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पंचायत की भूमि के 60 करोड़ के घोटाले में एफआईआर के बाद भी सन्नाटा

तावड़ू उपमंडल में ग्राम पंचायत सराय की बहुमूल्य पंचायती भूमि के अवैध पंजीकरण से जुड़े लगभग 60 करोड़ रुपये के घोटाले में पुलिस की सुस्ती गंभीर सवाल खड़े कर रही है। ब्लॉक डेवलपमेंट एंड पंचायत ऑफिसर (बीडीपीओ) अरुण कुमार यादव...

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तावड़ू उपमंडल में ग्राम पंचायत सराय की बहुमूल्य पंचायती भूमि के अवैध पंजीकरण से जुड़े लगभग 60 करोड़ रुपये के घोटाले में पुलिस की सुस्ती गंभीर सवाल खड़े कर रही है। ब्लॉक डेवलपमेंट एंड पंचायत ऑफिसर (बीडीपीओ) अरुण कुमार यादव की शिकायत पर 10 नवंबर को मोहम्मदपुर अहिर थाने में महिला तहसीलदार सहित सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी, लेकिन एक माह बीतने के बाद भी जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई।

सूत्रों के अनुसार, प्रदेश के एक वरिष्ठ राजनेता के हस्तक्षेप से मामला दबाया जा रहा है, विशेषकर आरोपी तहसीलदार को बचाने की कोशिश हो रही है। यह घोटाला ग्राम पंचायत सराय की लगभग 5 एकड़ (37 कैनाल 5 मरला) भूमि से जुड़ा है, जो जमाबंदी रिकॉर्ड 2016-17 में खेवट/खतौनी नंबर 377/379 व खसरा नंबर 224 में पंचायत संपत्ति के रूप में दर्ज है।

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पंचायत की भूमि विवाद का मामला

शिकायत में आरोप है कि कंसोलिडेशन प्रक्रिया के दौरान सूरजमल पुत्र दलीप सिंह के वारिसों के नाम पर फर्जी बिक्री पत्र तैयार कर इस भूमि का अवैध रूप से पंजीकरण कराया गया। महिला तहसीलदार ने राजस्व रिकॉर्ड में भूमि स्पष्ट रूप से पंचायत की होने के बावजूद बिना सत्यापन के रजिस्ट्रेशन कर दिया। एफआईआर में महिला तहसीलदार, धर्मपाल कैलाश देवी, राकेश, अमित, सतबीर उर्फ सत्ते और ज्ञानचंद निवासी कोटा खंडेवला को नामजद किया गया है। उन पर भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी, साजिश और आपराधिक विश्वासघात के आरोप लगे हैं।

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गौरतलब है कि 21 दिसंबर 2023 को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने ‘अजय पटोदिया बनाम सुखबीर एवं अन्य’ मामले में इस भूमि को ग्राम पंचायत की संपत्ति घोषित किया था। बीडीपीओ ने मामले की शिकायत एसडीएम और डीसी को दी, जिसके बाद एडीसी जांच के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई।

बीडीपीओ अरुण कुमार यादव का कहना है कि पुलिस ने उन्हें जांच के लिए अब तक तलब तक नहीं किया। वहीं थाना प्रभारी वीरेंद्र का कहना है कि जांच जारी है, और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई होगी। लेकिन स्थानीय सूत्र स्पष्ट रूप से इसे राजनीतिक दबाव में ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश बता रहे हैं। यह मामला पंचायत और राज्य कोष को बड़े आर्थिक नुकसान का प्रतीक है।

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