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प्रेम और भक्ति का मार्ग ही संतो की सच्ची वाणी : हुजूर कंवर साहेब

स्थानीय दिनोद गांव स्थित राधास्वामी आश्रम में आयोजित सत्संग कार्यक्रम के दौरान संत हुजूर कंवर साहेब महाराज ने महर्षि वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में संगत को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संत महापुरुषों को सदैव परमात्मा के तुल्य माना गया...
प्रवचन करते संत हुजूर कंवर साहेब महाराज।
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स्थानीय दिनोद गांव स्थित राधास्वामी आश्रम में आयोजित सत्संग कार्यक्रम के दौरान संत हुजूर कंवर साहेब महाराज ने महर्षि वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में संगत को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि संत महापुरुषों को सदैव परमात्मा के तुल्य माना गया है। उनकी वाणी दिव्य होती है, जो आत्मा के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।

हुजूर महाराज ने कहा कि जब संत महापुरुष इस धरती पर आते हैं, तो वे जीवों को जागरूक करते हैं कि यह संसार एक सराय के समान है, जहां हमें अपने कर्मों का बोझ उतारने का अवसर मिलता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक जीव अपने कर्मों का कर्ज नहीं चुकाता, तब तक जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति नहीं मिलती। संत ही ऐसे होते हैं जो त्रिकालदर्शी होकर कर्मों के लेखे को समाप्त करने की सामर्थ्य रखते हैं।

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भक्ति के बिना मुक्ति नहीं : हुजूर कंवर साहेब

उन्होंने कहा कि संतों ने कभी किसी को दुख नहीं दिया, बल्कि हमेशा प्रेम, सेवा और भक्ति के मार्ग को प्रशस्त किया। सच्ची भक्ति लगन से ही संभव है, और जो आत्मा निरंतर परमात्मा से जुड़ी रहती है, वही जीवन के वास्तविक रस को प्राप्त करती है। संतों की अंतर भक्ति से जो 'नाम अमीरस' पकता है, वही आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाता है।

धोखा नहीं, आत्मज्ञान चाहिए : हुजूर कंवर साहेब

हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि नाम भक्ति में चालाकी या पाखंड नहीं चलता। इसमें आत्मज्ञान और समर्पण ही आवश्यक है। संतों की भक्ति में न दिखावा होता है और न किसी विशेष क्रिया-कर्म की जरूरत। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा कार्य 'नाम का दान' है, और उसका महत्व वही जान सकता है जो उसकी गहराई को समझता है।

संतों का जीवन बना आदर्श 


संतों को बादशाहों का भी बादशाह बताते हुए उन्होंने कहा कि वे दुनियावी भोग-विलास से परे होते हैं। वे स्वयं कमाकर खाते हैं और दूसरों को भी आत्मनिर्भर, संतुलित व सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। उन्होंने कबीर, मीरा, रविदास, दादू, पलटू, सैन, तुलसी जैसे अनेक संतों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन महान आत्माओं ने सेवा, समर्पण और भक्ति से समाज को दिशा दी।

मालिक की मौज में रहो राजी


गुरु महाराज ने प्रवचन में कहा कि सच्चा भक्त वही है जो मालिक की रजा में राजी रहता है। क्योंकि अंततः वही होता है जो परमात्मा की इच्छा होती है। भक्ति को उन्होंने आत्मा और परमात्मा के बीच एकाकार होने की प्रक्रिया बताया। सत्संग के अंत में संत कंवर साहेब ने सभी संगत से आग्रह किया कि वे प्रेम, सेवा और सच्ची भक्ति के मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

Haryana News : कंवर साहेब महाराज बोले – सत्संग देखने नहीं, करने के लिए आओ

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