प्रदीप साहू/निस
चरखी दादरी, 17 जुलाई
पहाड़ काटकर रास्ता बनाने की मिसाल कायम करने वाले बिहार के दशरथ मांझी के नाम को हर कोई जानता है, क्योंकि उनके नेक काम पर फिल्म भी बन चुकी है। लेकिन ऐसे ही एक शख्स हरियाणा में भी हैं जिन्हें शायद कम ही लोग जानते होंगे। ये हैं कल्लूराम। चरखी दादरी के गांव अटेला कलां के निवासी। उम्र 90 वर्ष। इन्होंने 50 सालों की अथक मेहनत के बाद पहाड़ों के बीच तालाब बनाकर मानवता की मिसाल पेश की है। यह तालाब अब हर साल सैकड़ों पशु-पक्षिओं की प्यास बुझाता है।
बुजुर्ग कल्लूराम को अपनी मेहनत का फल वर्ष 2010 में मिल गया। उस वक्त कड़ी मेहनत के बाद यह तालाब बनकर तैयार हुआ। आज चरखी दादरी में यह तालाब उनके जज्बे और जुनून की कहानी बयां करता है। कल्लूराम कि इच्छा है कि तालाब तक पक्का रास्ता बने। साथ ही उन्हें खौफ है कि कहीं यह तालाब खनन की भेंट न चढ़ जाए।
बुजुर्ग कल्लूराम के इस जुनूनी काम को समझने के लिए ‘दैनिक ट्रिब्यून’ संवाददाता ने इलाके का जायजा लिया। गांव अटेला कलां से निकलते ही पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो जाती है। करीब डेढ़ किलोमीटर की चढ़ाई के बाद तालाब तक पहुंचा जा सकता है। कल्लूराम आज भी हर सुबह 4 बजे उठकर तालाब तक पहुंचते हैं और दिनभर इसके अासपास पत्थर आदि हटाते रहते हैं। कल्लूराम कहते हैं कि इस काम में लोगों के ताने मिले, घरवाले परेशान हो गए, फिर भी मन में पशु-पक्षिओं के लिए कुछ करने का जज्बा था। उनकी मेहनत रंग लाई और आज जब बेजुबानों की यहां प्यास बुझती है तो उन्हें अलग आनंद की अनुभूति होती है। कल्लूराम की तीन पीढ़ियां इस तालाब के लिए पहाड़ों में रास्ता बनाने व पानी पहुंचाने के लिए उनका साथ दे रही हैं। उनका बेटा व पोता लगातार हाथ बंटा रहे हैं।
इसलिए जगा यह जुनून
कल्लूराम ने बताया कि वह 18 वर्ष की उम्र में पहाड़ों में बकरियां व गायों को चराने के लिए जाते थे। उस समय वहां पानी की कमी के चलते पशु-पक्षियों की लगातार मौतें हो रही थीं। इसी दौरान उन्होंने पशु-पक्षियों के लिए कुछ करने की ठानी और लगातार हथौड़े व छैनी से कार्य करते हुए पहाड़ों के बीच तालाब बनाया। इस तालाब को बनाने में करीब 50 साल लग गए। कल्लूराम के इस काम की जानकारी मिली तो पिछले दिनों डीसी श्यामलाल पूनिया और सांसद धर्मबीर सिंह ने उनके साहस को सलाम किया। साथ ही इस क्षेत्र को दर्शनीय बनाने की बात कही। कल्लूराम ने बताया कि इस उम्र में भी वह अपने बेटे वेदप्रकाश व पोते राजेश के साथ रास्ता बनाने में लगे हैं। आसपास के लोगों ने हैरानी जताई कि कल्लूराम को इस नेक काम के लिए अब तक कोई सम्मान नहीं मिला। साथ ही उन्हें इस बात का मलाल है कि ग्रामीणों की मांग के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी तालाब तक रास्ता नहीं बनवा सके हैं।