कहानियों में होनी चाहिये संस्कृति की आत्मा
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक-निर्माता अश्विनी चौधरी ने दादा लख्मीचंद राज्य प्रदर्शन एवं दृश्य कला विश्वविद्यालय (डीएलसी सुपवा) में छात्रों से संवाद किया। उन्होंने कहा कि कहानियां तभी जीवित रहती हैं जब वे अपनी संस्कृति और सहज ज्ञान से जुड़ी हों और उनमें उनकी आत्मा होनी चाहिये। दक्षिण भारतीय सिनेमा की सफलता का कारण यही है कि वह स्थानीय परंपराओं और जीवन से निकलता है। हरियाणा में फिल्म निर्माण की संभावनाओं पर उन्होंने कहा कि सरकार ने कई प्रोत्साहन दिए हैं, मगर असली ज़रूरत मौलिक विचार, अनुशासन और गुणवत्तापूर्ण विषय-वस्तु की है। कुलपति डॉ. अमित आर्य ने कहा कि अश्विनी चौधरी का करिअर जमीनी कहानी कहने और अनुकूलन का उदाहरण है। उनकी बातचीत छात्रों को नए दृष्टिकोण से सोचने को प्रेरित करेगी। कुलसचिव डॉ. गुंजन मलिक ने कहा कि इस तरह के आयोजन से छात्रों को समझ आता है कि सिनेमा केवल ग्लैमर नहीं, बल्कि मेहनत और प्रासंगिक कथाओं से दर्शकों को जोड़ने का माध्यम है। इसी क्रम में सुपवा और सिने फाउंडेशन हरियाणा के सहयोग से पांच दिवसीय फिल्म कार्यशाला के तीसरे दिन संपादन, निर्देशन और फिल्म विमर्श पर गहन सत्र हुए। फिल्म संपादन विभागाध्यक्ष इंद्रनील ने संपादन को अदृश्य कला बताते हुए लुमियर बंधुओं की शुरुआती फिल्मों का विश्लेषण कराया। निर्देशन विभागाध्यक्ष मौली सेनापति ने कहा कि प्रामाणिक सिनेमा के लिए निर्देशक को समाज और संस्कृति के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
आरएसएस के क्षेत्र प्रचार प्रमुख अनिल कुमार ने कहा कि फ़िल्में कभी तटस्थ नहीं होतीं, वे विचारधारा और मूल्यों को प्रतिबिंबित करती हैं। ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ने भूगोल-भाषा की बाधाएं तोड़कर विविध कहानियों के लिए नया अवसर दिया है। शाम को प्रतिभागियों ने टीमों में लघु फिल्मों के विचार और पटकथा पर कार्य किया।