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रबड़ की तरह लचीले 'हिलना' पत्थर ने दिलाई कलियाणा गांव को पहचान

इस पत्थर से भूकंप-रोधी इमारतें बनने की उम्मीद, वैज्ञानिक कर रहे रिसर्च
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चरखी दादरी के गांव कलियाणा की अरावली पहाड़ में हिलना पत्थर दिखाता ग्रामीण नरेंद्र राजपूत। -हप्र
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प्रदीप साहू/हप्र

चरखी दादरी, 1 जून

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चरखी दादरी जिले के गांव कलियाणा स्थित अरावली पहाड़ियों में रबड़ की तरह लचीला पत्थर मिलता है। इसे स्थानीय भाषा में 'हिलना' पत्थर कहा जाता है। इस पत्थर ने गांव कलियाणा को देश-विदेश में नयी पहचान दिलाई है। हिलना पत्थर से भूकंप-रोधी इमारतें बनने की संभावना को लेकर वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। गांव में इस अनोखे पत्थर का जहां गिनीज बुक में नाम दर्ज है, वहीं सरकार द्वारा इस गांव की पहाड़ी में बड़ा पर्यटन स्थल बनाने की कवायद की गई है। संबंधित विभागों द्वारा प्राकृतिक व भू वैज्ञानिक धरोहर को बचाने के लिए, जहां पहाड़ी में जाने पर प्रतिबंध लगाया है, वहीं ग्रामीण भी अपने स्तर पर इसे बचाने के लिए लगातार निगरानी कर रहे हैं।

बता दें कि चरखी दादरी जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर कलियाणा गांव स्थित है। गांव की पश्चिम दिशा की ओर अरावली के पहाड़ की एक खान में अनोखा लचीला पत्थर है। फ्लेक्सीबल सैंड स्टोन को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। हिलना पत्थर की लचक एक खास तरह के प्राकृतिक वातावरण की वजह से होती है। आखिरकार यह पत्थर किस तरह की भूगर्भीय स्थितियों में पाया जाता है और यह कैसे बना यह सब जानने के लिए देशभर के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। हिलना पत्थर से भूकंप-रोधी इमारतें बनने बारे भी रिसर्च की जा रही है। हालांकि वन, खनन सहित कई विभागों द्वारा पहाड़ी के रास्ते पर भू वैज्ञानिक धरोहर को बचाने व हिलना पत्थर को नुकसान पहुंचाने पर कानूनी कार्रवाई बारे बोर्ड भी लगाया गया है।

'दैनिक ट्रिब्यून' ने गांव कलियाणा की अरावली पहाड़ी में स्थित हिलना पत्थर की चट्टानों तक पहुंचकर पूरी जानकारी ली। यहां के निवासी नरेंद्र राजपूत, बिजेंद्र सिंह, जयभगवान व पूर्व सरपंच नानकी देवी ने बताया कि हिलना पत्थर को लचीला बलुआ पत्थर के अलावा डांसिंग स्टोन ऑफ हरियाणा भी कहा जाता है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर प्रभास पांडे ने बताया कि पिछले दिनों वे भी हिलना पत्थर को देखने गए थे। उनके मुताबिक हिलना पत्थर की अनूठी खासियत का अध्ययन किया जाना चाहिए और इस बात का पता लगाना चाहिए कि क्या इस तरह का पत्थर प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है। क्या इस तरह के पत्थरों का इस्तेमाल भूकंप रोधी इमारतें बनाने में हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारत जैसे भूकंप संवेदी देश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

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