सूचना आयोग में 7216 केस लंबित, निपटाने में लगेंगे आठ साल
चंडीगढ़, 9 मार्च (ट्रिन्यू)
राज्य सूचना आयोग में लंबित मामलों की वजह से लोगों को समय रहते जानकारी नहीं मिल पा रही है। पहली जनवरी, 2024 में आयोग के पास लंबित केसों की कुल संख्या 8340 थी। 31 दिसंबर तक यानी पूरे वर्ष में 1124 पेंडिंग केसों का निपटान किया गया। वर्तमान में आयोग के पास सूचना से जुड़े 7 हजार 216 मामले लंबित हैं। आरटीआई से सूचना मिली है कि जिस तेजी से आयोग में सुनवाई हो रही है उस हिसाब से ये मामले निपटाने में ही आठ वर्ष लग जाएंगे। इस बीच, नये केस भी आयोग के पास सुनवाई के लिए पहुंच रहे हैं।
सबसे रोचक पहलू यह है कि 20 वर्षों की अवधि में सूचना आयुक्तों व स्टाफ के वेतन-भत्तों पर ही 92 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए हैं। वहीं, 36 करोड़ 39 लाख रुपये अन्य मदों पर खर्च हुए है। इस हिसाब से आयोग पर 20 वर्षों में 128 करोड़ 39 लाख रुपये से अधिक का खर्चा हुआ है। सरकार ने अब मुख्य सूचना आयुक्त सहित आठ सूचना आयुक्तों के चयन के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी है।
मुख्य सूचना आयुक्त का पद 25 मार्च को खाली हो रहा है। वहीं सूचना आयुक्तों के छह पद पहले से खाली हैं। एक सूचना आयुक्त का पद भी 25 मार्च को खाली हो जाएगा। माना जा रहा है कि सूचना आयुक्त नहीं होने की वजह से भी केसों के निपटारों में देरी हुई है। सूचना के अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आयोग को विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। पिछले 14 वर्षों से जागरूकता कार्यक्रम पर एक पैसा भी खर्च नहीं किया गया। इससे पूर्व के भी छह वर्षों में महज ढाई लाख रुपये की राशि लोगों को जागरूक करने के लिए खर्च की गई। राज्य सूचना आयोग सेवानिवृत्त आईएएस-आईपीएस व अन्य अधिकारियों व सत्तारूढ़ पार्टियों के लोगों की एडजस्टमेंट का बढ़िया जरिया बना हुआ है।
कोताही पर 5.86 करोड़ जुर्माना, वसूली महज 2.84 करोड़
समय पर सूचना नहीं देने के मामलों में विभिन्न विभागों व बोर्ड-निगमों के डिफाल्डर सूचना अधिकारियों पर आयोग ने इस अवधि में 5 करोड़ 86 लाख रुपये का जुर्माना ठोका। हालात यह हैं कि इसमें से महज 2 करोड़ 84 लाख रुपये की वसूली ही हो पाई है। डिफाल्टर अधिकारियों पर 3 करोड़ 2 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना अभी भी बकाया है। नियमों के हिसाब से जुर्माना राशि संबंधित अधिकारियों के वेतन से काटी जानी चाहिए। आयोग के पास अपनी शिकायतें लेकर पहुंचने वाले पीड़ित को बीस वर्षों की अवधि में मात्र 92 लाख 22 हजार रुपये क्षतिपूर्ति मुआवजे के तौर पर मिले हैं। इसी दौरान आयोग ने आरटीआई एक्ट की उल्लंघना व समय से सूचना न देने के कुल 1974 सूचना अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कारवाई करने के लिए सरकार को अनुशंसा की।
जनसूचना अधिकारियों की सूची नहीं
सूचना आयोग के पास प्रदेश के जनसूचना अधिकारियों व प्रथम अपीलीय अधिकारियों की सूची तक नहीं है। उन्हें यह भी नहीं पता कि वे आरटीआई किसके पास लगाएं। सूचना नहीं मिलने पर प्रथम अपील कहां करें। आयोग के पास इसकी भी सूचना नहीं है कि प्रदेशभर में नियुक्त राज्य जनसूचना अधिकारियों व प्रथम अपीलीय अधिकारियों ने आरटीआई एक्ट-2005 की ट्रेनिंग ली है या नहीं। आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर का कहना है कि आयोग के पास लंबित केसों की संख्या के हिसाब से इन्हें निपटाने में करीब आठ साल लग सकते हैं।