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लुवास में तीन-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न

240 वैज्ञानिक प्रस्तुतियां, विशेषज्ञों की रही भागीदारी
हिसार के लुवास में शुक्रवार को सम्मेलन में एक प्रतिभागी को सम्मानित करते अतिथि। -हप्र
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लाला लाजपत राय पशु-चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार में आयोजित तीन-दिवसीय सोसायटी फॉर वेटरनरी साइंसेज एंड बायोटेक्नोलॉजी (एसवीएसबीटी) के 12वें वार्षिक अधिवेशन एवं ब्रिजिंग साइंस एंड सोसायटी : बायोटेक्नोलॉजी फॉर सस्टेनेबल वन हेल्थ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनोद कुमार वर्मा के दिशा-निर्देशन में वेटरनरी ऑडिटोरियम में हुआ।

समापन समारोह में मुख्यातिथि के रूप में केंद्र के पशुपालन आयुक्त डॉ. प्रवीण मलिक उपस्थित रहे। उन्होंने सम्मेलन के सफल आयोजन पर विश्वविद्यालय को बधाई देते हुए कहा कि वन हेल्थ की अवधारणा आज वैश्विक स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मानव, पशु और पर्यावरण तीनों की सेहत एक-दूसरे पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि पशुओं में संक्रामक रोगों की रोकथाम, जैव-सुरक्षा तथा वैज्ञानिक अनुसंधान टिकाऊ स्वास्थ्य व्यवस्था की आधारशिला हैं।

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डॉ. मलिक ने जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बदलता मौसम पशुपालन और कृषि, दोनों को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों पर हुई चर्चाओं की सराहना की और सुझाव दिया कि पर्यावरण संरक्षण व्यक्तिगत प्रयासों से ही संभव है। प्रदूषण कम करने के लिए निजी वाहनों की बजाय सार्वजनिक परिवहन का उपयोग बढ़ाना चाहिए तथा इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देनी चाहिए। समारोह में सर्वप्रथम पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. मनोज रोज ने मुख्यातिथि का स्वागत किया। इस दौरान अनुसंधान निदेशक डॉ. नरेश जिंदल ने कहा कि देश-विदेश से आए वैज्ञानिकों, शोधार्थियों और विशेषज्ञों ने पशु स्वास्थ्य, बायोटेक्नोलॉजी तथा वन हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर अपने मूल्यवान शोध और अनुभव साझा किए, जिससे वैज्ञानिक समुदाय को नई दिशा मिली है।

आयोजन सचिव एवं विभागाध्यक्ष डॉ. सुशीला मान ने बताया कि सम्मेलन में 198 प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया, कुल 240 वैज्ञानिक प्रस्तुतियां हुईं, 9 थीमैटिक सत्र, 1 प्लेनरी सत्र, 27 लीड टॉक्स, 87 मौखिक प्रस्तुतियां, 80 पोस्टर प्रस्तुतियां, नाइजीरिया, यूएसए और जापान सहित कई देशों के विशेषज्ञ शामिल रहे।

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