वंदे मातरम केवल गीत नहीं, भारतीय आंदोलन की सांस्कृतिक धुरी : धनखड़
वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं है, यह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धुरी है। यह गीत उन हजारों-लाखों क्रांतिकारियों की प्रेरणा रहा, जिन्होंने विदेशी शासन के सामने सिर नहीं झुकाया और मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा स्वीकार कर लिया। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एवं वंदे मातरम स्मरण उत्सव के छह प्रदेशों के प्रभारी ओम प्रकाश धनखड़ ने राजस्थान में बीकानेर संभाग के पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में सात नवंबर से देशभर में स्मरणोत्सव कार्यक्रम चल रहे हैं। यह गीत अनवरत हर भारतीय में नई उर्जा का संचार करता है। उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी गीत- सरफऱोशी की तमन्ना और खुदीराम बोस की हंसते-हंसते फांसी को याद करते हुए कहा कि वंदे मातरम उनकी नसों में बहती लौ थी। यह वही गीत था, जिसके साहस ने चंद्रशेखर आज़ाद को यह संकल्प दिया कि ‘मैं आजाद पैदा हुआ हूं और आज़ाद ही मरूंगा।’ उन्होंने अत्याचार के आगे कभी सिर नहीं झुकाया, यह वंदे मातरम की ही आत्मा थी जिसने उन्हें अडिग खड़ा रखा।
धनखड़ ने कहा कि आज पूरा देश बड़े ही गर्व और गौरव के साथ ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रहा है। लौह पुरुष सरदार पटेल की 150वीं जयंती मना रहा है। ये सभी कार्यक्रम देश की एकता और अखंडता को मजबूत करते हैं। देश की संस्कृति और मूल संस्कारों से युवाओं को जोड़ने कार्य करते हैं। वंदे मातरम गीत हमें वीरता और बलिदान की याद दिलाता है।
