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‘पृथ्वी के संसाधनों का उतना ही उपयोग करें जितनी हमारी आवश्यकता है’

नारनौल, 22 अप्रैल (निस) विश्व पृथ्वी दिवस के इस अवसर पर डीपीजी तकनीकी एवं प्रबंधन संस्थान गुरुग्राम में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रोफेसर डॉ आरसी कुहाड़ ने कहा कि यदि हम अपने बच्चों को विरासत के रूप में कुछ देकर...
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नारनौल, 22 अप्रैल (निस)

विश्व पृथ्वी दिवस के इस अवसर पर डीपीजी तकनीकी एवं प्रबंधन संस्थान गुरुग्राम में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रोफेसर डॉ आरसी कुहाड़ ने कहा कि यदि हम अपने बच्चों को विरासत के रूप में कुछ देकर जाना चाहते हैं तो हमें यह संकल्प लेना ही होगा कि हम पृथ्वी के संसाधनों का उतना ही उपयोग करें, जितनी हमारी आवश्यकता है। आवश्यकता से अधिक उपयोग कर, हम अपने आने वाली पीढ़ियों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर देंगे।

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इसलिए जरूरत इस बात की है कि हमारे पूर्वजों ने जिस प्राकृतिक धरोहर को संजोकर रखा था, हम सब उस धरोहर को वैसे ही संजोकर रखें और आने वाली पीढ़ियों को प्रदान करें। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस की एक चौपाई के माध्यम से बताया कि इस चौपाई में महाकवि तुलसीदास ने प्रकृति के पांचों तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का वर्णन किया है। महर्षि कपिल ने सांख्य दर्शन में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में 25 तत्वों का उल्लेख किया है, वहां पर भी आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की चर्चा की गई है। पृथ्वी को गन्धवती कहा गया है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी में मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक सभी खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। वैज्ञानिक अनुसन्धान, विज्ञान की प्रगति और औद्योगिक क्रांति आने के पश्चात् इन खनिजों का प्रचुर मात्रा में दोहन किया गया है, और निरन्तर किया

जा रहा है।

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