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बेमौसमी बारिश ने किसानों की मेहनत पर फेरा पानी

खेतों में बिछ गई फसलें । महंगे रेट पर जमीन ठेके पर लेकर खेती करने वाले किसानों पर सबसे ज्यादा मार
जींद में मंगलवार रात हुई बारिश के बाद खेतों में गिरी पकी धान की फसल। -हप्र
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मंगलवार रात जींद और आसपास के क्षेत्रों में हुई तेज और मध्यम बारिश किसानों के लिए आफत बनकर आई। खेतों में खड़ी धान, कपास और बाजरे की फसलें बर्बाद हो गईं। मौसम के इस अचानक बदलाव ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया और उम्मीदों की लहर को चिंता की गहरी लकीरों में बदल दिया।

सोमवार दोपहर से ही मौसम का मिजाज बिगड़ना शुरू हो गया था। कई इलाकों में तेज हवाओं के साथ बारिश हुई, जिससे खेतों में खड़ी धान की फसलें जमीन पर बिछ गईं। मंगलवार रात फिर से हुई तेज बारिश ने नुकसान को और बढ़ा दिया। अब खेतों में धान की फसल पूरी तरह झुक चुकी है। ऐसी फसल में दाना पकने की संभावना बेहद कम रह गई है और कटाई भी मुश्किल हो गई है।

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ज्यादातर किसान धान की कटाई कंबाइन मशीनों से करवाते हैं, लेकिन गिरी हुई फसल की कटाई संभव नहीं होती। ऐसे खेतों में पानी

भरने से गलन का खतरा भी बढ़ गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. यशपाल मलिक ने बताया कि यह बेमौसमी बारिश खरीफ की प्रमुख फसलों धान, बाजरा और कपास के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हुई है। उन्होंने कहा कि धान की फसल कहीं पकने को तैयार थी, तो कहीं कुछ ही दिनों में कटाई की स्थिति में आने वाली थी। लेकिन अब गिरी हुई फसल से न तो उपज ठीक मिलेगी और न ही उसकी गुणवत्ता अच्छी रहेगी। दाने काले पड़ जाएंगे और बाजार में भाव भी गिरेगा।

जींद जिले में सबसे ज्यादा नुकसान उन किसानों को हुआ है जिन्होंने ठेके पर जमीन लेकर खेती की थी। अंटा, करसिंधु, रामराय, राजपुरा और मनोहरपुर जैसे गांवों में किसानों ने 80 से 90 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन ठेके पर लेकर धान बोई थी। प्रति एकड़ करीब 30 हजार रुपए का खर्च पहले ही हो चुका है। ऐसे में फसल के बर्बाद होने से किसानों पर भारी आर्थिक संकट मंडरा रहा है। किसानों का कहना है कि पहले ही इनपुट लागत, डीजल और मजदूरी के बढ़ते दामों ने खेती को महंगा बना दिया है। अब यह बारिश उनके लिए विनाशकारी साबित हुई है। कई किसानों ने कहा कि ‘अगर सरकार ने तुरंत मुआवजे की घोषणा नहीं की, तो अगला सीजन शुरू करना मुश्किल हो जाएगा।’ कृषि विभाग ने नुकसान का आकलन शुरू कर दिया है, लेकिन किसानों का कहना है कि राहत राशि कभी उनकी मेहनत का मोल नहीं चुका सकती।

 

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