भक्ति के दो अंग हैं सेवा और सत्संग : कंवर
भक्ति के दो अंग हैं सेवा और सत्संग। सेवादारों को दोनों ही पूर्ण रूप से मिलते हैं। सेवा के बिना सत्संग की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हुजूर ताराचंद का जीवन भी सेवा और सत्संग को ही समर्पित था।...
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भक्ति के दो अंग हैं सेवा और सत्संग। सेवादारों को दोनों ही पूर्ण रूप से मिलते हैं। सेवा के बिना सत्संग की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हुजूर ताराचंद का जीवन भी सेवा और सत्संग को ही समर्पित था। यह सत्संग वचन एवं सेवा निर्देश परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने 21 सितंबर को परमसंत ताराचंद महाराज के 101वें अवतरण दिवस पर होने वाले सत्संग व भंडारे की पूर्व संध्या पर सेवाकार्य में जुटे सेवादारों को फरमाए। गुरु महाराज ने बताया कि जिस महान संत के अवतरण दिवस के पावन अवसर पर होने वाले सत्संग की सेवा कार्य के लिए आप उपस्थित हुए हो उनके जीवन का आधार ही सेवा और प्रेम था। उनका उद्देश्य था कि समाज का प्रत्येक नागरिक उत्तम स्वास्थ्य लाभ के साथ सच्चाई और ईमानदारी से इस समाज की सेवा करें। गृहस्थ धर्म की पालना करते हुए परमात्मा की भक्ति करने को ही वो सच्चा परमार्थ बताते थे।
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