अम्बाला शहर, 25 जुलाई (हप्र)
महिला काव्य मंच अम्बाला इकाई द्वारा आयोजित मासिक गोष्ठी में कवयित्रियों ने अपनी-अपनी भावांजलि से समां बांधा। गोष्ठी राज्य महासचिव अंजलि सिफर की अध्यक्षता में आयोजित की गई जबकि मंच संचालन सवीना वर्मा सवी एवं मनीषा भसीन नारायण ने किया।
अंजली सिफर ने अपने भावों से गोष्ठी की शुरूआत करते हुए प्रोत्साहित किया ‘मत घबराना राह में हों गर दीवारें दीवारों से ही दरवाजे निकलेंगे’। सवीना वर्मा सवी ने जमाने के मनोभाव यूं दर्शाए ‘फरमाया मूरत को तो सब देखते हैं इस जालिम जमाने में कितनी चोटें दी पत्थर को इक मूरत बनाने में’। मनीषा भसीन ने अपन प्रस्तुति देते हुए कहा कि ‘हमारा दिल ये तुम्हारा भी आशियाना है मिले फलक से जमी बस वही ठिकाना है’। सुषमा शर्मा दीया बोली ‘मेरी डायरी के सब पन्ने भरने लगे हैं, दुख के बादल धीरे-धीरे छंटने लगे हैं’। निधि जैन ने गुरु की महता अपनी इन पंक्तियों से प्रस्तुत की ‘गुरु सा है नहीं कोई, गुरु की देव सम तुलना’। दिव्या भसीन कोचर ने जिंदा रहने के लिए संदेश देते हुए कहा कि ‘जिंदा रहना है तो चुप्पियां ओढ़ लो, बोलने पर हैं पाबंदियां क्या करें’। किरण जैन प्राचीन समय को याद करके बोली ‘बहन की राखियां भाभी के जेवर याद आते हैं जो मां की छांव में पलते थे वो घर याद आते हैं’।
…मेरे दामन से जो लिपटा, कांटों का था गुलदस्ता
रेणू गुलाटी नेह बोली ‘बेखौफ हो मेरे दामन से आ जो लिपटा फ़ूलों का नहीं कांटो का था गुलदस्ता’। ममता शर्मा मेहर की प्रस्तुति यूं रही कहते हैं ‘उन्हें तमीज नहीं, जिन्हें तालीम नहीं है मगर तमीज उन्हें भी नहीं, जिन्हें तालीम मिली है’। मधु गोयल मधुल ने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि ‘सत गुरु आएंगे दर्श दिखलायंगे मुझे दर पे तो जाने दे देंगे आशीर्वाद मुझको वो बारम्बार दर पे सर को झुकाने दे’।