत्मा सिंह गिल, भिवानी से कुलदीप बिश्नोई, फरीदाबाद से अवतार सिंह भड़ाना, हिसार से जयप्रकाश ‘जेपी’, करनाल से डॉ. अरविंद शर्मा, कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल, महेंद्रगढ़ से राव इंद्रजीत सिंह तथा रोहतक से भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस टिकट पर जीत हासिल की थी।
2009 में दोहराया इतिहास
कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनावों में भी 2004 वाले इतिहास को दोहराया। हालांकि सभी दस सीटों पर जीत इस बार भी कांग्रेस को हासिल नहीं हुई। इन चुनावों में हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) टिकट पर चौ. भजनलाल ने हिसार सीट से जीत हासिल की। वहीं अंबाला से कुमारी सैलजा, कुरुक्षेत्र से नवीन जिंदल, सिरसा से डॉ. अशोक तंवर, करनाल से डॉ. अरविंद शर्मा, सोनीपत से जितेंद्र सिंह मलिक, रोहतक से दीपेंद्र सिंह हुड्डा, भिवानी-महेंद्रगढ़ से श्रुति चौधरी और गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सिंह ने जीत हासिल की थी।
2014 में इसलिए बदले समीकरण
2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। मोदी ने अपनी पहली रैली हरियाणा के रेवाड़ी में की। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा अपने बूते पर सात सीटों पर कमल खिलाने में कामयाब रही। अंबाला से रतनलाल कटारिया, कुरुक्षेत्र से राजकुमार सैनी, करनाल से अश्विनी चोपड़ा, सोनीपत से रमेश चंद्र कौशिक, भिवानी-महेंद्रगढ़ से धर्मबीर सिंह, गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सिंह और फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्जर ने जीत हासिल की। राव इंद्रजीत सिंह, धर्मबीर सिंह और रमेश चंद्र कौशिक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। रोहतक से कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा अपना किला बचाने में कामयाब रहे। वहीं हिसार से इनेलो के दुष्यंत चौटाला और सिरसा से चरणजीत सिंह रोड़ी सांसद बने।
2019 में भाजपा ने रचा इतिहास
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में मोदी के प्रभाव के सामने हरियाणा का कोई भी दिग्गज टिक नहीं पाया। भाजपा ने सभी दस सीटों पर जीत हासिल की। रोहतक में हुड्डा का गढ़ भी मोदी के सामने नहीं बच सका। यहां से दीपेंद्र हुड्डा पहली बार चुनाव हारे। वहीं भिवानी-महेंद्रगढ़ से धर्मबीर सिंह, हिसार से आईएएस की नौकरी छोड़कर आए बृजेंद्र सिंह, गुरुग्राम से राव इंद्रजीत सिंह, फरीदाबाद से कृष्णपाल गुर्जर, सिरसा से आईआरएस अधिकारी रहीं सुनीता दुग्गल, अंबाला से रतनलाल कटारिया, रोहतक से डॉ. अरविंद शर्मा, करनाल से संजय भाटिया, कुरुक्षेत्र से नायब सिंह सैनी और सोनीपत से रमेश चंद्र कौशिक चुनाव जीते।