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राव तुलाराम के शहीदी दिवस पर नसीबपुर में दी जाएगी श्रद्धांजलि

नसीबपुर के ऐतिहासिक शहीद स्मारक पर मंगलवार को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक राव तुलाराम एवं हरियाणा के वीर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव, नारनौल के विधायक एवं पूर्व मंत्री ओमप्रकाश...
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नसीबपुर के ऐतिहासिक शहीद स्मारक पर मंगलवार को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक राव तुलाराम एवं हरियाणा के वीर शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव, नारनौल के विधायक एवं पूर्व मंत्री ओमप्रकाश यादव सहित कई नेता व बड़ी संख्या में लोग पहुंचेंगे।

इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के नाम पर पूरे भारत में अपना पैर जमा चुकी थी। अंग्रेजों की’ फूट डालो और शासन करो’ की नीति सफल हो चुकी थी। एक-एक करके देश के सभी भाग अंग्रेजों के चंगुल में फंसते जा रहे थे। देश की गरीब जनता पीसती जा रही थी। अंग्रेजों के दमन चक्र से मुक्ति पाने के लिए 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी फैल गई। दिल्ली के साथ लगते दक्षिणी हरियाणा के क्षेत्र में इस क्रांति का नेतृत्व राव तुलाराम ने किया।

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राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर 1825 को हुआ था। राव तुलाराम ने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की बागडोर अपने हाथ में ले ली। उनके एक भाई राव कृष्ण गोपाल ने उनकी प्रेरणा से 10 मई सन् 1857 को मेरठ में सैनिक विद्रोह की बागडोर संभाली और अंग्रेजों का सफाया करके दिल्ली में बहादुर शाह जफर को भारत का स्वतंत्र शासक घोषित किया। इधर, राव तुलाराम ने भारत के दासता की जंजीरें तोड़कर जिला गुड़गांव व महेन्द्रगढ़ के इलाकों को विदेशी साम्राज्य से आजाद कर दिया। कर्नल फोर्ड और अंग्रेजी फौज को गुड़गांव से मार भगाया। रेवाड़ी के निकट अंग्रेजों की छावनी को नष्ट कर दिया। गोकलगढ़ में तोपें ढालने का कारखाना तथा टकसाल स्थापित करके दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में देशभक्त नेताओं को हर तरह की सहायता दी। अंग्रेजों के साथ उनकी अंतिम लड़ाई नारनौल से 3 मील दूर नसीबपुर के ऐतिहासिक रणस्थल में 16 नवंबर 1857 को हुई। देशद्रोही पंजाब और राजस्थान की रियासतें जयचंद और मीरजाफर बन अंग्रेजों की मदद के लिए पहुंच गई। ऐसे में राव तुलाराम को युद्ध स्थल से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया।

राव तुलाराम ने अपने अद्भुत साहस, दूरदर्शिता एवं देश भक्ति का परिचय दिया और उन्होंने काबुल में भारत से बचकर निकले हुए विद्रोहियों को इकट्ठा करके पहली ‘आजाद हिंद फौज’ बनाई। लेकिन देश से हजारों मील दूर बीमार होकर 23 सितंबर 1863 को वे विदा हो गये।

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