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निजी खेल नर्सरी के अभाव में सिकुड़ रही खिलाड़ियों की पौध

हरेंद्र रापड़िया/हप्र सोनीपत, 20 जून खेलों के क्षेत्र में हरियाणा का गढ़ कहे जाने वाले जिले के खिलाड़ियों की उम्मीदों को झटका लगा है। जुलाई का महीना आने वाला है और जिले में अब तक एक भी निजी खेल नर्सरी...
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हरेंद्र रापड़िया/हप्र

सोनीपत, 20 जून

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खेलों के क्षेत्र में हरियाणा का गढ़ कहे जाने वाले जिले के खिलाड़ियों की उम्मीदों को झटका लगा है। जुलाई का महीना आने वाला है और जिले में अब तक एक भी निजी खेल नर्सरी की शुरुआत नहीं हो सकी है। खेल विभाग की अनदेखी और नीतिगत अस्पष्टता के चलते हजारों युवा खिलाड़ी न केवल नियमित अभ्यास से वंचित हो रहे हैं, बल्कि उन्हें खुराक भत्ता भी नहीं मिल रहा।

बता दें कि खिलाड़ियों की पौध तैयार करने के लिए सरकार ने खेल नर्सरी चालू करने का निर्णय लिया था। सरकारी के साथ-साथ प्राइवेट खेल नर्सरी खोलने की योजना बनाई। ये खेल नर्सरी अप्रैल से जनवरी माह तक चालू रहती हैं और फरवरी व मार्च में खिलाड़ियों के परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त होने की वजह से दो माह के लिए बंद कर दी जाती है, लेकिन इस बार प्राइवेट खेल नर्सरी खुलने में विभाग की प्रक्रिया बीच में ही अटक गई है। विभाग ने पंचायतों और खेल समितियों से प्राइवेट खेल नर्सरी खोलने के लिए आवेदन मांगे थे। 230 आवेदनों की जांच करके जिला स्तर से मुख्यालय आवेदन भेजे थे। आवेदन भेजे 3 माह पूरे होने को हैं, लेकिन अभी तक प्राइवेट खेल नर्सरी नहीं खुल सकी हैं। एक खेल नर्सरी में 25 खिलाड़ी होते हैं। विभाग के अधिकारियों के अनुसार 40 से ज्यादा प्राइवेट खेल नर्सरी खोले जाने की प्रक्रिया शुरू करवाई गई थी।

प्रशासनिक सुस्ती ने रोकी खिलाड़ियों की राह

फरवरी-मार्च में परीक्षाओं के चलते खेल गतिविधियां धीमी रहीं। जून खत्म होने को है जबकि अप्रैल माह से नया प्रशिक्षण सत्र शुरू होना था। मगर प्राइवेट नर्सरियों को लेकर खेल विभाग ने कोई पहल नहीं की है। इससे जिले के खेल प्रशिक्षकों और सैकड़ों खिलाड़ियों का भविष्य अधर में लटक गया है। जिले में पहले दो चरणों में 78 सरकारी खेल नर्सरियां खोली जा चुकी हैं। जिले के बड़े हिस्से में खेल आधारभूत ढांचा प्राइवेट कोचिंग और निजी नर्सरियों पर निर्भर करता है। ऐसे में इनका बंद रहना पूरे खेल तंत्र को प्रभावित कर रहा है। प्राइवेट खेल नर्सरियां उन स्थानों पर प्रशिक्षण का केंद्र होती हैं, जहां सरकारी सुविधा या कोच की पहुंच सीमित होती है। ये नर्सरियां न केवल उभरते खिलाड़ियों को अनुशासित प्रशिक्षण देती हैं, बल्कि सरकारी स्कीमों के तहत खिलाड़ियों को मासिक खुराक भत्ता (डाइट मनी) भी मिलता है। इस बारे में खिलाड़ी के परिवारों और कोचों का कहना है कि यदि जुलाई में भी ये नर्सरियां शुरू नहीं होतीं, तो हजारों खिलाड़ियों की फिटनेस और खेल प्रदर्शन पर सीधा असर पड़ेगा। साथ ही वे राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं से भी पिछड़ सकते हैं। प्राइवेट प्रशिक्षकों का कहना है कि सरकार हरियाणा को खेलों का हब बनाना चाहती है, लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन की रफ्तार बेहद धीमी है। जब तक प्राइवेट नर्सरियों को लेकर स्पष्ट नीति नहीं बनेगी, तब तक खिलाड़ियों को उचित प्रशिक्षण और पोषण नहीं मिल पाएगा।

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